Skip to main content

हिंदी पद्य साहित्य में नारी : ८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफला: क्रिया।

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में

उपरोक्त हिन्दी एवं संस्कृत की अति प्रसिद्ध काव्योक्तियां न केवल नारी की पवित्रता एवं सम्मान को दर्शाती हैं, अपितु यह संकेत भी करती हैं कि जीवन के सुंदर समतल में अमृतसम बहने वाली नारी एक विश्वास के बंधन के साथ साथ कितनी कर्तव्यपरायण भी हैं। पुरातन साहित्य की इन पंक्तियों अनुवादित करते हुए मुख्य विषय यह है कि आज रचा जाने वाला पद्य साहित्य जिस पर निराला की साहित्यिक निष्ठा से लेकर उदारीकरण, निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण तक का प्रभाव है, ने नारी की सहनशीलता, कर्तव्यपरायणता, उच्छृंखलता एवं कर्मक्षेत्र में योद्धा की भांति लड़ने वाली प्रवृत्ति को किस रूप में दिखाया है।
आधुनिक हिन्दी पद्य साहित्य में नारी के लिए पर्याप्त स्थान है। परंतु जैसे-जैसे समाज में नारी ने अपना रूप बदला है। वैसे-वैसे साहित्यकारों ने उसका पीछा किया है। और साहित्य ने कम से कम इस विषय में तो, अर्थात् नारी को प्रस्तुत करते हुए समाज के दर्पण के रूप में काम किया है। साहित्य ने नारी को मुख्यत: चार रूपों मे दिखाया है। प्रथम रूप वह है जिसमें उसे देवी मानकर पूजा जाता है। ऐसी आधुनिक नारी की छवि यूं तो देखने में कम ही मिलती है। परंतु साहित्यकारों में अब भी वह सकारात्मकता है कि वो नारी को नमन करते हैं। एक युवा कवि कि कुछ पंक्तियां इस विषय में प्रस्तुत हैं
नारी पूजा, नारी करुणा, नारी ममता, नारी ज्ञान
नारी आदर्शों का बंधन, नारी रूप रस खान
नारी ही आभा समाज की, नारी ही युग का अभिमान
वर्षों से वर्णित ग्रंथों में नारी की महिमा का गान

डॉ कुंवर बेचैन की पंक्तियां नमन कराती हैं सीमा पर जाते हुए एक जवान के द्वारा अपनी बहन के स्नेह को

रेशमी रक्षा कवच राखी के धागों को नमन

औरत का दूसरा रूप जिसमे उसे वर्तमान साहित्य में सर्वश्रेष्ठ भूमिका में दिखाया गया है। वह एक ऐसा रूप है जिसमें आधुनिक महिला समाज के लिए एक आदर्श है। वह एक मां, बहन, पत्नी एवं बेटी सभी रूपों में सफल है। यह वह रूप है जिसमें आधुनिक नारी घर में सभी भूमिकाओं का सफलता से निर्वाह करती है। घर में उसके त्याग पर गुलशन मदान लिखते हैं

पुरुष वह लिख नहीं सकता कभी भी
लिखा नारी ने जो इतिहास घर में

प्रसिद्ध शायर निदा फाजली ने मां का वर्णन करते हुए कुछ ऐसी पंक्तियां लिखी हैं जिनमें नारी की सरलता का अदभुत रूप देखने को मिलता है।

बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बासन चिमटा फूंकनी जैसी मां
बांट के अपना चेहरा माथा, आंखें जाने कहां गई
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां

डॉ सारस्वत मोहन मनीषी ने बड़ी ही सहजता से मां का वर्णन किया है

बंजर में मधुमास हुआ करती है मां
खुश्बू का अहसास हुआ करती है मां

कवि गोपालाचार्य ने बहुत ही विनम्र भाव से लिखा है

पत्नी घर की आन है, आंगन की है धूप
रिश्ता है विश्वास का, पूरक रूप अनूप

आधुनिक महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। और उसका परिवार की आर्थिक समृद्धि में भी भरपूर योगदान है। वर्तमान साहित्य इस पर भी कडी नजर रखता हुआ प्रतीत होता है-

अध्यापिका बनी है नारी ज्ञान बांटती वह फिरती है
बड़े बड़े उद्योग चलाती, अपने निर्णय खुद करती है

नारी का तीसरा रूप एक ऐसा रूप है जिस पर कवियों की लेखनी हर युग में सबसे अधिक चलती आई है, न जाने वह कौन सा समय था जब स्त्री को अबला की उपाधि मिल गई और वह उससे ऐसी चिपकी कि आज तक वह इससे नहीं उबर पाई। हालांकि यह भी सत्य है कि आज समाज में महिला उत्पीड़न के ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि सारा समाज शर्मशार हो जाता है। आधुनिक कवि इस दर्द पर जन मानस को जागृत करने मे पीछे नहीं हैं। भ्रूण हत्या की मानसिकता पर कवि योगेन्द्र मौदगिल का शेर-

नहीं चाहिए मुझको पोती
दादी का फरमान हो गया

दहेज प्रथा पर वह लिखते हैं-

कब तलक यूं ही जलाई जाएंगी
कागजी नोटों के बदले बेटियां

युवा कवि अदभुत के शब्दों में

वो घर आंगन को महकाती रचती सपनों का संसार
पर निष्ठुर समाज ने उसको दिया जन्म से पहले मार

डॉ सारस्वत मोहन मनीषी भ्रूणहत्या पर बहुत ही मार्मिक कविता में लिखते हैं-

मैं तेरे आंगन की तुलसी तेरे हाथ कटारी मां
जन्म पूर्व ही मार दिया क्यूं बोल अरी हत्यारी मां

आधुनिक कवियों ने नारी के एक अबला, बेबस और लाचार रूप को भी कविताओं में उकेरा है शायर गुलशन मदान लिखते हैं-

इक तवायफ पेट भरती है यहां
रोज अपनी बेबसी को बेचकर

डॉ रश्मि बजाज के शब्दों में-

बैठे हैं अब करते प्रतीक्षा/
आएगा अवतार करेगा रक्षा/
हर गली हर कूँचे में/अपमानित द्रौपदी।

पुरूषोत्तम दास निर्मल आधुनिकता की दौड में नारी देह के दुरूपयोग पर व्यंग्य कसते हैं

औरत के साथ आदमी का देखिए सुलूक
ब्यूटी के नाम चीरहरण कर रहें हैं लोग

साहित्य ने केवल नारी पर हो रहे इन अत्याचारों को ही नहीं दिखाया अपितु नारी को जागृत एवं उत्साहित भी किया है ताकि वह न केवल स्वयम् पर हो रहे आघातों से बच सके एवं अपने ऊपर हुए जुल्मों का प्रतिशोध ले सके।

कवि महेन्द्र सिंह बिलोटिया को इसका पूरा विश्वास भी है। वह लिखते हैं

काली बनकर जब कामिनी खंजर हाथ उठाएगी
दुर्गा रूप धरकर नारी दुष्टों से टकराएगी

कवि मक्खनलाल तंवर ने अत्याचारों के विरुद्ध नारी का आह्वान किया

खड्ग थाम अपने हाथों में महाकाली बनना होगा
अबला के अत्याचारी का शीश कलम करना होगा

नारी हर कठिन से कठिन वक्त में चट्टान बनकर खडी हो सकती है, नारी ने हर युग में ऐसे कार्य किए हैं जिनकी कल्पना करना भी दुष्कर है। इसका इतिहास गवाह है।

प्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार उस सैनिक की पत्नी को नमन करते हैं जिसने अपने शहीद पति की अर्थी को कंधा दिया था। समस्त विश्व के इतिहास में यह पहली घटना थी। उन्होने लिखा-

वो औरत पूरी पृथ्वी का बोझा सर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है

नारी का चौथा रूप वो रूप है जिसकी साहित्य ने आलोचना की है। इस रूप में नारी उच्छृंखल है और उसने सामाजिक मर्यादाओं को तोडा है। साहित्य इस विषय पर भी अपनी पैनी नजर रखता है। कवि असलम इसहाक की दो क्षणिकाएं इसका प्रमाण हैं

नेताजी ने/
आधुनिक छात्रा की पोशाक देखकर कहा
विचार और वस्त्र /दोनों जरा ऊंचे हैं।

एवं

आधुनिक महिला ने सखी से
अपने पति का परिचय कराया
किचन के कोने में/
जो लगा है धोने में/चाय का प्याला
सखी वही है मेरा घरवाला।

उपर्युक्त विश्लेषण वर्तमान हिन्दी पद्य साहित्य में नारी के कुछ पहलुओं को दिखाता है। बहुत सी सूक्ष्म बातें ऐसी भी होती हैं कि कई बार किसी सीमा के कारण साहित्यकार जिन्हें नहीं छू पाता। फिर भी यह विश्लेषण एक बात तो सिद्ध करता ही है कि वर्तमान कवि जागरूक है और समाज के लिए अपने योगदान का उत्तरदायी भी। नारी के चाहे कितने ही रूप हों या रहे हों परंतु उसकी असीम शक्ति ने समाज को सदैव एक नई दिशा देने का कार्य किया है। जिसके कारण वह सदा ही वंदनीय रही है और रहेगी। और वर्तमान साहित्य भी इस तथ्य को स्वीकार करता है।

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally