नंगे घूमना मेरा व्यक्तिगत अधिकार हो सकता है पर यदि इससे समाज में अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो उनकी खातिर मुझे अपने इस अधिकार को अपने बैडरूम तक सीमित कर लेना चाहिये - यही मेरा धर्म है। यह ठीक उसी प्रकार से है कि फुल वॉल्यूम पर गाना सुनना मेरा मूलभूत अधिकार होगा पर अगर मेरे पड़ोस में बच्चे बोर्ड की परीक्षाओं में व्यस्त हैं तो मुझे अपने इस अधिकार में कटौती करनी होगी। तभी मैं अच्छे पड़ोसी का धर्म निभा पाऊंगा । यदि हम धर्म - अधर्म की, कर्तव्य - अकर्तव्य की विश्व की इस प्राचीनतम परिभाषा को समझ लें, हृदयंगम कर लें तो हम पुनः एक बार सही मार्ग पर चल निकलेंगे। पर समस्या ये है कि हमारे पाठ्यक्रम में यह शिक्षा कहीं है ही नहीं । और तो क्या कहें, धर्म का पाठ पढ़ाने को अपनी जीविका बनाने वाले पंडितों, पुरोहितों, कथा-वाचकों, शिक्षा-शास्त्रियों को भी यह जानकारी देने की आवश्यकता है, ऐसा मेरा अनुभव है।
Sushant K. Singhal
Blog : www.sushantsinghal.blogspot.com
email : info@sushantsinghal.com
singhal.sushant@gmail.com
अच्छी अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया बहुत खूब !!!
ReplyDelete