''कलम का सिपाही''कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उसे अपने हुनर से रचा है ''अनुराधा गुगनानी जी'' ने ! इनके बारे में और अधिक जानकारी के लिए हम इनका जीवन परिचय प्रकाशित कर रहे है ! और हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच में से यह चौथे स्थान की कविता है
आशा है आपको पसंद आएगी !!हम अनुराधा जी को बहुत बहुत बधाई देते है और इनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
अनुराधा जी कुछ अल्फाजों में -
मै अंजू चौधरी ॥उम्र ४१ ...गृहणी हूँ मै बी।ए तक पड़ी हुई हूँ और अनुराधा गुगनानी मेरा बचपन का नाम है ॥मै इसी नाम से अपने लेख लिखती हू पहली बार किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है मेरा कोई भी लेख अभी तक कही नहीं प्रकाशित नहीं हुआ है बहुत वक़्त से लिख रही हूँ कभी मौका नहीं मिला .....कि अपना लिखा प्रकाशित करवा सकूं ......यहाँ कलम के सिपाही ने मुझे ये मोका दिया मै बहुत आभारी हूँ ....संजय सेन सागर जी कि जो उन्होंने मुझे ये मोका दिया मैंने कभी अपने को लेखक नहीं माना ॥बस जब कॉपी और पेन हाथ मे में आता है अपने आप कुछ लिखा जाता है!
एक माँ कि पीडा ...जो ना तो अपने बच्चो से कुछ कहे सकती है ......और ना ही अपने बडो को ....बड़े जो सब कुछ जानते हुए भी कुछ समझना नहीं चाहते,और .......बच्चे कुछ समझते नहीं है ......बस...ये ही सब कहने कि चेष्टा॥कि है मैंने ..........
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ....
वजूद पे उठे प्रश्नों का
कैसे मै समाधान करू ......
ये तो हर रात का किस्सा है ,
हर बात में मेरा भी हिस्सा है ,
हर रात कि मौत के बाद ....सुबह के जीने में मेरा भी हिस्सा है ,
फिर भी जीने से कोसो दूर हू मै॥
दर्द और तकलीफ लिए चलती चली ....
नयी और पुराणी पीढी ,के विचारो का
कैसे...मै ॥ मेल करू.....
दो भिन्न धारायो का,
कैसे मै मिलन करवाऊ ,
इन रिश्तो कि भीड़ में ......
दो किनारों के बीच
देखो.......मै सेतु बनी ........
आदान प्रदान ॥की प्रक्रिया मे..
फिर एक माँ समंदर बनी ....
दिल मै दफ़न किये हर बात ...
देखो मै जीती चली .........
क्या कहू और किस से कहू ...
कि मै ॥चिलचिलाती धूप में भी ........
सिर्फ एक बूंद पसीने .............को भी तरसी ॥ .......
हर पल ये ही सोचती चली ......कि .....
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ................
आगे पढ़ें के आगे यहाँ
अनुराधा जी हिन्दुस्तान का दर्द परिवार की और से बहुत बहुत बधाई हो !!
ReplyDeleteसहयोग के लिए शुक्रिया!
माँ का मंथन सच कहा एक माँ उम्र भर मंथन ही करती रहती है और उसे कभी कुछ नहीं मिलता !
ReplyDeleteदिल को सकूं मिला बहुत अच्छा लिखा है आपने !
संजय जी आपको भी बधाई ...........
दिल रो पड़ा बहुत खूब नज्म अनुराधा जी!
ReplyDeleteसचाई बसी हुई है आपकी कविता में मुबारक हो
ReplyDeleteसागर आपका प्रयास पसंद आया
कलम का सिपाही मे स्थान प्राप्त किया है बधाई हो दीदी जी
ReplyDeleteबेहद अच्छी कविता है आपकी
अच्छी नज्म सच दिल जीत लिया,पहली बार आपकी नज्म प्रकाशित हुई तब भी इतनी उम्दा
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
माँ के पीढा एक माँ ही समझ सकती है
ReplyDeleteमाँ दर्द अच्छी तरह से बंया किया,बहुत खूब
कलम का सिपाही मे स्थान प्राप्त करने पर बधाई अच्छा लिखा है
ReplyDeleteयह ब्लॉग मेरा सबसे पसंदीदा ब्लॉग है आपकी कविता यहाँ देखकर ख़ुशी हुई
वाह वाह क्या लिखा है अनुराधा जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
एक लड़की होने के हैसियत से कह रही हूँ आपने भावनाओं और शब्दों के बीच अच्छा तालमेल बनाया और बहुत अच्छा लेखन किया
ReplyDeleteबधाई हो !
maa ke dard ko bade marmik dhang se prastut kiya hai aapne........zindagi bhar ek setu hi bani rahti hai aur do paton ke beech mein pisti rahti hai.........magar uske dil ke toofan to sirf usi ke rahte hain koi nhi samajhna chahta.
ReplyDeleteबहुत ही जबरदस्त भावनाओं का संगम है......
ReplyDeleteमेरी बहना तुम महान हो बढती जाओ आगे तेरा यह भाई हमेशा तेरे साथ है
ReplyDeleteचाहे कितनी भी मुश्किल आये कभी पीछे मत हटना
मुझे नाज है अपनी बहन पर
भगवान का आशीर्वाद और मेरी दुआ तेरे हमेशा साथ है!!!!!!!
संजय जी हम आपके भी तह दिल से आभारी है आपने हमारी बहन के लेख को पर्काशित किया
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया संजय जी
yah kalam hi to hai
ReplyDeletejo bhavnaon ko kitni sundarta
se pradarshit karti hai
man ki peeda ho
athwa dil ki umang ho
bahut hi sundar hastakshar hai yah
bahut bahut badhai
SUREKHA GUPTA
अच्छा लिखा है मैडम जी
ReplyDeleteबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति...इतने प्यारे लेखन के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteजय जिनेन्द्र !
अच्छी नज्म है खूबसूरती दिखी!
ReplyDeleteमुझे काफी पसंद आई
Bhut schchai hai apki kavita me ......
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