अंग्रेज़ी फ़िल्म स्पाईडर मैन का एक डाईलोग है कि 'बड़ी ताक़त के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है' लेकिन जिन लोगो के पास बड़ी ताक़त होती है वही अपनी बड़ी जिमेदारी नही निभाते और अपनी बड़ी ताक़त का इस्तमाल करते हैं. कुछ इसी तरह का उदहारण आज कल देखने को मिल रहा है अमेरिका का. अमेरिका ने इस्राईल की कर्येवाही को सही बताया है. जबकि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कीमून ने हमले पर गहरी निराशा जताई है. अमेरिका ने फ्रांस, मिस्र, लीबिया आदि देशों के फलस्तीन के खिलाफ इस्राईल की कार्यवाही रोकने की अपील पर भी रोक लगा दी है जबकि अमेरिका को विश्वमाहशक्ति होने के नाते दोनों देशों के बीच शान्ति स्थापित करने पर ज़ोर देना चाहिए था. विश्व समुदाय के कुछ देश लगातार हमला रोकने को कह रहे हैं लेकिन अमेरिका ने यूं. एन. ओ. को भी अपने दबाव में ले रखा है. संयुक्त राष्ट्र में स्थाई फलस्तीनी परिवेक्षक "रियाद मंसूर" ने कहा है की परिषद् की ज़िम्मेदारी बनती है की वह तुंरत इस्राईल को हमला रोकने को कहे. हालांके संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कीमून ने फ़ोन पर इस्राईल के प्रधानमंत्री से बात की लेकिन उन्होंने इसे आत्मरक्षात्मक कार्यवाही बताते हुए युद्ध रोकने से इनकार कर दिया. मिस्र ने ज़मीनी हमले को निर्दोष नागरिकों के खिलाफ बर्बर कार्यवाही बताया है. मिस्र के विदेश मंत्री "अहमद घेत" ने कहा की अमेरिकी दबाव के आगे सुरक्षा परिषद् विफल हो गई और हजारों फलस्तीनी नागरिकों की मौत का कारण अमेरिका है. ऐसा नही है कि सिर्फ़ इस्लामी देश ही इस कार्यवाही के खिलाफ है बल्कि यूरोपीय देश भी इसका विरोध कर रहे हैं. फ्रांस ने इस मसले पर यूरोपीय संघ के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई. फ्रांस के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत "जीन मारिस रिपार्ट" ने बताया की बैठक में कोई फ़ैसला नही हो पाया लेकिन सभी देशों ने इस संकट पर गहरी चिंता जताई है. इस्राईल न सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र की अवहेलना कर रहा बल्कि युद्ध के नियमों को तोड़ रहा है. हिन्दी समाचार पत्र "अमर उजाला" के अनुसार "अन्तरराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार रखते हुए गाजा में ज़मीनी कार्यवाही करने से इस्राईल की चौतरफा आलोचना हो रही है. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इस्राईल संघर्ष में खतरनाक फास्फोरस बमों का इत्माल कर रहा है." 'द टाईम्स' के मुताबिक "दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक गाजा में इन बमों के प्रयोग से २३०० फलस्तीनी घायल हो चुके हैं. "जनेवा कन्वेंशन" के तहत नागरिकों के खिलाफ इन बमों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध है. यह बम सिर्फ़ दुश्मन के इलाके में घुसने के लिए या धुंध फैलाने के लिए ही इस्तमाल किए जा सकते हैं. इराक युद्ध के दौरान ख़ुद अमेरिका और ब्रिटेन ने इन बमों का इस्तमाल किया था. इस युद्ध से हजारों फलस्तीनी नागरिक घायल हो चुके हैं. इससे पहले भी सन १९६७ के युद्ध ५ लाख फलस्तीनी नागरिक बेघर हो गए थे."इस जंग के मुद्दे पर अन्तरराष्ट्रीय रेडक्रॉस का कहना है की इस्राईल गाजा संघर्ष में आम नागरिकों को निशाना बनाना बंद करे. बान कीमून का कहना है कि सुरक्षा परिषद् और विश्व समुदाय पश्चिम एशिया ऐसा में गहराते संकट को शीघ्र ख़त्म करने में मदद करें.
अंग्रेज़ी फ़िल्म स्पाईडर मैन का एक डाईलोग है कि 'बड़ी ताक़त के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है' लेकिन जिन लोगो के पास बड़ी ताक़त होती है वही अपनी बड़ी जिमेदारी नही निभाते और अपनी बड़ी ताक़त का इस्तमाल करते हैं. कुछ इसी तरह का उदहारण आज कल देखने को मिल रहा है अमेरिका का. अमेरिका ने इस्राईल की कर्येवाही को सही बताया है. जबकि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कीमून ने हमले पर गहरी निराशा जताई है. अमेरिका ने फ्रांस, मिस्र, लीबिया आदि देशों के फलस्तीन के खिलाफ इस्राईल की कार्यवाही रोकने की अपील पर भी रोक लगा दी है जबकि अमेरिका को विश्वमाहशक्ति होने के नाते दोनों देशों के बीच शान्ति स्थापित करने पर ज़ोर देना चाहिए था. विश्व समुदाय के कुछ देश लगातार हमला रोकने को कह रहे हैं लेकिन अमेरिका ने यूं. एन. ओ. को भी अपने दबाव में ले रखा है. संयुक्त राष्ट्र में स्थाई फलस्तीनी परिवेक्षक "रियाद मंसूर" ने कहा है की परिषद् की ज़िम्मेदारी बनती है की वह तुंरत इस्राईल को हमला रोकने को कहे. हालांके संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कीमून ने फ़ोन पर इस्राईल के प्रधानमंत्री से बात की लेकिन उन्होंने इसे आत्मरक्षात्मक कार्यवाही बताते हुए युद्ध रोकने से इनकार कर दिया. मिस्र ने ज़मीनी हमले को निर्दोष नागरिकों के खिलाफ बर्बर कार्यवाही बताया है. मिस्र के विदेश मंत्री "अहमद घेत" ने कहा की अमेरिकी दबाव के आगे सुरक्षा परिषद् विफल हो गई और हजारों फलस्तीनी नागरिकों की मौत का कारण अमेरिका है. ऐसा नही है कि सिर्फ़ इस्लामी देश ही इस कार्यवाही के खिलाफ है बल्कि यूरोपीय देश भी इसका विरोध कर रहे हैं. फ्रांस ने इस मसले पर यूरोपीय संघ के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई. फ्रांस के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत "जीन मारिस रिपार्ट" ने बताया की बैठक में कोई फ़ैसला नही हो पाया लेकिन सभी देशों ने इस संकट पर गहरी चिंता जताई है. इस्राईल न सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र की अवहेलना कर रहा बल्कि युद्ध के नियमों को तोड़ रहा है. हिन्दी समाचार पत्र "अमर उजाला" के अनुसार "अन्तरराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार रखते हुए गाजा में ज़मीनी कार्यवाही करने से इस्राईल की चौतरफा आलोचना हो रही है. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इस्राईल संघर्ष में खतरनाक फास्फोरस बमों का इत्माल कर रहा है." 'द टाईम्स' के मुताबिक "दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक गाजा में इन बमों के प्रयोग से २३०० फलस्तीनी घायल हो चुके हैं. "जनेवा कन्वेंशन" के तहत नागरिकों के खिलाफ इन बमों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध है. यह बम सिर्फ़ दुश्मन के इलाके में घुसने के लिए या धुंध फैलाने के लिए ही इस्तमाल किए जा सकते हैं. इराक युद्ध के दौरान ख़ुद अमेरिका और ब्रिटेन ने इन बमों का इस्तमाल किया था. इस युद्ध से हजारों फलस्तीनी नागरिक घायल हो चुके हैं. इससे पहले भी सन १९६७ के युद्ध ५ लाख फलस्तीनी नागरिक बेघर हो गए थे."इस जंग के मुद्दे पर अन्तरराष्ट्रीय रेडक्रॉस का कहना है की इस्राईल गाजा संघर्ष में आम नागरिकों को निशाना बनाना बंद करे. बान कीमून का कहना है कि सुरक्षा परिषद् और विश्व समुदाय पश्चिम एशिया ऐसा में गहराते संकट को शीघ्र ख़त्म करने में मदद करें.
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर