मुक्तक
जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं.
जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं.
सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं-
जो प्यास को लें जीत वे मधुमास होते हैं.
पग चल रहे जो वे सफल प्रयास होते हैं
न थके रुक-झुककर वही हुलास होते हैं।
चीरते जो सघन तिमिर को सतत 'सलिल'-
वे दीप ही आशाओं की उजास होते है।
जो डिगें न तिल भर वही विश्वास होते हैं.
जो साथ न छोडें वही तो खास होते हैं.
जो जानते सीमा, 'सलिल' कह रहा है सच देव!
वे साधना-साफल्य का इतिहास होते हैं
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जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं.
जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं.
सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं-
जो प्यास को लें जीत वे मधुमास होते हैं.
पग चल रहे जो वे सफल प्रयास होते हैं
न थके रुक-झुककर वही हुलास होते हैं।
चीरते जो सघन तिमिर को सतत 'सलिल'-
वे दीप ही आशाओं की उजास होते है।
जो डिगें न तिल भर वही विश्वास होते हैं.
जो साथ न छोडें वही तो खास होते हैं.
जो जानते सीमा, 'सलिल' कह रहा है सच देव!
वे साधना-साफल्य का इतिहास होते हैं
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बहुत बढ़िया लिखा है
ReplyDeleteवर्मा जी बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteशब्द नहीं है मेरे पास
संजीव जी अच्छा और सुन्दर लेखन
ReplyDeleteखूबसूरत है
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