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सिर्फ हाथ फूल, अक्षत चढ़ाता है और दिमाग जहां- तहां घूमता है


विनय बिहारी सिंह

हममें से कई लोगों की पूजा बहुत मेकेनिकल यानी यांत्रिक होती है। जल चढ़ाया, फूल चढ़ाया, अक्षत अर्पण किया, अगरबत्ती दिखाई, घंटी बजाई और प्रणाम करके आफिस या कहीं और चलते बने। मन में यह पक्की धारणा बन गई कि हां, आज पूजा की। ज्यादातर लोग तो ऐसे ही करते हैं। कई लोग तो घड़ी भी देखते रहते हैं औऱ मंत्र वगैरह भी पढ़ते रहते हैं। मन में चलता रहता है कि अमुक अमुक काम करने हैं या यहां जाना है वहां जाना है वगैरह वगैरह। तो फिर यह पूजा कहां हुई? यह तो जैसे कोई औपचारिकता कर ली। भगवान तो तब भी खुश हो जाते हैं जब आप उन्हें प्यार से याद करते हैं। कथा है कि एक बार नारद मुनि ने भगवान से पूछा कि आपका सबसे बड़ा भक्त कौन है। भगवान ने कहा- तुम्हीं बताओ। नारद मुनि ने कहा- जंगल में एक साधु ४० वर्षों से साधना कर रहा है, वही होगा। भगवान ने कहा- नहीं। नारद मुनि ने पूछा तो फिर कौन है? उन्होंने बताया कि अमुक गांव में एक किसान है जो अभी हल जोत रहा है। वही मेरा सबसे बड़ा भक्त है। नारद मुनि हैरान रह गए। वे तत्काल धरती पर उस किसान के पास एक साधारण आदमी के वेश में पहुंचे। देखा वह हल जोत रहा है और नारायण, नारायण का जाप भी कर रहा है। और जाप भी कैसा। बिल्कुल सहज ढंग से। हल भी जोत रहा है और भगवन्नाम भी चल रहा है। नारद मुनि ने पूछा कि भाई, तुम पूजा- पाठ कुछ करते हो? किसान बोला- नहीं उस तरह तो पूजा नहीं करता जैसे और लोग करते हैं। पर हां मैं मानता हूं कि मैं ईश्वर में ही हूं। हर सांस उसी की कृपा से चल रही है। बल्कि मैं तो मानता हूं कि यह मेरी सांस नहीं है, खुद ईश्वर मेरी सांस के रूप मे चल रहे हैं। इसीलिए हमेशा नारायण नारायण कहता रहता हूं। लगता है उसके बिना मेरा जीवन अधूरा है। इसलिए काम करते हुए, सोते, उठते, बैठते, हल पल हर क्षण बस उसी के बारे में सोचता रहता हूं। नारद मुनि उस जंगल के साधु के पास गए। पूछा- आप किस तरह साधना कर रहे हैं? भगवान के दर्शन हुए? साधु बोले- वही तो मैं भी सोच रहा हूं। रोज सोचता हूं कि आज भगवान दर्शन देंगे। लेकिन देते नहीं हैं। अब लगता है भगवान है ही नहीं। अगर इतने दिनों बाद दर्शन नहीं दिया तो शायद उनका कोई अस्तित्व नहीं हो। नारद मुनि ने पूछा- क्या ईश्वर के अस्तित्व पर आपको शुरू से ही शक था? साधु बोले- हां। मैंने सोचा कि साधना करके देखें, अगर ईश्वर हैं तो दर्शन देंगे। पर लगता है ईश्वर नहीं है। ़ नारद मुनि भगवान के पास पहुंचे। बोले- आपने बिल्कुल ठीक कहा। सच्चा भक्त तो वह किसान ही है। उसे यह परवाह नहीं कि आप दर्शन देंगे या नहीं। बस आपके चिंतन में वह दीवाना है। इधर वह ४० साल से साधना कर रहा साधु पहले दिन से ही शक मे है कि पता नहीं ईश्वर है भी या नहीं। होगा तो दर्शन देगा। यह अधूरी श्रद्धा तो उसे कहीं नहीं ले जाएगी। हर काम के लिए पूरा कंसंट्रेशन चाहिए। पूरी एकाग्रता चाहिए। यह उस किसान में है। वह तो यह मानता है कि सांस के रूप में भी ईश्वर ही हैं। भगवान उत्तर दिया- मैं उसे रोज दर्शन देता हूं। लेकिन मैंने मना किया है कि वह किसी को बताए नहीं। इसीलिए उसने आपको नहीं बताया।

Comments

  1. विनय बिहारी जी बहुत बहुत बधाई आपके अच्छे लेख के लिए मुझे
    आप अपना नया दोस्त मान सकते है,इस ब्लॉग को बहुत कम पढ़ पता हूँ लेकिन पड़ता जरुर हून१!!

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  2. बहुत अच्छा लिखा है आपने!!
    बहुत बढ़िया !!
    सटीक लेखन !!

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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