........................
कल क्रमिक भूख हड़ताल का ३५ वां दिन था । दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दफ्तर के बाहरएक छोटे से टेंट में संस्कृत के छात्र धरने पर बैठे थे । उपवास कर रहे दो लोगो ही हालत कुछ ठीक नही थी । हम पहुंचे तो थे उनका साथ देने, होसला बढ़ाने , लकिन वहां की परिस्थितियों ने अन्दर से झकझोर दिया । आज के समय में गांधीगिरी कर रहे इन युवा छात्रों-छात्राओं की बात सुनने वाला कोई नही था । महिना बीत गया धरना प्रदर्शन और उपवास करते -करते विश्वविद्यालय प्रशासन की छोडिये छात्र संघ का कोई अधिकारी भी नही आया । बात-चित में हड़ताल का नतृत्व कर रही किरण ने बताया तीन-चार बार बुलाने पर भी डूसु अध्यक्ष नुपुर शर्मा या अन्य कोई नही आया। वाह रे गणतंत्र ! २६ जनवरी आने ही वाला है । देश भर में तिरंगा फहराएगा , देश को उचाईयों पर ले जाने के लोकलुभावन वादे होंगे ...........पर हकीक़त सबके सामने है............. दिल्ली इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में छात्र हितों की अनदेखी हो रही है । इससे तो अच्छा है किजामिया के तर्ज पर दिल्ली विश्विद्यालय भी चुनाव पर पाबन्दी लगा दे । अरे, जब छात्र संघ के लोग भी छात्र हित से कटे हैं तो से प्रतिनिधियों का चयन किस लिए? दिल्ली विश्वविद्यालय के घटिया राजनीती ने छात्र राजनीती को निम्न स्तर तक ही पहुचाया है ....... हमेशा केवल कवि सम्मलेन ,सेमिनार अथवा फालतू के मसलों पर हो हंगामा करना ............जैसे यहाँ कि पहचान है ...... , । अगर ऐसा नही है तो कोई भी संगठन अब तक इनके साथ क्यूँ नही .....?इस सवाल का जबाब ढूंढने के दौरान धरने पर बैठी एक छात्रा ने कहा -" क्योंकि हम संस्कृत के छात्र हैं "।बात भी सही है यहीं, इसी जगह पर यदि कोई उर्दू या अरेबिक के छात्र होते तो न जाने कितने संगठन अल्पसंख्यक के नाम पर चिल्लम-चिल्ली करते ! !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अब मामले के दूसरे पहलु पर चलते हैं कि आख़िर ये धरना किसलिए हो रहा है? इस बारे में बताते हुए किरण कहती है -" आज जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग किया जा रहा है तब हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा । यहाँ अधिकार और कर्तव्य का साथ -साथ उल्लेख आवश्यक है , दरअसल जिस अधिकार कीबात करते हैं उसके लिए लड़ना भी हमारा ही कर्तव्य है । आज विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा केन्द्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा हेतु प्रदत्त अनुदान राशिः छात्रो तक नही पहुँच पा रही है । उच्च शिक्षा में आकर्षण के बावजूद छात्र विरोधी नीतियाँ बनाई जा रही हैं। एम् ० फिल ० व पी ० एच ० डी० में सीटों की संख्या कम कर दी गई । जबकि आवश्यकता इस बात की है कि एम०ए ० तथा एम०एस० सी ० की कक्षाओं में हुए नामांकन के आधार पर ही एम् ०फ़िल० की सीटें उपलब्ध हो और साथ के बाद सीधे ही पी० एच० डी ० में पंजीकरण का प्रावधान हो । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एम० फ़िल० व पी० एच० डीके शोध कर्ताओं के किए शोधवृत्ति की स्वीकृति दे राखी है ,परन्तु इस की संख्या निर्धारण के समस्त अधिकार विश्वविद्यालय प्रशासन को दे दिया गया है । अपने इसी शक्ति का दुरूपयोग करते हुए प्रशासन ने मात्र २५% छात्रों को ही शोध वृत्ति देने का निश्चय किया और इसे कानूनी जमा भी पहना दिया है। एक ओर पुनः नए वेतन आयोग की मांग हो रही है तो दूसरी तरफ़ छात्रों को दी जाने वाली फैलोशिप पर भी विश्वविद्यालय प्रशासन गिद्ध दृष्टि जमाये है। "बहरहाल, उच्च शिक्षा में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध संस्कृत-शास्त्र रक्षार्थ संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलनरत इन छात्रों की बात कब तक सुनी जाती इसका इन्तेजार है ...........................................................................................................
कल क्रमिक भूख हड़ताल का ३५ वां दिन था । दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दफ्तर के बाहरएक छोटे से टेंट में संस्कृत के छात्र धरने पर बैठे थे । उपवास कर रहे दो लोगो ही हालत कुछ ठीक नही थी । हम पहुंचे तो थे उनका साथ देने, होसला बढ़ाने , लकिन वहां की परिस्थितियों ने अन्दर से झकझोर दिया । आज के समय में गांधीगिरी कर रहे इन युवा छात्रों-छात्राओं की बात सुनने वाला कोई नही था । महिना बीत गया धरना प्रदर्शन और उपवास करते -करते विश्वविद्यालय प्रशासन की छोडिये छात्र संघ का कोई अधिकारी भी नही आया । बात-चित में हड़ताल का नतृत्व कर रही किरण ने बताया तीन-चार बार बुलाने पर भी डूसु अध्यक्ष नुपुर शर्मा या अन्य कोई नही आया। वाह रे गणतंत्र ! २६ जनवरी आने ही वाला है । देश भर में तिरंगा फहराएगा , देश को उचाईयों पर ले जाने के लोकलुभावन वादे होंगे ...........पर हकीक़त सबके सामने है............. दिल्ली इस दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में छात्र हितों की अनदेखी हो रही है । इससे तो अच्छा है किजामिया के तर्ज पर दिल्ली विश्विद्यालय भी चुनाव पर पाबन्दी लगा दे । अरे, जब छात्र संघ के लोग भी छात्र हित से कटे हैं तो से प्रतिनिधियों का चयन किस लिए? दिल्ली विश्वविद्यालय के घटिया राजनीती ने छात्र राजनीती को निम्न स्तर तक ही पहुचाया है ....... हमेशा केवल कवि सम्मलेन ,सेमिनार अथवा फालतू के मसलों पर हो हंगामा करना ............जैसे यहाँ कि पहचान है ...... , । अगर ऐसा नही है तो कोई भी संगठन अब तक इनके साथ क्यूँ नही .....?इस सवाल का जबाब ढूंढने के दौरान धरने पर बैठी एक छात्रा ने कहा -" क्योंकि हम संस्कृत के छात्र हैं "।बात भी सही है यहीं, इसी जगह पर यदि कोई उर्दू या अरेबिक के छात्र होते तो न जाने कितने संगठन अल्पसंख्यक के नाम पर चिल्लम-चिल्ली करते ! !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अब मामले के दूसरे पहलु पर चलते हैं कि आख़िर ये धरना किसलिए हो रहा है? इस बारे में बताते हुए किरण कहती है -" आज जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग किया जा रहा है तब हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा । यहाँ अधिकार और कर्तव्य का साथ -साथ उल्लेख आवश्यक है , दरअसल जिस अधिकार कीबात करते हैं उसके लिए लड़ना भी हमारा ही कर्तव्य है । आज विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा केन्द्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा हेतु प्रदत्त अनुदान राशिः छात्रो तक नही पहुँच पा रही है । उच्च शिक्षा में आकर्षण के बावजूद छात्र विरोधी नीतियाँ बनाई जा रही हैं। एम् ० फिल ० व पी ० एच ० डी० में सीटों की संख्या कम कर दी गई । जबकि आवश्यकता इस बात की है कि एम०ए ० तथा एम०एस० सी ० की कक्षाओं में हुए नामांकन के आधार पर ही एम् ०फ़िल० की सीटें उपलब्ध हो और साथ के बाद सीधे ही पी० एच० डी ० में पंजीकरण का प्रावधान हो । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एम० फ़िल० व पी० एच० डीके शोध कर्ताओं के किए शोधवृत्ति की स्वीकृति दे राखी है ,परन्तु इस की संख्या निर्धारण के समस्त अधिकार विश्वविद्यालय प्रशासन को दे दिया गया है । अपने इसी शक्ति का दुरूपयोग करते हुए प्रशासन ने मात्र २५% छात्रों को ही शोध वृत्ति देने का निश्चय किया और इसे कानूनी जमा भी पहना दिया है। एक ओर पुनः नए वेतन आयोग की मांग हो रही है तो दूसरी तरफ़ छात्रों को दी जाने वाली फैलोशिप पर भी विश्वविद्यालय प्रशासन गिद्ध दृष्टि जमाये है। "बहरहाल, उच्च शिक्षा में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध संस्कृत-शास्त्र रक्षार्थ संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलनरत इन छात्रों की बात कब तक सुनी जाती इसका इन्तेजार है ...........................................................................................................
बहुत अच्छा लेख !!!
ReplyDeleteआपका लेखन बेहद स्पस्ट एवं सटीक है!
सहयोग की लिए बहुत बहुत शुक्रिया आगे भी आपसे इसी तरह के सहयोग मी आशा करते हैं !!!
गणतंत्र दिवस : एक प्रश्न
ReplyDeleteutsahwardhan hetu shukriya................
ReplyDeletenahi dost ye to mera farz hai !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती के साथ अपनी बात कही !!
ReplyDeleteकाफी प्रभावित किया !!
राजनीति ने सारा देश गन्दा करके रख दिया है !
ReplyDeleteआज देश की हालत बहुत अच्छी नहीं !!
ReplyDeleteजिसके बारे मे हम बात सकें,,,आप ने बहुत अच्छा तथ्य सामने रखा बहुत खूब!!
बिंदास लिखा दोस्त बहुत अच्छे!!
ReplyDeleteबिंदास लिखा दोस्त बहुत अच्छे!!
ReplyDelete