देखा है मैंने हर मंज़र हँसना, खेलना, इठलाना
तुम नन्हे क़दमों से दौड़ते हुए बाहर आती थी
तुम्हारा प्यारा सा चेहरा और वो मीठी शैतानियाँ
खिलखिलाती मुस्कान कैसे भूल जाऊं मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
कैसे भूल जाऊं मैं कल ही की तो बात थी जैसे
चलना सीखा था तुमने तो भागती थी मेरी ही तरफ़
वो नन्हे कदम बढ़ते थे मेरी ओर फिर घर की ओर
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
वो पहली बार जब मुझ पर गिरी थी तुम
साईकिल से अपनी नौ साल की उम्र में
चोट लगी थी तुमको, दर्द महसूस किया मैंने
आंसू देखे थे तुम्हारी आँखों से बहते मैंने
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
वो खेलना, वो दौड़ना, वो खिलखिलाना तेरा
ऊँगली छोड़ कर बाहर की ओर भागना तेरा
वो अल्हड वो मासूम सी चाहत तेरी
आइसक्रीम वाले को रोकना और घरवालों से झगड़ना तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
तुम्हारे पिता का दुलार, माँ का वो लाड
वो भाइयों से लड़ना तेरा फिर प्यार से मनाना भी तेरा
चलती साईकिल से गिरकर मुझ पर चोट खाना तेरा
वो खो-खो, वो कबड्डी, वो छुपाछुपी का खेल तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
जब खीचती थी रेखाएं सीने पे मेरे ईट से, चौक से, कोयले से
और खेलती थी खेल अपने ही ढंग के बड़े अजीब से
करती थी परेशान सभी को थोडी सी इमानदारी, थोडी बेईमानी से
लड़कपन की वो उम्र, अल्हड वो हँसी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
मैं ही तो रोज करती थी हिफाजत उसकी
स्कूल छोड़ना, घर लाना बन गई जिमेदारी मेरी
नन्हे क़दमों से चलकर आती थी वो मेरे पास
मुझसे मिलकर ही होती थी वो बस पर सवार
उसके जाने की बेकरारी और लौटने का इन्तजार
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
अब सायानी हो गई है बिटिया मेरी लेकिन नहीं गया लड़कपन
देर शाम तक साइकिल का पहिया घुमाकर गुदगुदाती है मुझे
अपने साथ दो और को साइकिल पर लाद दबाना चाहती है मुझे
कैसे बताऊँ कितना खुश हूँ मैं उन्ही नन्हे क़दमों की आहात यद् आती मुझे
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
कुछ दुखी हूँ मैं उम्र के साथ बदल रही सोच उसकी
नहीं है शायद अब कोई स्थान मेरा नजरों में उसकी
महसूस कर रही हूँ मैं उसके व्यवहार में यह बेरुखी
चलने लगी स्कूटी पे मेरी तरफ़ नहीं वो देखती
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
दिन कैसे बीतते हैं कैसे बताऊँ
वो जो थी नन्ही परी हो गई सायानी गुडिया
विवाह भी उसका हो गया तय खुश थी वो और मैं भी
उसकी डोली मुझ पर ही तो चल कर आएगी
नाच, गाना, आतिशबाजी और खुशियों का वो सेहरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
आज एक अजब अनुभव हो रहा है पता नहीं
वो नन्हे कदम जो कूदते थे मुझ पर आज हो रहे विदा
वो खुस है और आंखों में आंसू भी कैसी है ये घड़ी
मत करना तुम अहसास अपने अकेलेपण का
जहाँ तुम जाओगी मैं रहूँगा साथ तुम्हारे सदा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
डोली से उतरेंगे जब पैर तुम्हारे आगमन को मैं रहूंगी तुम्हारे
क्योंकि नहीं भुला सकती मैं उन नन्हे क़दमों की आहत को
तुम भले मत देखो मेरी ओर पर मैं नहीं भूल सकती
वो चंचलता, वो भोलापन, वो सच्ची दोस्ती तुम्हारी
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
ज्ञानेंद्र
हिंदुस्तान, आगरा
rastey2manzil.blogspot.com
तुम नन्हे क़दमों से दौड़ते हुए बाहर आती थी
तुम्हारा प्यारा सा चेहरा और वो मीठी शैतानियाँ
खिलखिलाती मुस्कान कैसे भूल जाऊं मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
कैसे भूल जाऊं मैं कल ही की तो बात थी जैसे
चलना सीखा था तुमने तो भागती थी मेरी ही तरफ़
वो नन्हे कदम बढ़ते थे मेरी ओर फिर घर की ओर
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
वो पहली बार जब मुझ पर गिरी थी तुम
साईकिल से अपनी नौ साल की उम्र में
चोट लगी थी तुमको, दर्द महसूस किया मैंने
आंसू देखे थे तुम्हारी आँखों से बहते मैंने
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
वो खेलना, वो दौड़ना, वो खिलखिलाना तेरा
ऊँगली छोड़ कर बाहर की ओर भागना तेरा
वो अल्हड वो मासूम सी चाहत तेरी
आइसक्रीम वाले को रोकना और घरवालों से झगड़ना तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
तुम्हारे पिता का दुलार, माँ का वो लाड
वो भाइयों से लड़ना तेरा फिर प्यार से मनाना भी तेरा
चलती साईकिल से गिरकर मुझ पर चोट खाना तेरा
वो खो-खो, वो कबड्डी, वो छुपाछुपी का खेल तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
जब खीचती थी रेखाएं सीने पे मेरे ईट से, चौक से, कोयले से
और खेलती थी खेल अपने ही ढंग के बड़े अजीब से
करती थी परेशान सभी को थोडी सी इमानदारी, थोडी बेईमानी से
लड़कपन की वो उम्र, अल्हड वो हँसी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
मैं ही तो रोज करती थी हिफाजत उसकी
स्कूल छोड़ना, घर लाना बन गई जिमेदारी मेरी
नन्हे क़दमों से चलकर आती थी वो मेरे पास
मुझसे मिलकर ही होती थी वो बस पर सवार
उसके जाने की बेकरारी और लौटने का इन्तजार
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
अब सायानी हो गई है बिटिया मेरी लेकिन नहीं गया लड़कपन
देर शाम तक साइकिल का पहिया घुमाकर गुदगुदाती है मुझे
अपने साथ दो और को साइकिल पर लाद दबाना चाहती है मुझे
कैसे बताऊँ कितना खुश हूँ मैं उन्ही नन्हे क़दमों की आहात यद् आती मुझे
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
कुछ दुखी हूँ मैं उम्र के साथ बदल रही सोच उसकी
नहीं है शायद अब कोई स्थान मेरा नजरों में उसकी
महसूस कर रही हूँ मैं उसके व्यवहार में यह बेरुखी
चलने लगी स्कूटी पे मेरी तरफ़ नहीं वो देखती
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
दिन कैसे बीतते हैं कैसे बताऊँ
वो जो थी नन्ही परी हो गई सायानी गुडिया
विवाह भी उसका हो गया तय खुश थी वो और मैं भी
उसकी डोली मुझ पर ही तो चल कर आएगी
नाच, गाना, आतिशबाजी और खुशियों का वो सेहरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
आज एक अजब अनुभव हो रहा है पता नहीं
वो नन्हे कदम जो कूदते थे मुझ पर आज हो रहे विदा
वो खुस है और आंखों में आंसू भी कैसी है ये घड़ी
मत करना तुम अहसास अपने अकेलेपण का
जहाँ तुम जाओगी मैं रहूँगा साथ तुम्हारे सदा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
डोली से उतरेंगे जब पैर तुम्हारे आगमन को मैं रहूंगी तुम्हारे
क्योंकि नहीं भुला सकती मैं उन नन्हे क़दमों की आहत को
तुम भले मत देखो मेरी ओर पर मैं नहीं भूल सकती
वो चंचलता, वो भोलापन, वो सच्ची दोस्ती तुम्हारी
कैसे भूल जाऊँ मैं गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की
ज्ञानेंद्र
हिंदुस्तान, आगरा
rastey2manzil.blogspot.com
अच्छी रचना नही बल्कि बहुत अच्छी रचना!!
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