नक्श जो दिल पे है वो उनसे मिटाया न गया
हाले दिल हम से मगर उनको सुनाया न गया।
दोष परचार के हम मुल्क ऐडम को निकले
बोझ बरसों के गुनाहों का उठाया न गया
भूल मजनू को पनाह देने की बस कर बैठे
हम से शीशे के मकानों को बचाया न गया
सहर अंगेजी सूरत का असर तो देखो
दीद में बाद निगाहों को हटाया न गया
हम सुनते ही रहे उनका फ़साना शब् भर
हाले दिल अपना मगर उनको सुनाया न गया
नाज़ की उनके बदन की हो बया कैसे आलीम
भीगी पलकों का ही बोझ उनसे उठाया न गया
हाले दिल हम से मगर उनको सुनाया न गया।
दोष परचार के हम मुल्क ऐडम को निकले
बोझ बरसों के गुनाहों का उठाया न गया
भूल मजनू को पनाह देने की बस कर बैठे
हम से शीशे के मकानों को बचाया न गया
सहर अंगेजी सूरत का असर तो देखो
दीद में बाद निगाहों को हटाया न गया
हम सुनते ही रहे उनका फ़साना शब् भर
हाले दिल अपना मगर उनको सुनाया न गया
नाज़ की उनके बदन की हो बया कैसे आलीम
भीगी पलकों का ही बोझ उनसे उठाया न गया
बहुत ही बेहतरीन गजल बार बार बधाई भाई
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