आज बांग्लादेश सुलग रहा है । वहां जिस तरह बांग्लादेश राइफल के जवानों ने अपने अधिकारिओं और अन्य जवानों की हत्या की उसकी आंच हमपर भी आएगी । बांग्लादेश रायफल में विद्रोह इस उपमहाद्वीप में नई प्रवृति की शुरुआत कर सकता है । कई साल पहले पिर्दिवाह की घटना के समय ही बी डी आर का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया था । अब पर्दाफाश भी हो गया ।
इस विद्रोह की दो प्रमुख वजहें बताई जा रही हैं। बीडीआर के जवान सेना के जवानों जैसा वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलने और बीडीआर के सभी उच्च पदों पर सेना के अफसरों की तैनाती से नाराज थे। उनकी नाराजगी की दूसरी बड़ी वजह यूएन पीस मिशन पर बीडीआर के जवानों को नहीं भेजा जाना बताई जा रही है। पर ये दोनों इतनी बड़ी वजहें नही है की वे
अधिकारियों के घरों में घुसकर लूटपाट करते और उनकी पत्नियों से बलात्कार कर डालते। कई अफसरों को जिन्दा जमीं में गाड़ देते ।
यह बगावत अचानक नहीं हुई है । ऐसे संकेत और सबूत हैं कि इस नरसंहार के लिए लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। खुफिया जानकारियों के अनुसार चटगांव, राजशाही और खुलना में इस से पहले कई गुप्त बैठकें हुई थीं, जिनमें इस घटना को अंजाम देने का खाका तैयार किया गया था। बगावत के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माने जा रहे बीडीआर के डिप्टी अडिशनल डाइरेक्टर तौहीदुल आलम ने भी इन बैठकों में शिरकत की थी। वारदात को अंजाम देने के लिए तारीख भी बहुत सोच-समझकर चुनी गई थी। बांग्लादेश के पूर्व सैनिक और खुफिया एजंसी अधिकारियों के मुताबिक इस बगावत का जिम्मा प्रफेशनल किलर स्क्वॉड को सौंपा गया था . उन्हें बीडीआर जवानों की वर्दी पहना कर अंदर भेजा गया था।
बगावत अचानक नहीं हुई और जवानों ने किसी उत्तेजना में गोलियां नहीं चलाईं, यह इस बात से भी साफ है कि हत्यारों के चेहरे लाल कपड़े से ढके हुए थे और वे दरबार हाल के अलग-अलग दरवाजों से दाखिल हुए थे। यही नहीं, वारदात के बाद भागने के लिए जिन रास्तों का इस्तेमाल किया गया, जहां से वही आदमी निकल सकता था जो उस इलाके से पहले से परिचित हो। घटना के बाद बीडीआर का शस्त्रागार भी लूटा गया और उसके दो सौ साल पुराने रेकॉर्ड रूम को आग लगा दी गई। इस बात से पता चलता है की कितने गुप्त तरीके से इस घटना की तैयारी की गई थी ।
इस साजिश की जड़ें कहां थीं और इसका मकसद क्या था? कहीं इसमें बांग्लादेश के शिपिंग जाइंट सलाउद्दीन का तो कोई हाथ नहीं था? इधर इस मामले में जब से सलाउद्दीन का नाम सामने आया है, कई उलझी हुई कडि़यां अपने-आप ही खुलने लगी हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि चटगांव आर्म्स ड्रॉप केस में अल्फा उग्रवादियों तक हथियार पहुंचाने के लिए किस तरह सलाउद्दीन के जहाजों का इस्तेमाल किया गया था। पाकिस्तान की सैनिक खुफिया एजंसी आईएसआई और बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी से भी उसके करीबी रिश्ते हैं।
बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बीडीआर में बगावत भड़काने की साजिश में आईएसआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। माना जा रहा है कि इस बगावत का मकसद बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार दो प्रमुख सैनिक बलों -बांग्लादेश सेना और बीडीआर- दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर के देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर देना था।
वेतन और सुविधाओं में बेहतरी के नाम पर की गई एक सुरक्षा बल की इस बगावत का असली निशाना दरअसल बांग्लादेश में लंबे अंतराल के बाद चुनी गई लोकतांत्रिक सरकार ही थी। और यही नहीं, अगर बगावत अपने उद्देश्य में पूरी तरह कामयाब हो जाती, तो यह न केवल बांग्लादेश, बल्कि भारत के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका होती। आगे भारत को बांग्लादेश की स्थिति पर गहराई से विचार करना होगा । साथ ही ऐसी प्रवृति पर रोक लगाने के लिए कारगर उपाय करना होगा ।
इस विद्रोह की दो प्रमुख वजहें बताई जा रही हैं। बीडीआर के जवान सेना के जवानों जैसा वेतन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलने और बीडीआर के सभी उच्च पदों पर सेना के अफसरों की तैनाती से नाराज थे। उनकी नाराजगी की दूसरी बड़ी वजह यूएन पीस मिशन पर बीडीआर के जवानों को नहीं भेजा जाना बताई जा रही है। पर ये दोनों इतनी बड़ी वजहें नही है की वे
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यह बगावत अचानक नहीं हुई है । ऐसे संकेत और सबूत हैं कि इस नरसंहार के लिए लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। खुफिया जानकारियों के अनुसार चटगांव, राजशाही और खुलना में इस से पहले कई गुप्त बैठकें हुई थीं, जिनमें इस घटना को अंजाम देने का खाका तैयार किया गया था। बगावत के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माने जा रहे बीडीआर के डिप्टी अडिशनल डाइरेक्टर तौहीदुल आलम ने भी इन बैठकों में शिरकत की थी। वारदात को अंजाम देने के लिए तारीख भी बहुत सोच-समझकर चुनी गई थी। बांग्लादेश के पूर्व सैनिक और खुफिया एजंसी अधिकारियों के मुताबिक इस बगावत का जिम्मा प्रफेशनल किलर स्क्वॉड को सौंपा गया था . उन्हें बीडीआर जवानों की वर्दी पहना कर अंदर भेजा गया था।
बगावत अचानक नहीं हुई और जवानों ने किसी उत्तेजना में गोलियां नहीं चलाईं, यह इस बात से भी साफ है कि हत्यारों के चेहरे लाल कपड़े से ढके हुए थे और वे दरबार हाल के अलग-अलग दरवाजों से दाखिल हुए थे। यही नहीं, वारदात के बाद भागने के लिए जिन रास्तों का इस्तेमाल किया गया, जहां से वही आदमी निकल सकता था जो उस इलाके से पहले से परिचित हो। घटना के बाद बीडीआर का शस्त्रागार भी लूटा गया और उसके दो सौ साल पुराने रेकॉर्ड रूम को आग लगा दी गई। इस बात से पता चलता है की कितने गुप्त तरीके से इस घटना की तैयारी की गई थी ।
इस साजिश की जड़ें कहां थीं और इसका मकसद क्या था? कहीं इसमें बांग्लादेश के शिपिंग जाइंट सलाउद्दीन का तो कोई हाथ नहीं था? इधर इस मामले में जब से सलाउद्दीन का नाम सामने आया है, कई उलझी हुई कडि़यां अपने-आप ही खुलने लगी हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि चटगांव आर्म्स ड्रॉप केस में अल्फा उग्रवादियों तक हथियार पहुंचाने के लिए किस तरह सलाउद्दीन के जहाजों का इस्तेमाल किया गया था। पाकिस्तान की सैनिक खुफिया एजंसी आईएसआई और बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी से भी उसके करीबी रिश्ते हैं।
बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले बीडीआर में बगावत भड़काने की साजिश में आईएसआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। माना जा रहा है कि इस बगावत का मकसद बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार दो प्रमुख सैनिक बलों -बांग्लादेश सेना और बीडीआर- दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर के देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर देना था।
वेतन और सुविधाओं में बेहतरी के नाम पर की गई एक सुरक्षा बल की इस बगावत का असली निशाना दरअसल बांग्लादेश में लंबे अंतराल के बाद चुनी गई लोकतांत्रिक सरकार ही थी। और यही नहीं, अगर बगावत अपने उद्देश्य में पूरी तरह कामयाब हो जाती, तो यह न केवल बांग्लादेश, बल्कि भारत के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका होती। आगे भारत को बांग्लादेश की स्थिति पर गहराई से विचार करना होगा । साथ ही ऐसी प्रवृति पर रोक लगाने के लिए कारगर उपाय करना होगा ।
इतनी खास जानकारी देने का आभार । सचमुच भारत के आस पास के देश आतंकवादियों के हाथ के खिलौने बनते जा रहे हैं ये भारत के लिये तो बडा खतरा हैं हीं पर विश्व के अन्य देश भी इससे काफी चिंतित हैं । अगर कोई चिंतित नही है तो वह है हमारी सरकार डो चुनावों में व्यस्त है ।
ReplyDeleteइससे पहले कि पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश की तरफ से भी कुछ अनिष्ट घटनाएँ हों हमें पहले से ही चौकन्ने रहना चाहिए और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सैनिक ताक़त के लिए मुझे नहीं लगता यह ज़्यादा कठिन है | मुंबई जैसी और घटनाएँ ना हो इसके लिए हमारी सेना और सुरक्षा तंत्र अब मुस्तैद हो चुका होगा और अब अगर ऐसी घटना फिर से हुई तो मैं समझता हूँ यह हमारे तंत्र की पोल ही खोलेगा |
ReplyDeleteआज कल एक तरफ हमारे मिडिया वाले जैसे लगता है रोज़ आतंकियों के सूचना अधिकारीयों से मिल कर आतें है और रोज़ हम जनता को बताते हैं कि फलां जगह यह घटना होगी या हो सकती है | उधर हमारा तंत्र क्या करता है, इससे निबटने के लिए ..........!!!!!!!????????
वैसे मिसेज़ जोगलेकर जी आपको मैं बता दूँ कि बांग्लादेश की यह घटना कोई आतंकी घटना नहीं थी , एक बगावत थी |
jee aap sabaka abhaar prakat karata hoon. aapane lekh ko padhaa aur apana reaction diya.
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