सलिल की कलम से...
अपना कौन,पराया कौन?
कौन बताये इस दुनिया में, अपना कौन,पराया कौन?
गर्दिश में अपने भी भूले, किसको हरदम भाया कौन?
मतलब की साथी है दुनिया, पलक झपकते दूर हुई-
'सलिल' अँधेरे में देखा तो नजर न आया साया कौन?
-- दिव्यनर्मदा,ब्लागस्पाट.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.com
अपना कौन,पराया कौन?
कौन बताये इस दुनिया में, अपना कौन,पराया कौन?
गर्दिश में अपने भी भूले, किसको हरदम भाया कौन?
मतलब की साथी है दुनिया, पलक झपकते दूर हुई-
'सलिल' अँधेरे में देखा तो नजर न आया साया कौन?
-- दिव्यनर्मदा,ब्लागस्पाट.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.com
उम्दा और अच्छी, सच्चाई के बेहद क़रीब.......
ReplyDeleteसंजय जी ने आपकी लघुकथा मेल की और कहा की आज मेरा एक्साम है आप published कर देना आपकी रचनाएँ पडी तो एक सुखद अहसास हुआ अच्छा लिखते है आप !
ReplyDeleteकशिश ! आपका शुक्रिया दिया स्वच्छ सन्देश.
ReplyDeleteशब्द-शब्द में भाव हैं, सचमुच निहित अशेष.
लोकतंत्र की हार है लोभतंत्र की जीत.
नाग-सांप में चयन की, घातक है यह रीत.
पोल खोलकर कर सकें किंचित अगर सुधार.
'सलिल' सृजन तब धन्य हो, सागर सुख-आगार.