"आप इतिहास के एक मात्र व्यक्ति हैं जो अन्तिम सीमा तक सफल रहे धार्मिक स्तर पर भी और सांसारिक स्तर पर भी"
यह टिप्पणी एक ईसाई वैज्ञानिक डा0 माइकल एच हार्ट की है जिन्होंने अपनी पुस्तक The 100 (एक सौ) में मानव इतिहास पर प्रभाव डालने वाले संसार के सौ अत्यंत महान विभूतियों का वर्णन करते हुए प्रथम स्थान पर जिस महापुरूष को रखा है उन्हीं के सम्बन्ध में यह टिप्पणी लिखी है। अर्थात संसार के क्रान्तिकारी व्यक्तियों की छानबीन के बाद सौ व्यक्तियों में प्रथम स्थान ऐसे महापुरुष को दिया है जिनका वह अनुयाई नहीं।
प्रोफेसर रामाकृष्णा राव के शब्दों में – {आप के द्वारा एक ऐसे नए राज्य की स्थापना हुई जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों – एशिया, अफ्रीक़ा, और यूरोप- के विचार और जीवन पर अपना असर डाला} ( पैग़म्बर मुहम्मद , प्रोफेसर रामाकृष्णा राव पृष्ठ 3)
आइए ज़रा इस महान व्यक्ति की जीवनी पर एक दृष्टि डाल कर देखते हैं कि ऐसा कैसे हुआ?
मुहम्मद सल्ल0 20 अप्रैल 571 ई0 में अरब के मक्का शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा हुए । जन्म के पूर्व ही आपके पिता का देहांत हो गया। छः वर्ष के हुए तो दादा का साया भी सर से उठ गया जिसके कारण कुछ भी पढ़ लिख न सके। आरम्भ ही से गम्भीर, सदाचारी, एकांत प्रिय तथा पवित्र एवं शुद्ध आचरण के थे। आपका नाम यद्यपि मुहम्मद था परन्तु इन्हीं गुणों के कारण लोग आपको «सत्यवादी» तथा «अमानतदार» की उपाधि से पुकारते थे। आपकी जीवनी बाल्यावस्था हो कि किशोरावस्था हर प्रकार के दाग़ से शुद्ध एंव उज्जवल थी। हालांकि वह ऐसे समाज में पैदा हुए थे जहां हर प्रकार की बुराइयाँ हो रही थीं, शराब, जुवा, हत्या, लूट-पाथ तात्पर्य यह कि वह कौन सी बुराई थी जो उनमें न पाई जा रही हो? लेकिन उन सब के बीच सर्वथा शुद्ध तथा उज्जवल रहे। जब आपकी आयु चालीस वर्ष की हो गई तो ईश्वर ने मानव-मार्गदर्शन हेतु आपको संदेष्टा बनाया, आपके पास आकाशीय दूत जिब्रील अलै0 आए और उन्हों ने ईश्वर की वाणी क़ुरआन पढ़ कर आपको सुनाया। यहीं से क़ुरआन के अवतरण का आरम्भ हुआ, जो इश्वर की वाणी है, मानव-रचना नहीं। इसी के साथ आपको ईश्दुतत्व के पद पर भी आसीन कर दिया गया फिर आपको आदेश दिया गया कि मानव का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो जाएं। अतः आपने लोगों को बुराई से रोका। जुआ, शराब, व्यभिचार, और बेहयाई से मना किया।
उच्च आचरण और नैतिकता की शिक्षा दी, एक ईश्वर का संदेश देते हुआ कहा कि
«हे लोगो! एक ईश्वर की पूजा करो, सफल हो जा ओगे»
सज्जन लोगों ने आपका अनुसरण किया और एक ईश्वर के नियमानुसार जीवन बिताने लगे। परन्तु जाति वाले जो विभिन्न बुराइयों में ग्रस्त थे, स्वयं अपने ही जैसे लोगों की पूजा करते थे और ईश्वर को भूल चुके थे, काबा में तीन सौ साठ मुर्तियाँ रखी थीं। जब आपने उनको बुराइयों से रोका तो सब आपका विरोध करने लगे। आपके पीछे पड़ गए क्योंकि इससे उनके पूर्वजों के तरीक़े का खण्डन हो रहा था पर सत्य इनसान की धरोहर हीता है उसका सम्बन्ध किसी जाति-विशेष से नहीं होता। वह जिनके बीच चालीस वर्ष की अवधि बिताई थी और जिन्हों ने उनको सत्यवान और अमानतदार की उपाधि दे रखी थी वही आज आपके शत्रु बन गए थे। आपको गालियाँ दी, पत्थर मारा, रास्ते में काँटे बिछाए, आप पर पर ईमान लाने वालों को एक दिन और दो दिन नहीं बल्कि निरंतर 13 वर्ष तक भयानक यातनायें दी, यहाँ तक कि आपको और आपके अनुयाइयों को जन्म-भूमि से भी निकाला, अपने घर-बार धन-सम्पत्ती को छोड़ कर मदीना चले गए थे और उन पर आपके शुत्रुओं ने कब्ज़ा कर लिया था लेकिन मदीना पहुँचने के पश्चात भी शत्रुओं ने आपको और आपके साथियों को शान्ति से रहने न दिया। उनकी शत्रुता में कोई कमी न आई। आठ वर्ष तक आपके विरुद्ध लड़ाई ठाने रहे परन्तु आप और आपके अनुयाइयों नें उन सब कष्टों को सहन किया। हालांकि जाति वाले आपको अपना सम्राट बना लेने को तैयार थे, धन के ढ़ेर उनके चरणों में डालने के लिए राज़ी थे शर्त यह थी कि वह लोगों को अपने पूर्वजो के तरीके पर चलने के लिए छोड़ दे तथा उनको मार्गदर्शन न करें। लेकिन जो इनसान अंधे के सामने कुंवा देखे, बच्चे के सामने आग देखे और अंधे को कुंयें में गिरने से न रोके, और बच्चे को आग के पास से हटाने की चेष्टा न करे वह इनसान नहीं तो फिर मुहम्मद सल्ल0 के सम्बन्ध में यह कैसे कल्पना की जा सकती थी कि आप लोगों को बुराइयों में अग्रसर देखें और उन्हें न रोकें हांलाकि आप जगत-गुरू थे।
"फिर 21 वर्ष के बाद एक दिन वह भी आया कि आप के अनुयाइयों की संख्या दस हज़ार तक पहुंच चुकी थी और आप वह जन्म-भूमि (मक्का) जिस से आपको निकाल दिया गया था उस पर विजय पा चुके थे। प्रत्येक विरोधी और शुत्रु आपके क़ब्जे में थे, यदि आप चाहते तो हर एक से एक एक कर के बदला ले सकते थे और 21 वर्ष तक जो उन्हें चैन की साँस तक लेने नहीं दिया था सभी का सफाया कर सकते थे लेकिन आपको तो सम्पूर्ण मानवता के लिए दयालुता बना कर भेजा गया था। ऐसा आदेश देते तो कैसे ? उनका उद्देश्य तो पूरे जगत का कल्याण था इस लिए आपने लोगों की क्षमा का ऐलान कर दिया। इस सार्वजनिक एलान का उन शत्रुओं पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि मक्का विजय के समय आपके अनुयाइयों की संख्या मात्र दस हज़ार थी जब कि दो वर्ष के पश्चात अन्तिम हज के अवसर पर आपके अनुनायियों की संख्या डेढ़ लाख हो गई। "
इस का कारण क्या था ?
गाँधी जी के शब्दों में – « मुझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया है कि यह तलवार की शक्ति न थी जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैग़म्बर का अत्यंत सादा जीवन, आपकी निःसवार्थता, प्रतिज्ञापालन और निर्भयता थी»
मित्रो ! ज़रा ग़ौर करो क्या इतिहास में कोई ऐसा इन्सान पैदा हुआ जिसने मानव कल्याण के लिए अपनी पूरी जीवनी ही बिता दी और लोग 21 वर्ष तक उनका विरोध करते रहे फिर एक दिन वह भी आया कि उन्हीं विरोधियों ने उनके संदेश को अपना कर पूरी दुनिया में फैल गए और लोगों ने उनके आचरण से प्रभावित हो कर इस संदेश को गले लगा लिया……!!????
तब ही तो हम उन्हें “जगत गुरु” कहते हैं।
अच्छा लेख बहुत बढ़िया
ReplyDeleteachchi post hai , lekin wartnik trutiyon ki prachurta ke saath -saath tathyon mein uljhaw saaf dikhta hai .
ReplyDeletedusri baat ki apni adh kachri jankari ke aadhar par aap kaun hain faisla karne wale ki wo ek matr itihaas purush hain jinhe sarwopari mana jaye ?
tisri baat , shayad aap islaam ki mul bhawna (jo apne aage kisi ko kuchh nahi manta ,uski nazar mein jo islaam nahi mante sab galat hain) se prabhavit hain . tabhi to likhte hain ki "sajjan logon ne aapka anusharan kiya " kya jin logon ko inka mat pasand nahin wo sajjan kahlane yoga nahi the ya hain?
kis sadachar ki baat karte hain jinke haram mein laundiyon ki bharmar thi ! jinhone 40 saal ki khdija se kewal paison ke lalach mein wiwah kiya tha! jo yeh kahte hain ki jannat mein harak sadachari ko sattar hur milegi ! are bhai kaisa sadachar hai aapka ?
waise isme sandeh nahi ki wo mahapurush the par ek matra wali bhwna aatanki soch se prarit hai .
isi ek matra ke concept ne duniya mein aatank ka kahar macha rakha hai.
जयराम जी! आप और आप जैसे लोगों की टिप्पणिया ही मुझे प्रोत्साहित करती है सही बात कहने के लिए |
ReplyDeleteसबसे पहले तो मुआफ कीजिये वर्तनी में त्रुटियों के लिए, मैं इसे आज ही सुधार देता हूँ|
दूसरी बात, मेरे इस लेख में कहीं किसी दुसरे धर्म या व्यक्ति की बुराई नहीं लिखी है, आपने पढ़ा मैंने क्या कहना चाहा- मैंने लिखा कि "मेरे इस लेख में कहीं किसी दुसरे धर्म या व्यक्ति की बुराई नहीं लिखी है" और मैंने सिर्फ एक महान व्यक्ति की जीवनी के बारे में अभी थोडा सा लिखा और आप इस कदर भड़क गए जबकि "मेरे इस लेख में कहीं किसी दुसरे धर्म या व्यक्ति की बुराई नहीं लिखी है"
आप पाठक गण से अनुरोध हैं कि आप खुद ही मेरे लेख को पढें और हो सके तो हज़रत मोहमम्द (ईश्वर कि उन पर शांति हो) की जीवनी किसी अन्य जगह से या किसी किताब वगैरह से पढ़े और जयराम जी की निम्न टिप्पणी को पढें और खुद ही डिसाइड कीजिये कौन किस विचारधारा का है!?
अरे ! इसका मतलब यह हुआ कि अगर हम अपने धर्म के या किसी महान व्यक्ति के बारे में कुछ कहना चाहें या लिखना चाहें तो आप इस तरह से अनर्गल आरोप लगा कर आतंकी कहने से भी नहीं चुकते, और तो और उनकी शान में गुस्ताखी भी कर देते है, जो कि असहनीय है |
"ओ कहने वाले मुझको फरेबी, कौन फरेबी है ये बता?"
जयराम बाबु ! बात अब इतनी हो चुकी है तो मैं आपको अपने अगले लेख में पूरा क्लेरिफिकेशन दूंगा और पूछूँगा चंद सवाल आपसे और पाठक गण से भी!
सलीम खान
संरक्षक, स्वच्छ सन्देश
लखनऊ व पीलीभीत
उत्तर प्रदेश
अच्छा लिखा है
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त !