भारत वर्ष की महानता को समर्पित 'मेरे मंथन'
मेरा उद्देश्य देश में हिंदी साहित्य के बल पर वैचारिक आंधी फैलाना हैं,सुविचारों की बोवनी कर अच्छी फसल उगाना हैं,जिसका उपभोग कर लोग बीती पीड़ी का नाम सम्मान से ले और भारत वर्ष के उस अन्तराल पर खड़े हो जिसके दूसरी और जगतगुरु का ताज फिर सिरमौर दिखाई पड़े,साहित्य संस्कृति की सही आत्मा लिए हैं हमारा भारत वर्ष, यही शक्तिया हैं, जो दूसरा कोहिनूर ओए तख्त-ऐ-ताउस नहीं बन शक्ति चाहे तथाकथित महाशाक्तिया अपने खजाने लुटा दे,
'भारतीयता' मानव आत्मा दूसरा पावन रूप हैं,जो परम पिता परमेश्वर ने संवारा हैं. यही वो देश हे जहा एक व्यक्ति के सड़क पर गिर जाने के बाद कई हाथ बिना किसी स्वार्थ के बढ जाते हैं, एक पल को लगता हैं, जेसे वो पथिक अपने परिवार के साथ होने के विश्वास के कारण ही निश्चिंत गिरा हो, इस भरोसे के साथ की कोई तो संभालेगा,
कहन-
फिक्र करू ज़ख्मो की,मुझे फुर्सत नहीं
मरहम लिए कई हाथ,हाथ लगे हैं
इन सहयोग भावो के कारण हर भारतीय दर्द के लिए यह कहता है, इतनी परस्पर आत्मीयता हैं-
मुझे क्या पता दर्द क्या हैं ?-
शायद , चुभन टकराते भावो की हैं ।
घुटन अपनेपन की आहों की हैं
मदद ली हुई चाहो की हैं,
मीठी खुशबु भावो की हैं।
' कुछ नहीं होता दर्द'
आवाज़ ये, भरोसे लिए दावों की हैं
दर्द को महसूस कर जिया हैं तो भारतीयों ने,
"बेटी की विदाई,में ,
मीत की रुसवाई में ,
भीड़ में, तन्हाई में ,
अब तो दर्द की, क्या औकात रही हैं
उड़ता बस एक अंगडाई में.
(यहीं देश की सच्चाई हैं )
कौन कहता हैं की दर्द सहा नहीं जाता, हर भारतीय सहता हैं,सहमता हैं वो तो ये बेशर्म दर्द हैं,जो फिर लौट आता हैं हर कोई यहाँ संभलना जनता हैं,
हमारे देश में कितने भी विस्फोटक आंतक दूत लगा ले, हमारी गरिमा को आंच नहीं आ सकती कितने विष्फोट किये कितना हवा में ज़हर घोला पर 'मुबई के वड़ा-पाव' की महक नहीं घटा पाया, कितनी जगह साफ की, लोकल ट्रेनों की भीड़,भीड़ ही रही. चंद दिनों में मुंबई सडको पर लौट आई क्या,इससे बड़ी सहनशीलता कहाँ हैं, और चाहे उनकी सहनशीलता न मानो, सबल-शीलता मानने से इंकार शायद ही कोई कर पाए,
कथन हैं कंफुसिउस का
' बड़ा गौरव उसमे हैं, जब तुम गिरकर फिर संभलो, नाकि कभी न गिरने में '
इतनी उठापटक के बाद माथे पर सिलवट नहीं आने देती हैं, भारतीयता. ऐसी हैं,भारतीयता
और जहा तक बात हे अखंडता की वो तो न पूछो तो बेहतर होगा क्यूंकि जितने हमले शताब्दियों से भारत पर हुए हे हैं उतने हमले, स्वर्ग में भी होते तो इन्द्र त्रिशक्ति की शरण में चले जाते पर भारत अखंड महाशक्ति तब भी था,और आज उसी की पुरजोर और सात्विक कोशिश में हैं,
चाहे कुछ हो जाये ,संस्कृति ,संस्कार और मूल्यों की कसौटी पर जगत गुरु तब भी था, आज भी हैं महाशक्ति का तमगा लिए जो बजरबट्टू देश अपनी शेखिया भागारता हैं,वहां की जनता एक कीडे बराबर के आंतकवादी कारण उसके राजा (जूते वाले ) की रातो नींदों के लिए दुआ मांगते रहे, हमारा देश जेसा भी सबल हैं इतनी टूटन के बाद बिना निशानों के जख्म सिये हुए भारत आज अदब-आत्मसम्मान के साथ खडा रहता हैं,
यहीं अमर भारत वर्ष हैं भावो से लिप्त 'भारत', यहाँ रगों में अहसास बहते हैं,एकता की पावन मिसाल दिए भारत आज फिर महाशक्ति बनाने की होड़ में हैं,बस प्रेम का सन्देश लिए आज की आवाज़ हैं 'भारतीय शक्ति'.
जज्बा दिलों में बसा हैं इनके फिर भी भारत माता परम वन्दनीय हैं,
दिलों में मोह्हब्ते, बसर करती हैं,
राहों में साजिशे,नज़र रहती हैं,
पैर धोकर गंगा जल से अपने ,
हर तपिश भारतीयता सहती हैं।
इसी भारत भावो को को मन में गांठ बांध कर सफ़र शुरू करते हैं,माता भारती तेरे चरणों में वंदन करते हैं,
" अहसासों की ताकाझांकी,प्रेम भाव की पूरनमासी
अमावस के फेर को बदले ,हर एक भारतवासी "
इसी पावन उद्देश्य के साथ, मानवजाति सेवार्थ लेखनी के साथ ईमानदार रहूँगा,
" भाव-बल संग गांठ लिए,अहसासों को गंगा घाट चाले,
सकिर्तन मन विकास करावे,यही स्वप्न 'बस अमन' पाले।"
'सर्वे भवन्तुः सुखिनः' के भाव संग
अमन 'बस अमन'
मेरा उद्देश्य देश में हिंदी साहित्य के बल पर वैचारिक आंधी फैलाना हैं,सुविचारों की बोवनी कर अच्छी फसल उगाना हैं,जिसका उपभोग कर लोग बीती पीड़ी का नाम सम्मान से ले और भारत वर्ष के उस अन्तराल पर खड़े हो जिसके दूसरी और जगतगुरु का ताज फिर सिरमौर दिखाई पड़े,साहित्य संस्कृति की सही आत्मा लिए हैं हमारा भारत वर्ष, यही शक्तिया हैं, जो दूसरा कोहिनूर ओए तख्त-ऐ-ताउस नहीं बन शक्ति चाहे तथाकथित महाशाक्तिया अपने खजाने लुटा दे,
'भारतीयता' मानव आत्मा दूसरा पावन रूप हैं,जो परम पिता परमेश्वर ने संवारा हैं. यही वो देश हे जहा एक व्यक्ति के सड़क पर गिर जाने के बाद कई हाथ बिना किसी स्वार्थ के बढ जाते हैं, एक पल को लगता हैं, जेसे वो पथिक अपने परिवार के साथ होने के विश्वास के कारण ही निश्चिंत गिरा हो, इस भरोसे के साथ की कोई तो संभालेगा,
कहन-
फिक्र करू ज़ख्मो की,मुझे फुर्सत नहीं
मरहम लिए कई हाथ,हाथ लगे हैं
इन सहयोग भावो के कारण हर भारतीय दर्द के लिए यह कहता है, इतनी परस्पर आत्मीयता हैं-
मुझे क्या पता दर्द क्या हैं ?-
शायद , चुभन टकराते भावो की हैं ।
घुटन अपनेपन की आहों की हैं
मदद ली हुई चाहो की हैं,
मीठी खुशबु भावो की हैं।
' कुछ नहीं होता दर्द'
आवाज़ ये, भरोसे लिए दावों की हैं
दर्द को महसूस कर जिया हैं तो भारतीयों ने,
"बेटी की विदाई,में ,
मीत की रुसवाई में ,
भीड़ में, तन्हाई में ,
अब तो दर्द की, क्या औकात रही हैं
उड़ता बस एक अंगडाई में.
(यहीं देश की सच्चाई हैं )
कौन कहता हैं की दर्द सहा नहीं जाता, हर भारतीय सहता हैं,सहमता हैं वो तो ये बेशर्म दर्द हैं,जो फिर लौट आता हैं हर कोई यहाँ संभलना जनता हैं,
हमारे देश में कितने भी विस्फोटक आंतक दूत लगा ले, हमारी गरिमा को आंच नहीं आ सकती कितने विष्फोट किये कितना हवा में ज़हर घोला पर 'मुबई के वड़ा-पाव' की महक नहीं घटा पाया, कितनी जगह साफ की, लोकल ट्रेनों की भीड़,भीड़ ही रही. चंद दिनों में मुंबई सडको पर लौट आई क्या,इससे बड़ी सहनशीलता कहाँ हैं, और चाहे उनकी सहनशीलता न मानो, सबल-शीलता मानने से इंकार शायद ही कोई कर पाए,
कथन हैं कंफुसिउस का
' बड़ा गौरव उसमे हैं, जब तुम गिरकर फिर संभलो, नाकि कभी न गिरने में '
इतनी उठापटक के बाद माथे पर सिलवट नहीं आने देती हैं, भारतीयता. ऐसी हैं,भारतीयता
और जहा तक बात हे अखंडता की वो तो न पूछो तो बेहतर होगा क्यूंकि जितने हमले शताब्दियों से भारत पर हुए हे हैं उतने हमले, स्वर्ग में भी होते तो इन्द्र त्रिशक्ति की शरण में चले जाते पर भारत अखंड महाशक्ति तब भी था,और आज उसी की पुरजोर और सात्विक कोशिश में हैं,
चाहे कुछ हो जाये ,संस्कृति ,संस्कार और मूल्यों की कसौटी पर जगत गुरु तब भी था, आज भी हैं महाशक्ति का तमगा लिए जो बजरबट्टू देश अपनी शेखिया भागारता हैं,वहां की जनता एक कीडे बराबर के आंतकवादी कारण उसके राजा (जूते वाले ) की रातो नींदों के लिए दुआ मांगते रहे, हमारा देश जेसा भी सबल हैं इतनी टूटन के बाद बिना निशानों के जख्म सिये हुए भारत आज अदब-आत्मसम्मान के साथ खडा रहता हैं,
यहीं अमर भारत वर्ष हैं भावो से लिप्त 'भारत', यहाँ रगों में अहसास बहते हैं,एकता की पावन मिसाल दिए भारत आज फिर महाशक्ति बनाने की होड़ में हैं,बस प्रेम का सन्देश लिए आज की आवाज़ हैं 'भारतीय शक्ति'.
जज्बा दिलों में बसा हैं इनके फिर भी भारत माता परम वन्दनीय हैं,
दिलों में मोह्हब्ते, बसर करती हैं,
राहों में साजिशे,नज़र रहती हैं,
पैर धोकर गंगा जल से अपने ,
हर तपिश भारतीयता सहती हैं।
इसी भारत भावो को को मन में गांठ बांध कर सफ़र शुरू करते हैं,माता भारती तेरे चरणों में वंदन करते हैं,
" अहसासों की ताकाझांकी,प्रेम भाव की पूरनमासी
अमावस के फेर को बदले ,हर एक भारतवासी "
इसी पावन उद्देश्य के साथ, मानवजाति सेवार्थ लेखनी के साथ ईमानदार रहूँगा,
" भाव-बल संग गांठ लिए,अहसासों को गंगा घाट चाले,
सकिर्तन मन विकास करावे,यही स्वप्न 'बस अमन' पाले।"
'सर्वे भवन्तुः सुखिनः' के भाव संग
अमन 'बस अमन'
aapke vichar kafi achchhe hain. aabhar. hamare desh ko aise hi vicharo ki aawshyakta hai. vichar hi baad me karm ka roop lete hain.
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने..सहयोग करने के लिए सुक्रिया..आगे भी इसी तरह के सहयोग की आशा!!
apko achha laga mera soubhagya
ReplyDeletedhnyavad
बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteआप खूब लिखिए अच्छा लिखिए यही सुभकामनाये है और अपनी राय भी दूसरों को देते रहिये!!
ReplyDeleteनमस्कार!!