क्या भड़ास और मोहल्ला लाइव के मालिक बलात्कारी है
आज कुछ खोज रही थी तो फिर यादों के पन्नों से कुछ निकल आया..आप भी देखिये
देश के मशहूर ब्लॉग ''मोहल्ला''के आँगन मे आज एक ऐसे गुनाह की सुनवाई होनी है जो उस मोहल्ले मे मालिक के लिए है! जी हां मोहल्ला ब्लॉग के मालिक अविनाश जी पर एक युवती ने छेड़छाड़ और जबरदस्ती का आरोप लगाया है इससे पहेले इसी तरह के एक केस मे ''भड़ास ब्लॉग'' के मालिक यशवंत को भी अदालत की दावत मे शरीक होना पड़ा था उन पर भी बलात्कार का आरोप है !!मुद्दा यहाँ पर यह बनता है की आज क्या ब्लोग्गरों को अबनी इज्जत की जरा भी फ़िक्र नहीं है या फिर अगर यह एक षडयंत्र है तो आखिर कब तक इसमें फसकर हम यूँ ही बदनाम होते रहेंगे!इसी दिशा मे अविनाश का एक पत्र और एक बह केश जो भड़ास के यशवंत जी से समबंदित है,जिससे मोहल्ला के संपादक अविनाश ने अपने ब्लॉग पर जगह दी थी और साथ ही साथ खूब हो हल्ला भी मचाया था! तो तय कीजिये आप लोग की यहाँ क्या सच है और क्या झूठ
क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
यशवंत, हिंदी ब्लॉगिंग की दरअसल एक शैतान कथा!
अभी अभी (11:32 AM पर) कविता कृष्णन से बात हुई। कविता ने बताया कि यशवंत ने पीड़ित लड़की को आज सुबह एक एसएमएस किया है। एसएमएस का मजमून है: भगवान ही जानता है कि मैंने कोई ग़लती नहीं की। तुम अपना और अपने परिवार का ख़याल रखो। लड़की डरी हुई है। यह भाषा शातिर धमकी से भरी हुई है। हमें इसका विरोध करना चाहिए और और इस शैतान आदमी के बेकाबू मनोबल को तोड़ने के बारे में सोचना चाहिए।
इन दिनों एनडीटीवी की रात्रिकालीन सेवा का सिपाही हूं। शनिवार की दोपहर नींद खुली, तो कभी हमारे अजीज़ रहे रंजन श्रीवास्तव के कुछ मिस्ड कॉल थे। जागरण से यशवंत को निकाले जाने के बाद इन्हीं रंजन ने यशवंत को अपनी कंपनी में ठौर दिया। लेकिन मित्रता में घात के पुराने शौकीन यशवंत उनकी कंपनी को आगे बढ़ाने के काम नहीं आये। अपनी एक नयी कंपनी और करोड़ों की कमाई के बारे में सोचते रहे। रंजन ने वक्त रहते सलाम-नमस्ते कह दिया और यशवंत को अपनी कंपनी के बारे में और अधिक कायदे से योजना बनाने की फ़ुर्सत दे दी।रंजन को मैंने कॉल बैक किया। उन्होंने जो ख़बर सुनायी, उसने मुझे हैरान तो नहीं किया, दुखी ज़रूर किया। इसके बाद नींद की तमाम कोशिशों के बावजूद वो मुझसे दूर ही रही।शाम में रवीश का एसएमएस आया, जो आम तौर पर हर शाम को आता है। ‘जगे हैं क्या?’ उनसे सैंड ऑफ द आई पर एक आलेख, जिसमें रवीश का यूं ही बेवजह ज़िक्र किया गया था, के बारे में ख़बर मिली। इस ब्लॉग के मेंबर कभी यशवंत भी थे। रवीश ने ये भी कहा कि आलेख पर किसी कठपिंगल का एक कमेंट है यशवंत के बारे में। मैंने देखा कि वो टिप्पणी रंजन की ख़बर को तस्दीक़ कर रही थी। रवीश से मैंने कहा कि हम सिर्फ़ अफ़सोस ज़ाहिर कर सकते हैं। अफ़सोस तो इस बात का ज़्यादा था कि उस टिप्पणी पर सैंड ऑफ द आई के लेखक-पाठक पूरी तरह ख़ामोश थे, हैं। जबकि मसला स्त्री के सम्मान पर हमले से जुड़ा था।ख़ैर, सब देख-सुन कर हमने फिर सोने की कोशिश की और नींद अब भी नहीं आयी। साढ़े दस बजे रात, जब दफ़्तर जाने से पहले शेव करने के लिए ठोढ़ी पर झाग फैला रहा था, कविता का फोन आया। उन्होंने मुझसे पूछा कि आपको पता है कि यशवंत नाम के एक आदमी ने, जो ‘शायद’ ब्लॉगिंग वगैरा भी करता है, उसने किस तरह का कृत्य किया है। मैंने कविता से कहा, कुछ-कुछ ख़बर तो मिल रही है, लेकिन सच्चाई के सीक्वेंस में वो ढल नहीं पा रही। अब तक मैं इसे गॉशिप का हिस्सा मान रहा हूं, आप जो जानती हैं - मुझे बताइए। फिर कविता ने पूरी घटना तफसील से बतायी।
यशवंत ने पार्टी के एक साथी की बेटी से बलात्कार की कोशिश की। कभी थोड़ा वक्त पार्टी में गुज़ारने के चलते यशवंत से पार्टी कॉमरेड की दोस्ती हो गयी थी। आमतौर पर दोस्ती में भरोसे का ही सहारा होता है। इसी भरोसे की रोशनी में वो साथी यशवंत के कहने पर दिल्ली आये और उनके घर रुके। उनकी बेटी भी दिल्ली में काम की तलाश में पिता के साथ चली आयी थी। शुक्रवार की सुबह यशवंत ने दोस्त की बेटी को अकेला पाकर उससे अश्लील हरकत करनी शुरू कर दी। विरोध करने पर यशवंत ज़बर्दस्ती पर उतर आये, तो किसी तरह धक्का देकर लड़की घर से बाहर निकल आयी। उसके पास पैसे नहीं थे। उसने पीसीओ बूथ वाले से रिक्वेस्ट करके लखनऊ कॉल किया। वहां से कविता कृष्णन का नंबर लिया और उन्हें फोन करके अपना हाल बयान किया। कविता पहुंची और उसे अपने साथ ले गयी। न्यू अशोकनगर थाने में एफआईआर नंबर 184 के तहत धारा 354 का मुक़दमा दर्ज किया गया। पुलिस यशवंत को पकड़ कर थाने ले आयी। चूंकि धारा बलात्कार की कोशिश का था, दूसरी सुबह कोई दोस्त उन्हें ज़मानत पर छुड़ा कर ले गया। अब मुक़दमा चलते रहना है और अदालत के कठघरे में यशवंत को अभी बार-बार आना है।रात करीब 12 बजे दफ़्तर पहुंचा, तो इरफ़ान का मेल इनबॉक्स में पड़ा था, ‘मित्र भड़ासाधिराज के बारे में ये ख़बर क्या है?’ मैंने इरफ़ान के दिये लिंक पर जाकर देखा, तो वही ख़बर थी, जो सैंड ऑफ द आई पर टिप्पणी के रूप में जारी की गयी थी। लेकिन इस लिंक पर यशवंत की टिप्पणी भी मौजूद थी, ‘शुक्रिया, मेरी तारीफ़ करने के लिए। आप जैसे लोगों के चलते ही मेरी ख्याति-कुख्याति दिन ब दिन बढ़ रही है। आपने तो मेरे ख़िलाफ लिखने के लिए एक ही दिन में पूरा का पूरा ब्लाग बना डाला और उसकी पहली पोस्ट में मेरे खिलाफ जम कर भड़ास निकाली। चलिए, आप जो कुछ कह रहे हैं, उसकी एक-एक लाइन को मैं सच मान ले रहा हूं। अब आप खुश! यशवंत।’ एक ख़ास किस्म की नाटकीयता के साथ सच को स्वीकार करके यशवंत इस टिप्पणी में ये प्रदर्शित करना चाह रहे हैं, जैसे ख़बर झूठी हो। लेकिन ख़बर सच्ची है और सौ फ़ीसदी सच्ची है।यशवंत मेरे दोस्त कभी नहीं रहे। रंजन श्रीवास्तव ने उनसे एक बार हमारा तआरुफ करवाया। उनमें एक भदेस किस्म की मौलिकता मुझे दिखी - लेकिन उस मौलिकता की चादर इतनी मैली होगी - छोटी-बड़ी चंद घटनाओं के बाद अब इस बात का पूरा एहसास मुझे है। उनके पास कोई विचार भी नहीं कि वैचारिक ज़मीन के एक दूसरे के विपरीत छोर पर खड़े होने के बावजूद हम संवाद के दोस्ताना ड्रामे की स्क्रिप्ट लिखते रहें। बहरहाल, मैं कोई अभय तिवारी नहीं हूं कि दोस्त के धृतकर्मों का बचाव सिर्फ़ इसलिए करूं कि वो दोस्त है। इसलिए, एतद् द्वारा ये एलान करता हूं कि यशवंत नाम के शख्स से अब मेरे कोई संबंध नहीं हैं। जिन परिस्थितियों में रिश्ते बने थे, मैं उन परिस्थितियों के लिए ग्लानि का अनुभव कर रहा हूं।आगे पढ़ें के आगे यहाँ
आज कुछ खोज रही थी तो फिर यादों के पन्नों से कुछ निकल आया..आप भी देखिये
देश के मशहूर ब्लॉग ''मोहल्ला''के आँगन मे आज एक ऐसे गुनाह की सुनवाई होनी है जो उस मोहल्ले मे मालिक के लिए है! जी हां मोहल्ला ब्लॉग के मालिक अविनाश जी पर एक युवती ने छेड़छाड़ और जबरदस्ती का आरोप लगाया है इससे पहेले इसी तरह के एक केस मे ''भड़ास ब्लॉग'' के मालिक यशवंत को भी अदालत की दावत मे शरीक होना पड़ा था उन पर भी बलात्कार का आरोप है !!मुद्दा यहाँ पर यह बनता है की आज क्या ब्लोग्गरों को अबनी इज्जत की जरा भी फ़िक्र नहीं है या फिर अगर यह एक षडयंत्र है तो आखिर कब तक इसमें फसकर हम यूँ ही बदनाम होते रहेंगे!इसी दिशा मे अविनाश का एक पत्र और एक बह केश जो भड़ास के यशवंत जी से समबंदित है,जिससे मोहल्ला के संपादक अविनाश ने अपने ब्लॉग पर जगह दी थी और साथ ही साथ खूब हो हल्ला भी मचाया था! तो तय कीजिये आप लोग की यहाँ क्या सच है और क्या झूठ
क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
यशवंत, हिंदी ब्लॉगिंग की दरअसल एक शैतान कथा!
अभी अभी (11:32 AM पर) कविता कृष्णन से बात हुई। कविता ने बताया कि यशवंत ने पीड़ित लड़की को आज सुबह एक एसएमएस किया है। एसएमएस का मजमून है: भगवान ही जानता है कि मैंने कोई ग़लती नहीं की। तुम अपना और अपने परिवार का ख़याल रखो। लड़की डरी हुई है। यह भाषा शातिर धमकी से भरी हुई है। हमें इसका विरोध करना चाहिए और और इस शैतान आदमी के बेकाबू मनोबल को तोड़ने के बारे में सोचना चाहिए।
इन दिनों एनडीटीवी की रात्रिकालीन सेवा का सिपाही हूं। शनिवार की दोपहर नींद खुली, तो कभी हमारे अजीज़ रहे रंजन श्रीवास्तव के कुछ मिस्ड कॉल थे। जागरण से यशवंत को निकाले जाने के बाद इन्हीं रंजन ने यशवंत को अपनी कंपनी में ठौर दिया। लेकिन मित्रता में घात के पुराने शौकीन यशवंत उनकी कंपनी को आगे बढ़ाने के काम नहीं आये। अपनी एक नयी कंपनी और करोड़ों की कमाई के बारे में सोचते रहे। रंजन ने वक्त रहते सलाम-नमस्ते कह दिया और यशवंत को अपनी कंपनी के बारे में और अधिक कायदे से योजना बनाने की फ़ुर्सत दे दी।रंजन को मैंने कॉल बैक किया। उन्होंने जो ख़बर सुनायी, उसने मुझे हैरान तो नहीं किया, दुखी ज़रूर किया। इसके बाद नींद की तमाम कोशिशों के बावजूद वो मुझसे दूर ही रही।शाम में रवीश का एसएमएस आया, जो आम तौर पर हर शाम को आता है। ‘जगे हैं क्या?’ उनसे सैंड ऑफ द आई पर एक आलेख, जिसमें रवीश का यूं ही बेवजह ज़िक्र किया गया था, के बारे में ख़बर मिली। इस ब्लॉग के मेंबर कभी यशवंत भी थे। रवीश ने ये भी कहा कि आलेख पर किसी कठपिंगल का एक कमेंट है यशवंत के बारे में। मैंने देखा कि वो टिप्पणी रंजन की ख़बर को तस्दीक़ कर रही थी। रवीश से मैंने कहा कि हम सिर्फ़ अफ़सोस ज़ाहिर कर सकते हैं। अफ़सोस तो इस बात का ज़्यादा था कि उस टिप्पणी पर सैंड ऑफ द आई के लेखक-पाठक पूरी तरह ख़ामोश थे, हैं। जबकि मसला स्त्री के सम्मान पर हमले से जुड़ा था।ख़ैर, सब देख-सुन कर हमने फिर सोने की कोशिश की और नींद अब भी नहीं आयी। साढ़े दस बजे रात, जब दफ़्तर जाने से पहले शेव करने के लिए ठोढ़ी पर झाग फैला रहा था, कविता का फोन आया। उन्होंने मुझसे पूछा कि आपको पता है कि यशवंत नाम के एक आदमी ने, जो ‘शायद’ ब्लॉगिंग वगैरा भी करता है, उसने किस तरह का कृत्य किया है। मैंने कविता से कहा, कुछ-कुछ ख़बर तो मिल रही है, लेकिन सच्चाई के सीक्वेंस में वो ढल नहीं पा रही। अब तक मैं इसे गॉशिप का हिस्सा मान रहा हूं, आप जो जानती हैं - मुझे बताइए। फिर कविता ने पूरी घटना तफसील से बतायी।
यशवंत ने पार्टी के एक साथी की बेटी से बलात्कार की कोशिश की। कभी थोड़ा वक्त पार्टी में गुज़ारने के चलते यशवंत से पार्टी कॉमरेड की दोस्ती हो गयी थी। आमतौर पर दोस्ती में भरोसे का ही सहारा होता है। इसी भरोसे की रोशनी में वो साथी यशवंत के कहने पर दिल्ली आये और उनके घर रुके। उनकी बेटी भी दिल्ली में काम की तलाश में पिता के साथ चली आयी थी। शुक्रवार की सुबह यशवंत ने दोस्त की बेटी को अकेला पाकर उससे अश्लील हरकत करनी शुरू कर दी। विरोध करने पर यशवंत ज़बर्दस्ती पर उतर आये, तो किसी तरह धक्का देकर लड़की घर से बाहर निकल आयी। उसके पास पैसे नहीं थे। उसने पीसीओ बूथ वाले से रिक्वेस्ट करके लखनऊ कॉल किया। वहां से कविता कृष्णन का नंबर लिया और उन्हें फोन करके अपना हाल बयान किया। कविता पहुंची और उसे अपने साथ ले गयी। न्यू अशोकनगर थाने में एफआईआर नंबर 184 के तहत धारा 354 का मुक़दमा दर्ज किया गया। पुलिस यशवंत को पकड़ कर थाने ले आयी। चूंकि धारा बलात्कार की कोशिश का था, दूसरी सुबह कोई दोस्त उन्हें ज़मानत पर छुड़ा कर ले गया। अब मुक़दमा चलते रहना है और अदालत के कठघरे में यशवंत को अभी बार-बार आना है।रात करीब 12 बजे दफ़्तर पहुंचा, तो इरफ़ान का मेल इनबॉक्स में पड़ा था, ‘मित्र भड़ासाधिराज के बारे में ये ख़बर क्या है?’ मैंने इरफ़ान के दिये लिंक पर जाकर देखा, तो वही ख़बर थी, जो सैंड ऑफ द आई पर टिप्पणी के रूप में जारी की गयी थी। लेकिन इस लिंक पर यशवंत की टिप्पणी भी मौजूद थी, ‘शुक्रिया, मेरी तारीफ़ करने के लिए। आप जैसे लोगों के चलते ही मेरी ख्याति-कुख्याति दिन ब दिन बढ़ रही है। आपने तो मेरे ख़िलाफ लिखने के लिए एक ही दिन में पूरा का पूरा ब्लाग बना डाला और उसकी पहली पोस्ट में मेरे खिलाफ जम कर भड़ास निकाली। चलिए, आप जो कुछ कह रहे हैं, उसकी एक-एक लाइन को मैं सच मान ले रहा हूं। अब आप खुश! यशवंत।’ एक ख़ास किस्म की नाटकीयता के साथ सच को स्वीकार करके यशवंत इस टिप्पणी में ये प्रदर्शित करना चाह रहे हैं, जैसे ख़बर झूठी हो। लेकिन ख़बर सच्ची है और सौ फ़ीसदी सच्ची है।यशवंत मेरे दोस्त कभी नहीं रहे। रंजन श्रीवास्तव ने उनसे एक बार हमारा तआरुफ करवाया। उनमें एक भदेस किस्म की मौलिकता मुझे दिखी - लेकिन उस मौलिकता की चादर इतनी मैली होगी - छोटी-बड़ी चंद घटनाओं के बाद अब इस बात का पूरा एहसास मुझे है। उनके पास कोई विचार भी नहीं कि वैचारिक ज़मीन के एक दूसरे के विपरीत छोर पर खड़े होने के बावजूद हम संवाद के दोस्ताना ड्रामे की स्क्रिप्ट लिखते रहें। बहरहाल, मैं कोई अभय तिवारी नहीं हूं कि दोस्त के धृतकर्मों का बचाव सिर्फ़ इसलिए करूं कि वो दोस्त है। इसलिए, एतद् द्वारा ये एलान करता हूं कि यशवंत नाम के शख्स से अब मेरे कोई संबंध नहीं हैं। जिन परिस्थितियों में रिश्ते बने थे, मैं उन परिस्थितियों के लिए ग्लानि का अनुभव कर रहा हूं।आगे पढ़ें के आगे यहाँ
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ReplyDeleteजो भी हो रहा है बुरा हो रहा है !!
ReplyDeleteलेकिन इसे ब्लॉग जगत और ब्लोग्गरों की अश्मित जुडी हुई है ख्याल रखना होगा!!
उसका उतना नाम हुआ है जो जितना बदनाम हुआ है.कल तक avinaash जी को yashwant जी जैसे लोगों से parhej था आज wo भी usi shreni मे शामिल हो गए है
ReplyDeleteदोनों सफलता और दोलत की मदहोशी में चूर हो रहे है ,अब आयासी ही सूझेगी
ReplyDeleteअब लोगों की भावनाओं को काबू तो किया नहीं जा सकता है जो भी हो रहा है बह पापी तन की गलती है !!
ReplyDeleteखैर कोई बात नहीं...सब चलेगा !!
ऊँचे लोग है इतने से आरोपों मे इनको सरम कहा आने वाली है !!
यशवंत जी को इतने अच्छे तरीके से नहीं परखा लेकिन अविनाश जी के ब्लॉग को देखने के बाद मैं उन्हें निर्दोष ही समझूंगा !!
ReplyDeleteये उन पर एक आरोप है !!
शान्ती बनाये रखे
ReplyDeleteयहाँ जो कहा गया ..या जो बताया गया ..वो कुछ नया नहीं है
ReplyDeleteऐसे खबर तो हर अख़बार के फ्रंट पेज पे मिल जाती है
और वैसे भी सिर्फ एक या दो मुलाकातों में किसी पे भी विश्वास करना
कहा की अक्लमंदी है ...