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जमाने की हवा से अब अछूता कोई नहीं दिखता

बड़ी तब्दीलियाँ हुई हैं अंधेरे से उजाले तक
नया दिखता है सब कुछ हर घर से दिवाले तक

पुराने घर पुराने लोग उनकी पुरानी बातें
बदल गई सारी दुनियाँ उनकी थाली से प्याले तक

चली है जो नई फैशन बनावट की दिखावट की
लगे दिखने हैं कई चेहरे उससे गोरे कई काले तक

ली व्यवहारों ने करवट इस तरह बदले जमाने में
किसी को डर नहीं लगता कहीं करने घोटाले तक

निडर हो स्वार्थ अपना साधने अक्सर ये दिखता है
दिये जाने लगे हैं झूठे मनमाने हवाले तक

बताने बोलने रहने पहिनने के तरीकों में
नया पन है परसने और खाने में निवाले तक

जमाने की हवा से अब अछूता कोई नहीं दिखता
झलक दिखती नई रिश्तों में अब जीजा से साले तक

खनक पैसों की इतनी हुई सुहानी बिक रहा पानी
नहीं देते जगह अब ठहरने को धर्मशाले तक

फरक आया है तासीरों में भारी नये जमाने में
नहीं दे पाते गरमाहट कई ऊनी दुशाले तक

हैं बदले मौसमों ने आज तेवर यों "विदग्ध" अपने
नहीं दे पाते सुख गर्मी में कपड़े ढ़ीले ढ़ाले तक

- प्रो सी बी श्रीवास्तव

Comments

  1. बहुत अच्छा लिखा है पंक्तियां बहुत ही सुंदर हैं

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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