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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथा

जंगल में जनतंत्र
जंगल में चुनाव होनेवाले थे. मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे.- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये. सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये.'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद. आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ. ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया. मंत्री जी खुश हुए.
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं. हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया.
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी.
समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद. '

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कल हम फिर हाजिर होने आचार्य संजीव 'सलिल' जी की नयी लघुकथा के साथ ''हिन्दुस्तान का दर्द'' पर
तब तक के लिए
जय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान

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