मैं संग हूँ तो मुझे ठोकर लगाओ
इसी बहाने ही सही जरा छू के जाओ ....
जो भी हूँ तुम्हारे सामने ही हूँ मैं
हो इरादा गर तो मुझको भी आजमाओ ....
क्यूँ कहते हो के कुछ सूझता नहीं
आईने से जमी हुई ये गर्द तो हटाओ ....
फिर बिछुड़ के हम मिले या ना मिले
एक बार यूँ ही गले से तो लगाओ ....
"राज" दिल का दर्द आंसुओ में न निकले
हर घडी बस मुस्कराओ और मुस्कराओ
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वहा क्या बात है दोस्त दिल को छु जाती है आपकी कविता बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है!
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कल्पना जी, कविता तो वाकई अच्छी बहुत है, दिल को छू सी गई........... कभी वक़्त मिले तो मेरी कवितायेँ पड़ने ज़रूर आईयेगा zindagikiaarzoo.blogspot.com पर ....
ReplyDeleteकल्पना जी, कविता तो वाकई अच्छी बहुत है, दिल को छू सी गई........... कभी वक़्त मिले तो मेरी कवितायेँ पड़ने ज़रूर आईयेगा zindagikiaarzoo.blogspot.com पर ....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने बहुत खूब
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