आतंकवाद की समस्या को अनेक पहलुओं से विचार करने की आवश्यकता है। सबसे पहली बात तो ये कि आतंकवाद को नैतिक व तात्विक आधार इस्लाम धर्म से ही मिल रहा है। यह कहना सच्चाई से मुंह चुराना है कि आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता। जब आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी जाती है तो सबसे पहले तो उनके दिमाग में यह बात बिठाई जाती है कि यह बड़े सबाब का काम है। आप ही बताइये किसी व्यक्ति में फिदाइन (आत्मघाती) बनने लायक, अपनी जान देकर भी वर्ल्ड ट्रेड टॉवर, संसद, ताजमहल होटल या अब क्रिकेट खिलाड़ियों से भरी बस पर हमला करने लायक जज़्बा और किस ढंग से पैदा किया जा सकता है? आतंकवादी यह सोच कर शायद ही हमला करने के लिये निकलते हों कि वह सुरक्षित लौट पायेंगे। अतः ये कार्य धन के या सत्ता के लालच में करते होंगे, यह सोचना तो हास्यास्पद ही है।
आत्मघाती हमलों में आतंकवादी सबसे पहले अपनी जान देते हैं, तब जाकर दूसरों की जान लेने की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार का उन्माद सिर्फ मजहब या देश की रक्षा के नाम पर ही व्यक्ति में पैदा किया जा सकता है। अतः आतंकवादियों को आम अपराधी मानने से हम केवल स्वयं को धोखा ही दे सकते हैं। हमें आतंकवाद से लड़ना है तो यह समझ लेना होगा कि आतंकवादी अपनी निगाह में बहुत अच्छा व पुण्य का काम कर रहे हैं व जो भी कर रहे हैं, वह उनकी निगाह में अपने मजहब की, समाज की बेहतरी के लिये है। आतंकवादी वास्तव में वे हैं जो लोग यह ट्रेनिंग देते हैं, निपटना तो वास्तव में उनसे है। सड़कों पर हमला करते दिखाई दे रहे आतंकवादी तो उनके हाथों में खिलौना भर हैं। दस को मार गिराइये, बीस और पैदा हो जायेंगे।
मैं क्षण भर के लिये मान लेता हूं कि इस्लाम में दहशतगर्दी के लिये कोई जगह शायद नहीं होगी। संदेह का लाभ देने के बावजूद, इतना तो फिर भी मानना पड़ेगा कि इस्लाम की शिक्षाओं को ही तोड़ मरोड़ कर, उनके मनमाने अर्थ निकाल कर बेरोज़गार मुस्लिम युवकों को बरगलाने का कार्य निरंतर चल रहा है। जो लोग इस कार्य में जुटे हैं, उनको मुस्लिम इतर समाजों से व देशों से कुछ वास्तविक व कुछ काल्पनिक शिकायतें होंगी जिनको आधार बना कर मुस्लिम युवकों को बरगलाने व जेहाद के नाम पर उनको आतंकवाद के तंदूर में झोंकने का कार्य बदस्तूर जारी है।
अब बात करें पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध चलाये जा रहे आतंकवाद की। फाकिस्तान का जन्म भारत के प्रति नफरत की नींव पर हुआ है और यदि यह नफरत खत्म हो जाये तो पाकिस्तान के अस्तित्व का औचित्य ही खत्म हो जाता है। अतः पाकिस्तान द्वारा छेड़े जा रहे इस छद्म युद्ध को जीतने का एक ही उपाय है - पाकिस्तान को पुनः भारत का अभिन्न अंग बना लेना, एक स्वतंत्र देश के नाते उसका अस्तित्व समाप्त कर देना। ऐसा दो ढंग से किया जा सकता है - एक उपाय युद्ध का मार्ग है पर यह दोनो ही देश की जनता के लिये बहुत कष्टकर होगा। शायद यह व्यावहारिक भी नहीं है।
दूसरा उपाय यह है कि सारी विश्व बिरादरी पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करके उसके प्रति पूर्ण असहयोग का रवैया अख्तियार कर ले। पाकिस्तानियों को कोई भी देश अपने यहां घुसने न दे, सारी आर्थिक सहायता बंद कर दी जाये। कहीं पर भी उनको स्वीकार न किया जाये। जिस दिश में भी पाकिस्तानी पासपोर्ट धारक हों, वहीं से उनको धक्के मार कर निकाल दिया जाये। पाकिस्तान की जनता को यह एहसास होने लगे कि पाकिस्तानी के रूप में पहचाने जाना उसके लिये सबसे अधिक घाटे का सौदा हो रहा है। उसे यह लगने लगे कि ये तालिबानी और ये हुक्मरान उसके असली दुश्मन हैं, उसके सारे कष्टों का कारण यही हैं।
मुझे विश्वास है कि यदि पाकिस्तान की जनता को ऐसी शर्मनाक स्थिति झेलनी पड़ेगी तो वह जाग जायेगी और अपने वास्तविक दुश्मनों को पहचान लेगी और अपनी इस दुरवस्था से उबरने के लिये, नफरत फैलाने वाले अपने हुक्मरानों से और जरूरत पड़ेगी तो तालिबानों से भी निपट लेगी ।
सुशान्त सिंहल
www.sushantsinghal.blogspot.com
लेख का आधार स्वयं को संतुष्ट करते हुए तथ्य और सत्य की बिसात पर होना चाहिए ना कि नफ़रत की आग में जल कर प्रज्ञा और कर्नल और गुजरात दंगों और कर्नाटक हमला का समर्थन करते हुए अपनी बात कहना |
ReplyDeleteजनाब, यह सौ प्रतिशत सही है कि इस्लाम की शिक्षा में आतंक की कतई भी गुंजाईश नहीं है | लेकिन फिर भी जैसा कि आप लिख रहे हैं, तो उन शिक्षाओं या उत्प्रेरणाओं को भी उद्ध्वरित कर दीजिये जिससे यह साबित होता हो कि आतंक को नैतिक या तात्विक आधार इस्लाम से मिल रहा है????
अगर ऐसा ही होता तो पिछले पचास साथ साल में इस्लाम जिस तेजी से फ़ैल रहा है, कभी ना फैलता | ख़ास कर नाइन इलेवन के बाद |यह सही है कि इस्लाम ही दुनिया में ऐसा धर्म है जिसके बारे में सबसे ज़्यादा गलतफहमियां हैं और इस्लाम ही एक मात्र ऐसा धर्म है जो दुनिया में सबसे तेजी से फैल रहा है और उसका प्रतिशत है 234% |
islam pure sansar me apni chhavi ke liye khud jimmedar hai..kyunki duniya me keval wahi aisa dharm hai jisme sabhi dharmon ke khatme ke baad dar al islam lagu karne ki baat kahi jati hai..
Deleteहिन्दुस्तान का दर्द द्वारा आयोजित ''बहस'' में भाग लेने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteआपका सहयोग लगातार हमें मिलता रहेगा ऐसी हम आशा करते है
जय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान
संजय सेन सागर
संपादक
आतंकवाद लेखन मे भी आपकी पकड़ सशक्त है बहुत खूब लिखा
ReplyDeleteजय हिन्दुस्तान -जय यंगिस्तान
सुशांत जी सुन्दर लेखन
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ReplyDeleteआप सभी लोग सही बोल रहे हो यह तो बहुत गलत बात है की कोई किसी के धर्म के बारे में ऐसा लिखेगा तो गुस्सा तो आना संभव ही है यह निबंध तो गलत तरीके के शब्द लिखे इस्तेमाल किये गये है भाई
ReplyDeleteकिसी के धर्म के बारे में मत गलत मत लिखो भाई
kisi dharm ko sanrakshan dene ke bajaye us shanti priya dharm ko ek baar padh lijiye unki hi kitabon me gair musalmano ko marne ki shiksha di jati hai, madarson me islamik deshon me khule aam kafir hatya ka path padhaya jata hai..
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