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दिल को हिला देने वाले नजारे !!

ह बात आज से ३ दिन पहले की है मैं कानपुर स्टेशन के प्लेटफोर्म नम्बर सात पर अपनी ट्रेन अवध एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहा था, जो की एक घंटे लेट थी, तो प्लेटफोर्म नम्बर सात पर पुष्पक एक्सप्रेस आ कर रूकती है, जो लखनऊ से बांद्रा के लिए चलती है, मैं जहाँ खड़ा था उसके सामने ट्रेन की रसोई (Pantry Car) थी, कुछ देर खड़े होने के बाद ट्रेन चली गई तभी मेरी नज़र रेल पटरी के बीच मे पड़ी जहाँ पानी की पाइप लाइन पर एक आदमी बैठा था, और वो ट्रेन की रसोई मे से फेंकी गई जूठी प्लेटो मे खाना बीन कर खा रहा था, उसके पास चार आवारा कुत्ते घूम रहे थे वो भी उन्ही प्लेटो मे से खाने की तलाश मे थे.....उस आदमी के बाएँ हाथ मे एक लकड़ी थी जिससे वो उन कुत्तो दूर भगा रहा था और दायें हाथ से जल्दी जल्दी खाना उठा कर खा रहा था, कुत्ते भी काफ़ी भूखे थे, वो भी हर तरीके से कोशिश कर रहे थे की उन्हें कुछ खाने को मिल जाए.....मैंने अपनी ज़िन्दगी मे पहली बार इंसान और जानवर को खाने के लिए लड़ते देखा था। आगे पढ़े

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...