कभी धुप चिलचिलाये
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!
बहुत खूबसूरत और प्यारी रचना है
ReplyDeleteइसी तरह लिखते रहिये !