शब्दों का झुंड
बढ़ता चला जा रहा
आत्महत्या करने
दुःख था
..की क्यूं बदल जाते है अर्थ
शब्दों के प्रयोग करने बाले के अनुसार ,
परिस्थितियों,
विचारधाराओं और
मान्यताओं के अनुरूप भी,
शब्द क्यों खो देते है
अपना अर्थ और अस्तित्व भी कभी कभी.
कोई क्यूँ नही लिखता
शब्दों को उनके वास्तविक रूप में
उनकी अपनी प्रकिर्ति
और पविर्ति के अनुरूप.
हम करते है इनका दुरूपयोग
अपनी भड़ास और दुर्भावना
प्रदर्शित करने के लिए साहित्य में
द्वि अर्थिभाव से.
www. pathiik.blogspot.com
बढ़ता चला जा रहा
आत्महत्या करने
दुःख था
..की क्यूं बदल जाते है अर्थ
शब्दों के प्रयोग करने बाले के अनुसार ,
परिस्थितियों,
विचारधाराओं और
मान्यताओं के अनुरूप भी,
शब्द क्यों खो देते है
अपना अर्थ और अस्तित्व भी कभी कभी.
कोई क्यूँ नही लिखता
शब्दों को उनके वास्तविक रूप में
उनकी अपनी प्रकिर्ति
और पविर्ति के अनुरूप.
हम करते है इनका दुरूपयोग
अपनी भड़ास और दुर्भावना
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अच्छी रचना दोस्त!
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