Skip to main content

वैसे तो हर किसी को दर्द होता है ,पर जो उसको अपनी मुस्कुराहट के पिछे छुपाए वही मर्द होता है





जज्बात बयाँ करने की आदत नही है 

सोचा शायाद इसकी जरूरत नही है 

बेख्याली में न जाने कैसे वो लम्हा गुज्रर गया 

जब वो मेरी जिन्दगी से रेत की तरह फिसल गया

क्यों नहीं हम भी अपने दिल की बात उनको सुनाएँ 

क्या हम हैं सिर्फ एक रास्ता जो सबको उसके मंजिल पर पहुँचाएँ

काश ये दिल टूट गया होता कि इसे सजा तो मिलती

 कमबख्त को दुबारा मुहब्बत करने कि वजह तो मिलती

पर वो तो अब भी हमारा ध्यान उसी तरह भटकातें हैं 

 इकरार न करने का  इल्जाम भी हमीं पर लगाते हैं

मेरा ही दोस्त मेरे सीने में खन्जर मार गया 

वो हमेशा मेरी जीत थी जिसे मैं हार गया

हे खुदा तुने जितना दिया उससे कहीं ज्यादा वापस लिया फिर ये मेहर बरसाने का ढोंग तो मत कर 

मेरी झोली तो पहले से ही खाली है इसे और खाली तो मत कर 

अगर तेरे पास मरहम नही तो कम से कम मेरे जखमों को हरा तो मत कर

क्या तेरे पास सिर्फ गम का खजाना है 

और क्या उसे सिर्फ मुझ पर ही लुटाना है 


खुदा ---

सुना मैंने तुमहारे सवाल को 

समझा तुम्हारे दिल के हाल को

ठेस लगती है तो दर्द होता है 

दर्द होता है तो दिल रोता है

युँ इल्जाम हम पर मत लगाओ

जरा अपने जमीर को जगाओ

और पुछो कि जब मिली थी वो तो कब अहसान माना था तुमने जो आज खरी खोटी सुना रहे हो

लेकिन सुनो एक बात याद रखना तुम 

हमेशा खुशियाँ नहीं कभी दुख भी चखना तुम

और वैसे तो हर किसी को दर्द होता है

पर जो उसको अपनी मुस्कुराहट के पिछे छुपाए वही मर्द होता है

Comments

  1. बेहद सुंदर रचना...
    आपका लेखन बहुत ही सार्थक एवं सटीक है

    ReplyDelete
  2. बहुत ही खूबसूरत और प्रभावसाली रचना लिखी है आपने!!

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा