कुण्डली
प्यारी बिटिया! यही है दुनिया का दस्तूर।
हर दीपक के तले है, अँधियारा भरपूर।
अँधियारा भरपूर मगर उजियारे की जय।
बाद अमावस के फिर सूरज ऊगे निर्भय।
हार न मानो, लडो, कहे चाचा की चिठिया।
जय पा अत्याचार मिटाओ, प्यारी बिटिया।
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लोकतंत्र में लोक ही, होता जिम्मेवार।
वही बनाता देश की भली-बुरी सरकार।
छोटे-छोटे स्वार्थ हित, जब तोडे कानून।
तभी समझ लो कर रहा, आजादी का खून।
भारत माँ को पूजकर, हुआ न पूरा फ़र्ज़।
प्रकृति माँ को स्वच्छ रख, तब उतरे कुछ क़र्ज़।
'सलिल' न दूषित कर प्रकृति, मत कर आत्म-विनाश।
अमी-विमल नर्मदा सम, सबको बाँट प्रकाश।
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ग़ज़ल
तू न होकर भी यहीं है मुझको सच समझा गई ।
ओ मेरी माँ! बनके बेटी, फिर से जीने आ गई ।।
रात भर तम् से लड़ा, जब टूटने को दम हुई।
दिए के बुझने से पहले, धूप आकर छा गई ।।
नींव के पत्थर का जब, उपहास कलशों ने किया।
ज़मीं काँपी असलियत सबको समझ में आ गई ।।
सिंह-कुल-कुलवंत कवि कविता करे तो जग कहे।
दिल पे बीती आ जुबां पर ज़माने पर छा गई ।।।
बनाती कंकर को शंकर नित निनादित नर्मदा।
ज्यों की त्यों धर दे चदरिया 'सलिल' को सिखला गई ।।
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दोहे
जो सबको हितकर वही, होता है साहित्य।
कालजयी होता अमर, जैसे हो आदित्य।
सबको हितकर सीख दे, कविता पाठक धन्य।
बडभागी हैं कलम-कवि, कविता सत्य अनन्य।
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प्यारी बिटिया! यही है दुनिया का दस्तूर।
हर दीपक के तले है, अँधियारा भरपूर।
अँधियारा भरपूर मगर उजियारे की जय।
बाद अमावस के फिर सूरज ऊगे निर्भय।
हार न मानो, लडो, कहे चाचा की चिठिया।
जय पा अत्याचार मिटाओ, प्यारी बिटिया।
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लोकतंत्र में लोक ही, होता जिम्मेवार।
वही बनाता देश की भली-बुरी सरकार।
छोटे-छोटे स्वार्थ हित, जब तोडे कानून।
तभी समझ लो कर रहा, आजादी का खून।
भारत माँ को पूजकर, हुआ न पूरा फ़र्ज़।
प्रकृति माँ को स्वच्छ रख, तब उतरे कुछ क़र्ज़।
'सलिल' न दूषित कर प्रकृति, मत कर आत्म-विनाश।
अमी-विमल नर्मदा सम, सबको बाँट प्रकाश।
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ग़ज़ल
तू न होकर भी यहीं है मुझको सच समझा गई ।
ओ मेरी माँ! बनके बेटी, फिर से जीने आ गई ।।
रात भर तम् से लड़ा, जब टूटने को दम हुई।
दिए के बुझने से पहले, धूप आकर छा गई ।।
नींव के पत्थर का जब, उपहास कलशों ने किया।
ज़मीं काँपी असलियत सबको समझ में आ गई ।।
सिंह-कुल-कुलवंत कवि कविता करे तो जग कहे।
दिल पे बीती आ जुबां पर ज़माने पर छा गई ।।।
बनाती कंकर को शंकर नित निनादित नर्मदा।
ज्यों की त्यों धर दे चदरिया 'सलिल' को सिखला गई ।।
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दोहे
जो सबको हितकर वही, होता है साहित्य।
कालजयी होता अमर, जैसे हो आदित्य।
सबको हितकर सीख दे, कविता पाठक धन्य।
बडभागी हैं कलम-कवि, कविता सत्य अनन्य।
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अच्छा लिखा है
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