हाल ही में मैंने एक आलेख लिखा था,जिसका मज़मून था - मांसाहार क्यूँ जायज़ है? मैंने कुछ दिन बाद देखा कि हमारे एक शाकाहारी मित्र लेखक जनाब निशांत मिश्र जी ने भी शाकाहार या माँसाहार पर एक लेख लिखा मैंने उसे दिनांक 04/03 /2009 को पढ़ा तो मन हुआ कि जब बात डिबेट तक पहुँच गयी तो क्यूँ ना इसका जवाब भी दे दूँ| मैंने सिर्फ यह बताने की कोशिश की थी कि मांसाहार भी सही है| विमर्श को आगे बढ़ाने से पहले मैं जैसा कि हमेशा अपना एक बात कहना चाहता हूँ तो इस लेख का सन्देश यह है-
"मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है, ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है| कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है कि वह सब्जियां भी खा सकता है और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए | इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए, ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा | अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां | आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं"
निशांत भाई ने कई तर्क रखे और आरोप भी मैं उन सभी तर्कों और आरोपों का मैं बिन्दुवार जवाब देता हूँ--
उनका पहला कथन/तर्क या आरोप था कि मैंने मांसाहार को धर्म से जोड़ कर बताया है |
भाई निशांत, मैं आपसे यह बता दूँ कि धर्म से मैंने जोड़ कर नहीं बताया है यह पहले से ही वेदों, कुरान, मनुस्मृति और महाभारत वगैरह में लिखा है| ऐसा मुझे नहीं लगता कि मैंने यह गलत किया क्यूँ कि एक हमारा हिंदुस्तान ही तो है जहाँ धर्म को इतनी अहमियत दी जाती है | यही वजह थी कि मुझे अपनी बात सार्थक तरीके से कहने के लिए उन महान और मान्य ग्रन्थों का हवाला देना पड़ा अगर मैं सिर्फ यह कहता कि यह मेरा ओपिनियन है तो मेरी बात का असर बिलकुल भी नहीं होता और आपको भी मैं एक सलाह देना चाहता हूँ कि अगर आपको किसी इस तरह के मुद्दों पर कुछ कहना हो तो आप भी उन सभी हवालों (सार्थक, सत्य और मान्य) का ज़िक्र करना ना भूलें, क्यूंकि हो सकता है कि आपके विचार भले ही आपको सही लग रहें हों, और वह पूर्णतया ग़लत और निरर्थक हों | क्या यह बात सही नहीं है कि मांसाहार और शाकाहार के मुद्दे को हमारे हिंदुस्तान में धर्म की नज़र से देखा जाता? बिल्कुल -सही है, इसे धर्म विशेष से जोड़ कर ही देखा जाता है| इसी वजह से मुझे अपनी बात में उन किताबों के महत्वपूर्ण उद्वरण का उल्लेख करना पड़ा| अंतत मैं आपसे और आप सबसे यह कहना चाहूँगा कि (मेरा मानना यह है कि) मांसाहार और शाकाहार को धर्म के नज़र से नहीं देखना चाहिए |
आगे निशांत भाई ने लिखा है कि मांसाहार मनुष्य के स्वाभाव में आक्रामकता पैदा करता है?
आपका दूसरा तर्क यह है कि मांसाहार मनुष्य के स्वाभाव में आक्रामकता पैदा करता है| चलिए ठीक है, मैं आपकी बात से हद दर्ज़े तक सहमत हूँ कि जो हम खाते है उसका हमारे स्वाभाव पर सीधा प्रभाव पड़ता है| यही वजह है कि हम लोग उन जानवरों को खाते है जो शांतिप्रिय हों - जैसे मुर्गी, बकरी, भेंड आदि | और इन जानवरों का व्यवहार कैसा होता है? यह शांतप्रिय होते हैं जनाब| हम इसी वजह से उन जानवरों को नहीं खाते जो आक्रामक होते है जैसे- शेर, चिता, कुत्ता और सुवर आदि | नबी हज़रत मोहमम्द सल्ल० ने साफ़ तौर पर कहा है, इस तरह के जानवर तुम पर हराम (prohibited) हैं| हम शांतिप्रिय हैं, इसीलिए हम उन्ही जानवरों को खाते है जो शांतिप्रिय हैं| We are peace loving people, therefore we want to have animals which are peaceful. अब मैं बहस को आगे बढ़ाता हूँ, मुआफ कीजियेगा. अब मैं वकील की तरह बोलूँगा क्यूंकि बात तर्क की है तो आगे बढ़ना भी ज़रूरी है- आप लोग पेड़-पौधों को खाते हैं, इसीलिए आप पेड़-पौधों की तरह व्यवहार करते हैं| that is, suppression of the senses… a lower species. मैं जानता हूँ कि यह गलत है | मैं सिर्फ एक वकील की तरह व्यवहार कर रहा हूँ| मुझे शर्म महसूस हो रही है इस तरह से लिखकर| यह सत्य नहीं हैं कि अगर आप पेड़-पौधों को खायेगे तो नींम श्रेणी की प्रजाति में गिने जायेंगे या जड़वत हैं| लेकिन जैसा आपने आर्गुमेंट्स दिया उसका यह जवाब था | मुझे मुआफ करें, I really apologize…अगर आप शाकाहारियों का दिल दुखा हो | यह वैज्ञानिक रूप से सत्य नहीं है, यह केवल तर्क था|
आगे आपने तर्क दिया कि बुद्धिजीवियों में शाकाहारियों का प्रतिशत ज़्यादा है और महात्मा गाँधी सरीखे लोगों ने शाकाहार अपनाया|
यह फिर से एक तर्क है शाकाहार के सम्बन्ध में| ठीक है-मैं तर्क का जवाब तर्क से ही देता हूँ| आपने तर्क दिया कि महात्मा गाँधी सरीखे लोग शाकाहारी थे, मैं महात्मा गाँधी की बहुत इज्ज़त करता हूँ क्यूंकि भारत के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया और इंसानियत के लिए भी| लेकिन क्यूंकि महात्मा गाँधी अहिंसावादी थे, शांतिप्रिय थे, यहाँ यह दर्शाने के लिए लिखा गया कि शाकाहार आपको शांतिप्रिय बनाता है तो सुनिए आज आप दुनिया के सबसे बड़े नोबेल पुरस्कार (शांति हेतु) का विश्लेषण करें तो पाएंगे उनमें से ज्यादातर, बल्कि सभी मांसाहारी थे | मसलन-मनेक्चंग बेगन- मांसाहारी, यासीर अराफात-मांसाहारी, अनवर सादात-मांसाहारी, मदर टेरेसा- मांसाहारी, आपने पढ़ा मदर टेरेसा मांसाहारी थीं | अब आपसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल जिसका आप जवाब दीजिये| अभी तक के इतिहास में मनुष्य में कौन सा ऐसा व्यक्ति या व्यक्तित्व था जो मशहूर था- सबसे ज्यादा लोगों को मारने के लिए- क्या आप गेस कर सकते है???? ..... हिटलर , अडोल्फ़ हिटलर| उसने छह मिलियन यहूदियों को मारा था | क्या वह मांसाहारी था या शाकाहारी?............शाकाहारी | खैर! अब आगे आप कहेंगे कि - अडोल्फ़ हिटलर शाकाहारियों के नाम पर धब्बा था और वह एक अपवाद था| वह कभी कभी माँस भी खाता था| आपको यह भी अंतरजाल पर सर्च करने पर मिलेगा कि उसे जब गैस की समस्या होती थी, तब ही वह सब्जियां खाता था| मैं आपको फ्रेंक्ली एक बात बता दूँ कि वैज्ञानिक रूप से अडोल्फ़ हिटलर का छह मिलियन यहूदियों को मारने का सम्बन्ध उसके खानपान से बिल्कुल भी नहीं है और ना ही मैं यह कह रहा हूँ कि वह शाकाहारी था या मांसाहारी था | मैं यह जानने में बिल्कुल भी इंटररेस्टेड नहीं हूँ कि वह क्या खाता था क्यूँ कि इस बात में कोई वज़न नहीं है| मेरा मानना यह है कि अडोल्फ़ हिटलर द्वारा ऐसा करने का कारन कुछ और है जो कि पूर्णतया अमानवीय है और यह वह नहीं जो उनका खानपान है | मैं एक रिसर्च के बारे में बताता हूँ- अमेरिका में कुछ शाकाहारी और मांसाहारी विद्यार्थियों पर शोध किया गया तो पाया गया कि मांसाहारी विद्यार्थी ज़्यादा शांतिप्रिय और सोशल थे और शाकाहारी कम, यानि शाकाहारी ज़्यादा उग्र थे और मांसाहारी कम | लेकिन यह एक रिसर्च था- यह कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं | मैं इसे बिल्कुल भी यह साबित करने के लिए नहीं बता रहा हूँ कि मांसाहारी शांतिप्रिय होते हैं | चूँकि यह एक बहस है, मुझे यह लिखने पर मजबूर होना पड़ रहा है | और आपने जो भी आरोप लगाये वह या तो तर्क थे या रिसर्च, वह कोई वज्ञानिक तथ्य नहीं थे | आपने आगे यहाँ कहा कि भारतियों (आपके हिसाब से शाकाहारियों ने) अपनी काबिलियत और बुद्धि का लोहा मनवा लिया है | मैं आपको बता दूं बहुत से ऐसे भारतीय भी है जो बहुत बुद्दिमान थे और भारत के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया है लेकिन वे सब मांसाहारी | आपका कहने का मतलब यह था कि शाकाहारी ज़्यादा बुद्धिजीवी होते है, आपने नाम भी गिनवाए जैसे जार्ज बर्नाड- जो सौ साल जिया | मैं आपको कुछ नाम और बताता हूँ जो शाकाहारी थे और बहुत बड़े बुद्धिजीवी भी- अलबर्ट आइंस्टाइन, इसाक न्यूटन | ठीक है...| आपको मैं एक बात और बता दूं कि यह भी सत्य ही है कि मांसाहारी जानवर ज़्यादा बुद्धिमान होते हैं बनिस्बत शाकाहारी जीव के | लेकिन मैं इसे भी बहस का हिस्सा नहीं बनाऊंगा कि मांसाहार आपको बुद्धिमान बनाता है क्यूंकि यह सब बातें हम इंसानों पर लागू नहीं हो सकती हैं | खानपान का इन्सान पर फर्क पड़ता है या आपके खानपान पर असर नहीं डालता है, यह एक तर्क है .......... तर्क से सत्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता | आप तर्क से अपनी बात सिद्ध कर सकते हैं मगर सत्य को बदल नहीं सकते |
आगे आपने कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग शाकाहार अपना रहे हैं अर्थात आपके कहने का मतलब यह था कि शाकाहारी लोगों की संख्या बढ़ रही है या ज्यादा है |
मैं आपको बता दूँ निशांत बाबू कि अगर आप बहुमत की बात करे तो मांसाहारी का बहुमत ज़्यादा है | यहाँ चटका लगा कर देखे कि कौन ज़्यादा है |
आगे आपने यह लिखा है कि माँसाहार कई बीमारियों कि जड़ है ज़रा यहाँ नज़र डालकर देखें तो कौन बीमारी ज्यादा फैला रहा है | मगर यह सब भी एक रिसर्च है |
आगे मैं आपसे एक पूछता हूँ क्या आप ‘यदुनाथ सिंह नायक' के नाम से वाकिफ हैं, नहीं मालूम मैं बताता हूँ |यदुनाथ सिंह नायक एक शाकाहारी थे और सेना में कार्यरत थे | वह कुश्तीबाज़ थे और उन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में दो मांसाहारी कुश्तीबाजों को धुल चटा दी थी| तब तो आपको लगेगा कि शाकाहार से इन्सान ज़्यादा ताक़तवर बनाता है| मैं आपको बता दूँ कि कुश्तीबाजी के विश्व चैम्पियंज़ में शाकाहारी भी हैं और मांसाहारी भी | बात को आगे बढाते हैं- अगर आप पुरे विश्व के लिहाज़ से अगर कम्पेयर करेंगे तो आप को पता है सबसे ज़्यादा कुश्तीबाजी में कौन मशहूर है- मांसाहारी! और बोडी बिल्डिंग में कौन सबसे ज़्यादा मशहूर है------अर्नाल्ड श्वार्ज्नेगेर | तेरह बार अर्नाल्ड ने विश्व विजेता का खिताब जीता था और सात बार मि. ओलंपिया और पांच बार मि. यूनिवर्स और एक बार मि. वर्ल्ड | आपको पता है- वह क्या था ??? वह शाकाहारी था या माँसाहारी ??? माँसाहारी !!! बोक्सेर- मोहमम्द अली - माँसाहारी ! कैसियस क्ले- माँसाहारी ! माइक टायसन- माँसाहारी !
यह एक तथ्य है और वज्ञानिक तथ्य कि माँस खाने से आपके शरीर की ताक़त में इज़ाफा हो सकता है|
आपने आगे लिखा कि वेद, पुराण और मनुस्म्रित आदि में लिखी बातें अब बकवास साबित हो चुकीं है |
इसके लिए तो मेरा एक ही जवाब है लेकिन उससे पहले एक सवाल क्या आप इन सारी किताबों को पढ़ा है? क्या आपने वेद, पुराण, भविष्यपुराण, मनुस्मृति और कुरान आदि अध्ययन किया है ? नहीं किया ना !? यही वजह है कि यह सब आपको बकवास लग रहा है| जनाब यही वह सब है जिसको पढ़ लेने भर से आप अपना कल्याण करेंगे | और सारी समस्याओं का हल हो जायेगा |
शाकाहारी भोजन की गुणवत्ता
आगे आपने लिखा कि शाकाहारी भोजन की गुणवत्ता अधिक अच्छी होती है| गुणवत्ता की अगर बात करें तो शाकाहार या मांसाहार दोनों ही किसी ना किसी स्थान पर बेहतर हैं और गुणवत्ताधारी हैं| जहाँ तक माँसाहार की बात है तो मैं आपको बता दूँ कि माँस पोषण हेतु उत्तम स्रोत है और इसमें आठों अमीनो असिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते हैं जिसकी पूर्ति केवल खाने से हो सकती है| माँस में लौह, विटामिन बी-1 और नियासिन भी प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं |
चिकन और मटन के साथ चावल और रोटी क्यूँ इस्तेमाल की जाती है?
अब इसका मैं क्या जवाब दूँ| मैं आपसे पूछूँ कि आप खाना खाने पर पानी क्यूँ पीते हैं? तो आप क्या जवाब देंगे | पानी शाकाहारी है या माँसाहारी !!!?
आगे आपका कहना है कि मुर्गे आदि को मारने पर दर्द और तड़प की परवाह नहीं करते है| और अपनी उंगली में पिन चुभोइए तो दर्द महसूस होगा आदि |
जनाब, अगर आप तड़प की बात करते है तो मैं आपको बता दूँ पत्ती या सब्जी तोड़ने पर पौधों में भी दर्द होता है और वो चीखते हैं| लेकिन हम उनकी आवाज़ नहीं सुन सकते | क्यूँ ? क्यूंकि हमारे कान के सुनने की क्षमता 20 हर्ट्ज़ से 20000 हर्ट्ज़ तक ही है| इससे कम या ज़्यादा हम सुन नहीं सकते या सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते| मैं आपको एक बात और बता दूँ | अमेरिका में तो पेड़ पौधों की हरकत और आवाज़ की हलचल तो महसूस करने के लिए मशीन भी इजाद कर ली है जिसके माध्यम से वो यह पता कर लेते हैं कि पौधों को कब दर्द होता है और कब उन्हें प्यास लगती है !
तो यह था जवाब अब आपको निम्न बिन्दुओं को पढ़ कर यह समझ आ जायेगा कि मांसाहार ठीक है |
निम्न बिन्दुओं को पढने से पहले आपको निम्न लेखों को भी पढना बेहद ज़रूरी है, नहीं तो इसका महत्त्व और इसको समझने में दिक्कत हो सकती है | इनमें मैंने वह सब का सार लिख दिया है कि मांसाहार भी जायज़ है| मांसाहार क्यूँ जायज़ है ?
शाकाहार या मांसाहार ? (निशांत मिश्र द्वारा शाकाहार के समर्थन में लिखा लेख) |
1 - दुनिया में कोई भी मुख्य धर्म ऐसा नहीं हैं जिसमें सामान्य रूप से मांसाहार पर पाबन्दी लगाई हो या हराम (prohibited) करार दिया हो|
2 - क्या आप भोजन मुहैया करा सकते थे वहाँ जहाँ एस्किमोज़ रहते हैं (आर्कटिक में) और आजकल अगर आप ऐसा करेंगे भी तो क्या यह खर्चीला नहीं होगा?
3 - अगर सभी जीव/जीवन पवित्र है पाक है तो पौधों को क्यूँ मारा जाता है जबकि उनमें भी जीवन होता है|
4 - अगर सभी जीव/जीवन पवित्र है पाक है तो पौधों को क्यूँ मारा जाता है जबकि उनको भी दर्द होता है|
5 - अगर मैं यह मान भी लूं कि उनमें जानवरों के मुक़ाबले कुछ इन्द्रियां कम होती है या दो इन्द्रियां कम होती हैं इसलिए उनको मारना और खाना जानवरों के मुक़ाबले छोटा अपराध है| मेरे हिसाब से यह तर्कहीन है |
6 -इन्सान के पास उस प्रकार के दंत हैं जो शाक के साथ साथ माँस भी खा/चबा सकता है |
7 - और ऐसा पाचन तंत्र जो शाक के साथ साथ माँस भी पचा सके. मैं इस को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध भी कर सकता हूँ | मैं इसे सिद्ध कर सकता हूँ|
8 - आदि मानव मांसाहारी थे इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि यह प्रतिबंधित है मनुष्य के लिए | मनुष्य में तो आदि मानव भी आते है ना |
9 - जो आप खाते हैं उससे आपके स्वभाव पर असर पड़ता है - यह कहना 'मांसाहार आपको आक्रामक बनता है' का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है|
10 - यह तर्क देना कि शाकाहार भोजन आपको शक्तिशाली बनाता है, शांतिप्रिय बनाता है, बुद्धिमान बनाता है आदि मनगढ़ंत बातें है|
11 - शाकाहार भोजन सस्ता होता है, मैं इसको अभी खारिज कर सकता हूँ, हाँ यह हो सकता है कि भारत में यह सस्ता हो | मगर पाश्चात्य देशो में यह बहुत कि खर्चीला है खासकर ताज़ा शाक |
12 - अगर मांसाहारी जानवरों को खाना छोड़ दें तो इनकी संख्या कितनी बढ़ सकती, अंदाजा है इसका आपको|
13 -कहीं भी किसी भी मेडिकल बुक में यह नहीं लिखा है और ना ही एक वाक्य ही जिससे यह निर्देश मिलता हो कि मांसाहार को बंद कर देना चाहिए|
14 - और ना ही इस दुनिया के किसी भी देश की सरकार ने मांसाहार को सरकारी कानून से प्रतिबंधित किया है|
कुल मिला कर
"मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है, ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है| कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है कि वह सब्जियां भी खा सकता है और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए | इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए, ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा | अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां | आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं|"
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प्रिय सलीम भाई. तुमने वाकई बहुत अच्छा लिखा है, तुम्हारी जानकारी भी काबिलेतारीफ है. लेकिन मुझे यह लग रहा है की तुम काफी उत्तेजित हो गए हो. मेरा लेख तो बहुत संक्षिप्त, सीधासादा और संयत था. खैर... तुम कृपया यह मत सोचो कि मैंने तुम्हारे ऊपर कोई आरोप लगाये हैं... और यह भी न सोचो कि मेरी जानकारी बहुत सीमित है. समयाभाव और यात्रा पर होने के कारण इस समय मैं विस्तार से नहीं लिख पा रहा हूँ. उम्मीद करता हूँ कि विषय पर प्रकाश डालनेवाली कुछ टिप्पणियां यहाँ पर आयेंगी.
ReplyDeleteमैं उत्तेजित नहीं हूँ, चूँकि मेरे पास २ दिन का वक़्त ऐसा था कि मैं लिख सकूँ तो मैंने लिख डाला | ठीक उसी तरह से जैसे आप यात्रा पर हो और मैं यात्रा पर नहीं हूँ यानि फ्री हूँ |
ReplyDeletenice arguments...
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