पुनः प्रकाशित
पिछले दिनों 26 जनवरी के ठीक एक दिन पहले मंगलूर (कर्नाटक) में श्रीरामसेना के कार्यकर्ताओं ने कानून व्यवस्था की चिंता किए बिना जिस तरह से लड़कियों और औरतों को दौड़ा-दौड़ा के पीटा उससे सभ्यता और शालीनता के मानने वालों को बहुत ठेस पहुँची और दुःख पहुँचा। लड़कियों पर असभ्य हमले की इस घटना पर प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया आने में 2 दिन लग गए। इसके अलावा पुलिस ने भी अपनी कार्यवाही में बहुत देरी की। कर्नाटक ने चर्चों पर अभी हमलों के ज़्यादा दिन नहीं बीते तब इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार बजरंगदल के प्रति जिस तरह से नरमी बरती गयी थी वह किसी से छिपा नही है। अतीत को देखते हुए इस बार भी श्रीराम सेना पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार की तरफ़ से कोई ठोस क़दम उठाये जायेंगे, कह पाना मुश्किल है। श्रीरामसेना पर पाबन्दी लगाने पर भी राज्य सरकार टालमटोल सा रवैया अपनाए हुए है। सरकार का बयान भी उस वक्त आया जब श्रीरामसेना के प्रमुख प्रमोद मुथलिक जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था, उन्होंने राज्य सरकार की रूलिंग पार्टी को याद दिलाया कि राज्य में जो सरकार बनी है वो बनी ही है हिंदुत्व एजेंडे पर। मुथलिक ने राज्य सरकार को यह सलाह भी दे दी थी कि राजनितिक फायदे के लिए हिंदूवादी संगठनों को बेज़ा परेशान ना किया जाए। ('हाँ मैं हिंदू हूँ' -मेरा लेख पढ़े यहाँ क्लिक करके)
श्रीरामसेना के प्रमुख प्रमोद मुथलिक का कहना है कि हमें भारतीय संस्कृति को बचाना है और रक्षा करनी है और लड़कियो और औरतों को ग़लत हरकतों और अनैतिक गतिविधियों से बचाना है, इसलिए उनकी सेना ने पब पर हमला किया और वहां पर मौजूद लड़कियों और महिलाओं को दौड़ा दौड़ा कर खूब पीटा। भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर स्वयम्भू संगठनों के इस कृत्य को जायज़ नही ठहराया नहीं जा सकता लेकिन अफ़सोस इस तरह की घटनाओं पर कोई नही बोल रहा है और गुपचुप रूप से राजनैतिक समर्थन भी मिला हुआ है रूलिंग पार्टी ने कहा की पब पर हमला करने वालों से और श्रीरामसेना से उनका कोई रिश्ता या लेनादेना नही है लेकिन अगर वाकई ये सही है तो बजरंगदल, श्रीरामसेना जैसे इन संगठनों के हिंसात्मक कारनामों पर रूलिंग पार्टी को अपना रुख पुरी तरह से साफ़ करना चाहिए।
वास्तव में ऐसे लोगों को हिंदू कहना हिंदू धर्म संस्कृति का अपमान है श्रीरामसेना की गुंडा और दहशत फैलाने वाली फौज ने जो कुछ किया उसकी कड़ी आलोचना देश भर में हुई जो अख़बारों के ज़रिये हमने अपने सबने पढ़ी/देखी। ('हाँ मैं हिंदू हूँ' -मेरा लेख पढ़े यहाँ क्लिक करके)
हमारे यहाँ ये जो कट्टरता का ज़हर हर धर्म में फैलता जा रहा है, वह वास्तव में हमारे लिए किसी आत्मघाती मौत से कम नहीं है। वो जो ये सोचते है किवह ही सही हैं और बाकी सब ग़लत वो वास्तव में सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा कर रहें हैं। उन्हें हमारे भारत, हमारे विश्व और हमारी इंसानियत बिरादरी की असलियत बिल्कुल भी ज्ञान नही है। वो इन्सान और इन्सान में भेद कर रहे हैं, वो अगर किसी अन्य वजह से भेद करते तो समझ में आता भी कि चलो उन्हें शयेद ज्ञान नहीं है असलियत का, मगर जनाब ये तो धर्म को लेकर आपस में बाँट रहें है जबकि दुनिया में जितने भी धर्म हैं या धर्म के ग्रन्थ हैं वो सब एक ही बात कहते है। ना यकीन हो तो अपनी अपनी किताबों और धर्मग्रन्थों के साथ साथ अन्य धर्म के ग्रन्थों का भी उदार मन से मुताला (अध्ययन) करें। सब पता चल जाएगा लेकिन नहीं आप ऐसा करना ही पसंद नहीं करेंगे, हो सकता है कि ये लेख पढ़ते पढ़ते बंद भी कर दे। मगर सच्चाई वाकई तो यही है, ज़रा अपने आप में झांकिए और पूछिये कि क्या हम सब एक नहीं हैं? (इस सम्बन्ध में मेरा लेख पढ़ें- स्वच्छ संदेश ब्लॉग पर)
इसमें कोई शक नहीं कि आधुनिकता व पश्चिमी संस्कृति की अंधी दौड़ में आज की महिलाएं और लड़कियां तमाम मर्यादाएं लाँघ कर शर्म व लिहाज को भूल रही हैं कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है इसलिए यहाँ सभी को अपने तरीके से रहने, खाने-पीने, बोलने घुमने फिरने का समान अधिकार है। लेकिन भाई आज़ादी का यह मतलब नहीं कि आधुनिकता की अंधी गली में प्रवेश कर लिया जाए, ना ही श्रीराम सेना जैसे संगठनों को यह अधिकार है कि वह इस तरह से विरोध करें जो गैर कानूनी हो। आज की युवतियों, औरतों को यह समझाने की ज़रूरत है कि वह मर्यादा में रह भी आज़ादी और मनोरंजन का लुत्फ़ उठा सकती हैं, सलीकों से उनके ज़मीर को जगाया जा सकता है साथ ही उन्हें ये सोचने के लिए विवश किया जा सकता है कि वह अपनी शिक्षा के आधार पर यह तय करें कि भारतीय संस्कृति और पश्चिम की संस्कृति में क्या फर्क है।
"सच तो यह है की लड़कियों की पहली पाठशाला व घर में पहली टीचर माँ है बच्चों विशेष रूप से लड़कियों की परवरिश बचपन में ही करते समय अगर उन्हें मर्यादा में रहने, अपनी सभ्यता संस्कृति और परम्पराओं की शिक्षा देने के साथ ही उन्हें निभाने के लिए प्रेरित किया जाए, अच्छे बुरे की पहचान की आदत डाली जाए तो लड़कियों के क़दम हरगिज़ नहीं बहकेंगे, जिस तरह से आज जो देखने को मिल रहा है उसके लिए कहीं न कहीं ज़िम्मेदार परिवार के लोग, पैरेंट्स भी हैं, जो लड़कियों को ज़रूरत से ज़्यादा छूट दिए हुए हैं।"
इस घटना के बाद पब कल्चर को लेकर जो बहस छिडी है उसके बारे में यही कहा जा सकता है कि पब कल्चर कि जड़ों पर प्रहार करने कि ज़रूरत है जो लोग इनके खिलाफ हैं उनका विरोध पब में शराब पीती लड़कियों से नहीं होना चाहिए बल्कि शराब का विरोध करना/होना चाहिए। जो लोग नई अर्थव्यवस्था/पूजीवादी अर्थव्यवस्था के सक्रीय भागीदार हैं वह इसके दुष्परिणामों को समाज के लिए हानिकारक नहीं मानते। अरे! पूजीवाद तो रिश्तों, भावनाओं तक को कैश करा लेने से भी पीछे नही हटता उनकी निगाह में लड़कियों लड़के का सार्वजनिक रूप से बाँहों में बाहें डाल के शराब पीना या डांस करना कोई बुरी बात नहीं है औद्योगिकरण के अलग चरणों का पब संस्कृति या शराब खानों से सीधा सम्बन्ध शुरू से ही रहा है। देश कि अर्थ व्यवस्था वर्तमान समय में औद्योगिकरण के विशेष दौर से गुज़र रही है जहाँ उत्पादन और श्रम के नए तरीकों ने दिन-रात का अन्तर कम कर दिया है। ऐसा नहीं है कि शराब कोंई नई चीज़ है यह पहले भी पी जाती थी और अब भी पी जाती है, लेकिन अब बड़े पैमाने पर पी जाती है और आज कल ये स्टेटस सिम्बल बन चुका है, जिसके नतीजे में समाज में जो गिरावट आई है वो सबके सामने है।
"शराब अपने अपने आप में बहुत भयानक् चीज़ है, वेदों और कुरान में स्पष्ट रूप से लिखा है कि शराब पीना हराम, वर्जित (prohibited) है। ना यकीन हो तो पढ़ कर देखलें।"
ऐ ईमानदारों, शराब, जुआं और बुत और पांसे तो बस नापाक (बुरे) शैतानी काम हैं, तो तुम लोग इनसे बचे रहो ताकि तुम फलाह (कामयाबी) पाओ. (अल-कुरान 5:90)
मनु स्मृति में पुरज़ोर तरीके से यह मना किया है कि मनुष्य को शराब नहीं पीना चाहिए बल्कि इस की सुगंध तक तो नही लेना चाहिए. (देखें मनु स्मृति 11.146-149)
ऋग्वेद में तो कई जगह पर शराब पीने को निषेध किया गया है, कहाँ गया है कि यह राक्षस, पिशाच और नरक जानेवालों का कार्य है जो ईश्वर के नजदीक बहुत बड़ा पाप है, जिसका कोई प्रायश्चित नहीं है.
तो भई! अब जाग ही जाइये तो अच्छा है, वरना विनाश तो निश्चित है.
आपका: सलीम खान संरक्षक स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश
aaj sara samaaj nashe ki nat me dooba hai jo chinta ki baat hai lekin kiya bhi kya ja sakta hai !
ReplyDeleteaccha likha aapne
हिन्दुस्तान बदल चुका है,वहा के लोग बदल चुके है तो नजरिया भी थोडा बदलना होगा!!
ReplyDeleteबहुत खूब शेर फ़रमाया..सलीम जी !!
ReplyDeleteअब आप जब आये तो अपना फ़ोन नंबर मेल कर दें !!
आप लोगो के द्वारा उठाया गया यह कदम सच में काबिलेतारीफ है |
ReplyDeleteहम अपनी प्रतिक्रियाओं को इस ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त कर सजते हैं | चुकी आधुनिक समय में हुए आतंकवादी घटनाओं से पूरा विश्व दहल उठा है | हम उन लोगो के प्रति सहानुभूति है जिन्होंने अपने सगो को खो दिया | par in pakistaniyon ki besharmiyat par sharminda hain jinhone apni had par ki huyi hai..ab bas bahut ho gya in benchhodon ko inka sahi jaagh dikhana hoga
maaron benchhodo ko
yar sallem lekh badhiya hai sahmat bhi hoon . parantu bich -bich me link dekar ye padhiye wo padhiye ye galat attitude hai. ka padhna hai ye tum deside karoge?
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