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इबारत.................. "आस्था"

पूजा करती  थी

कल तुम्हारी

करती हूँ

आज भी

सोचकर  कि

भगवान  को

 हमेशा ही

हक़ होता है

गुनाह  करने का ...........|

Comments

  1. kya baat kah di aapne chand shabdon mein hi.
    ab aur kya kahun,kuch bacha hi nahi.

    ReplyDelete
  2. chand shabd aur puri duniya sametdi aapne

    ReplyDelete
  3. सार्थक लेखन
    बधाई हो!!

    ReplyDelete
  4. आस्था जी बहुत की खूब!
    अच्छी नज्म !

    ReplyDelete
  5. मैं हूँ , मजबूर , बेहतर है , मुझे मजबूर रहने दो ,
    ये दिन नाज़ुक बहुत हैं मुझको तुमसे दूर रहने दो .

    जो तुमको , चाहता हूँ , तो बताना क्या जरूरी है ,
    दिखावे के हैं ' ये दस्तूर ' , ' ये दस्तूर ' रहने दो .

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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