सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ चुनाव लोकतंत्र का महापर्व माना जाता है ,जिसमे जनता अपने मे निहित शक्तियो का प्रयोग करके अपने लिए शासक चुनती है ,लेकिन जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाय कि तंत्र केवल लोक से वोट लेने तक ही अपना सम्बन्ध रखे तो शासक के चुनाव का कोई औचित्य नही रह जाता है,आज हमारे देश मे कुछ ऐसी ही स्थ्िति है बिजली पानी स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार आदिके नाम पर केवल मनोबैज्ञानिक उपलब्धता समझाई जाती है वास्तविक धरातल पर इसमे से कुछ भी हमारे भाग्य मे नही है ,
चुनावो मे सारे ही राजनैतिक दल मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर वोटर से वोट लेना चाह रहै है ,खरीद कर वोट लेना चाह रहे है ,जनता को उनकी समस्याओ से दुर लेजाकर वोट लेना चाह रहे है ,चुनाव बाद वो अपनी कुसी पायेगे हम अपनी समस्याये
फिर चुनाव आयेगा फिर यही चलेगा , ,किसी की कोई कसौटी नही है ,किसी की कोई अग्नि परीक्षा नही है किसी से कोई उम्मीद नही है न हमसे न उनसे क्या यही लोक त्ंत्र है
चुनावो मे सारे ही राजनैतिक दल मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर वोटर से वोट लेना चाह रहै है ,खरीद कर वोट लेना चाह रहे है ,जनता को उनकी समस्याओ से दुर लेजाकर वोट लेना चाह रहे है ,चुनाव बाद वो अपनी कुसी पायेगे हम अपनी समस्याये
फिर चुनाव आयेगा फिर यही चलेगा , ,किसी की कोई कसौटी नही है ,किसी की कोई अग्नि परीक्षा नही है किसी से कोई उम्मीद नही है न हमसे न उनसे क्या यही लोक त्ंत्र है
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर