पूरी दुनिया जहां एक ओर मंदी की मार से जूझ रही है तो वहीं एक पक्ष ऐसा भी है जहां मंदी की सुनामी का कोई असर नहीं पड़ रहा है। जी हां मंदी पर सेक्स पूरी तरह से हावी है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि दुनिया में आर्थिक मंदी जितनी बढ़ेगी, सेक्स में भी उतना ही इजाफा होगा।
मंदी की मार से बौखलाए पुरुष अपना तनाव दूर भगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सेक्स करना पसंद करते हैं। प्रोफेसर हेलेन फिशर का मानना है कि, आर्थिक मंदी के चलते लोगों में डर और तनाव इतना फैल जाता है कि उनके दिमाग में डोपामाइन नामक केमिकल की मात्रा में बढ़ने लगती है। इस केमिकल्स की वजह से सेक्स की तरफ लोग अधिक खिंचे चले जाते हैं। लोग तनाव को दूर भगाने के लिए आपसी रिश्तों में ज्यादा से ज्यादा समय सेक्स को दे कर तनाव भरे वातावरण से निकलना चाहते हैं।
तनाव में सेक्स से फायदा..
आर्थिक मंदी से जूझ रहे लोग इतना तनावग्रस्त हो जाते हैं कि वे सेक्स में अपना समय ज्यादा देकर इस तनाव से दूर रहते हैं। मंदी से जूझ रहे लोगों में सेक्स एक दवा की तरह काम करती है। इससे तनाव तो कम होता ही है साथ ही मंदी के दौर में इससे सस्ता मनोरंजन का साधन दूसरा कोई नहीं हो सकता।
इस विषय से जुड़े जानकारों का मानना है कि मंदी से जूझ रहे लोग अपने-आपको इतना अकेला महसूस करते हैं कि वे किसी से भी निकट संबंध और संपर्क बनाकर अपने अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करते हैं साथ ही ऐसे समय में इस प्रकार का संबंध काफी राहत महसूस कराता है।आगे पढ़ें के आगे यहाँ
मंदी की मार से बौखलाए पुरुष अपना तनाव दूर भगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सेक्स करना पसंद करते हैं। प्रोफेसर हेलेन फिशर का मानना है कि, आर्थिक मंदी के चलते लोगों में डर और तनाव इतना फैल जाता है कि उनके दिमाग में डोपामाइन नामक केमिकल की मात्रा में बढ़ने लगती है। इस केमिकल्स की वजह से सेक्स की तरफ लोग अधिक खिंचे चले जाते हैं। लोग तनाव को दूर भगाने के लिए आपसी रिश्तों में ज्यादा से ज्यादा समय सेक्स को दे कर तनाव भरे वातावरण से निकलना चाहते हैं।
तनाव में सेक्स से फायदा..
आर्थिक मंदी से जूझ रहे लोग इतना तनावग्रस्त हो जाते हैं कि वे सेक्स में अपना समय ज्यादा देकर इस तनाव से दूर रहते हैं। मंदी से जूझ रहे लोगों में सेक्स एक दवा की तरह काम करती है। इससे तनाव तो कम होता ही है साथ ही मंदी के दौर में इससे सस्ता मनोरंजन का साधन दूसरा कोई नहीं हो सकता।
इस विषय से जुड़े जानकारों का मानना है कि मंदी से जूझ रहे लोग अपने-आपको इतना अकेला महसूस करते हैं कि वे किसी से भी निकट संबंध और संपर्क बनाकर अपने अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करते हैं साथ ही ऐसे समय में इस प्रकार का संबंध काफी राहत महसूस कराता है।आगे पढ़ें के आगे यहाँ
आप हिन्दुस्तान का दर्द अभियान का लक्ष्य भूल गए है शायद !!
ReplyDeleteइस तरह की पोस्ट शोभा नहीं देती दोस्त!!कुछ अच्छा लाओ!!
चलिए अब कुछ तो हो रहा है,मंदी हर चीज़ पर पाबन्दी नहीं लगा सकती !!
ReplyDeleteव्योम जी,
ReplyDeleteये सच है कि लोग जब बहुत थके होते हैं, जब परेशां होते है, चिंता में होते हैं तो उन्हें राहत की तरफ़ ले जाने वाले किसी भी टास्क की तरफ़ झुकाव होता ही है | आपकी इस बात से थोड़ा सा मैं भी सहमत हूँ कि मंदी में लोग ज़्यादा से ज़्यादा सेक्स करना पसंद करेंगे या सेक्स कि तरफ़ झुकेंगे | सही बात है टेंशन में रिलैक्स पाने की इन्सान कोशिश करता है और कुछ ना कुछ करता ही है | मंदी क्या किसी भी मुसीबत में लोग, मुसीबत से उबरने की कोशिश करेंगे ही |
ओ. के., लेकिन जनाब ये हिन्दुस्तान का दर्द है यहाँ आपके ये प्रोफेसर साहब क्या कर रहे हैं? ये तो अमेराकां सर्वे की सी बातें हैं| और हमारे हिन्दुस्तान में तो मंदी में ही नहीं रोज़ ही, बल्कि मैं कहता हूँ रोज़ ही लोग दिन भर मेहनत करके रात को अपनी थकान मिटाते हैं | आप को पता है मज़दूर दिन भर हांड-तोड़ मेहनत करके रात को क्या करता है? और किसान दिन भर अपने खेतों में जम कर अपनी ज़मीन में मेहनत करके रात को क्या करता है?
ओहो ! मैं तो ये भूल गया दोष हमारा ही है, हमारे अखबार वाले, टी.वी. वाले दिन रात ऐसी ऐसी खबरें ढूंढ कर लाते हैं कि कहने ही क्या? और उनकी खबरों में होता है पाश्चात्य देशों में हो रहे वो कारनामे जो हमारे देशवासी अभी सिख रहे है और ये उन्हें सिखा रहें है |
मैं अभी ज़्यादा तो नही जानता, देश के दर्द के बारे में कहना चाहता हूँ- हमारे देश में सबसे बड़ी मार मंदी की पड़ी हमारे किसान और मज़दूर को, गरीब को | गरीब और गरीब होता जा रहा है, अमीर और अमीर | यही पूंजीवाद है भइया | आज नहीं तो कल अगर हम उन अगड़े भाइयों के देखा-देखी पूंजीवाद की पुँछ पकड़े रहेंगे तो हमारे देश का हाल भी अमेरिका जैसा हो जाएगा | हमारे बैंक दिवालिया हो जांयेंगे | हम भी तबाह हो जाएँगे | तब करते रहिएगा सेक्स | हमें ज़रूरत सेक्स की नहीं, सेक्स तो वैसे भी हम हर हाल में करते रहेंगे जी! कह दीजिये पश्चिम देशों से ये मिडिया के ज़रिये बरगलाएं ना, ये विदेशी सर्वे हमारे देश में नहीं चलेगा |
हमें ज़रूरत है आपसी भाईचारे की, मिलजुल कर रहने की | मंदी ही नही, सारी मुसीबत से निजात पाने के लिए हमें उस परम पिता परमेश्वर/अल्लाह के बताये रास्तों पर चलना होगा |
"ज़्यादा तो नहीं कह गया....................खैर अब कह दिया तो कह दिया |
व्योम जी कुछ अच्छा और सार्थक लिखने की कोशिश कीजिये !!
ReplyDeleteअपनी प्रतिभा को कचरे मे मत डालिए!~
मंदी की मार में लोग तनाव दूर करने के लिए शेक्स करते हैं, और केमिकल वाली बात भी बकवास है, जनाब इस बारे में भी लिख देते कि जब खुश होत हैं, कारोबार चमक रहे होते हैं, पेशों की रेल पेल होती है तब किया करते हैं?
ReplyDeleteआपके इस लेख ने सलीम साहब swachsandesh को लेखक बना दिया बधाई