जज्बात बयाँ करने की आदत नही है
सोचा शायाद इसकी जरूरत नही है
बेख्याली में न जाने कैसे वो लम्हा गुज्रर गया
जब वो मेरी जिन्दगी से रेत की तरह फिसल गया
क्यों नहीं हम भी अपने दिल की बात उनको सुनाएँ
क्या हम हैं सिर्फ एक रास्ता जो सबको उसके मंजिल पर पहुँचाएँ
काश ये दिल टूट गया होता कि इसे सजा तो मिलती
कमबख्त को दुबारा मुहब्बत करने कि वजह तो मिलती
पर वो तो अब भी हमारा ध्यान उसी तरह भटकातें हैं
इकरार न करने का इल्जाम भी हमीं पर लगाते हैं
मेरा ही दोस्त मेरे सीने में खन्जर मार गया
वो हमेशा मेरी जीत थी जिसे मैं हार गया
हे खुदा तुने जितना दिया उससे कहीं ज्यादा वापस लिया फिर ये मेहर बरसाने का ढोंग तो मत कर
मेरी झोली तो पहले से ही खाली है इसे और खाली तो मत कर
अगर तेरे पास मरहम नही तो कम से कम मेरे जखमों को हरा तो मत कर
क्या तेरे पास सिर्फ गम का खजाना है
और क्या उसे सिर्फ मुझ पर ही लुटाना है
खुदा ---
सुना मैंने तुमहारे सवाल को
समझा तुम्हारे दिल के हाल को
ठेस लगती है तो दर्द होता है
दर्द होता है तो दिल रोता है
युँ इल्जाम हम पर मत लगाओ
जरा अपने जमीर को जगाओ
और पुछो कि जब मिली थी वो तो कब अहसान माना था तुमने जो आज खरी खोटी सुना रहे हो
लेकिन सुनो एक बात याद रखना तुम
हमेशा खुशियाँ नहीं कभी दुख भी चखना तुम
और वैसे तो हर किसी को दर्द होता है
पर जो उसको अपनी मुस्कुराहट के पिछे छुपाए वही मर्द होता है
बेहद सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपका लेखन बहुत ही सार्थक एवं सटीक है
बहुत ही खूबसूरत और प्रभावसाली रचना लिखी है आपने!!
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