हाथो की महेंदी अभी
छुटी भी ना थी ...
आँखों के सपने सजे भी ना थे
यु ही बीच रस्ते में ॥टूट गये ,
अब तनहा है जीवन ..सुनी है राहे..
और अकेलापन है साथी .....
जो मिली अपनों से ठोकर ..........
बुझ गयी इस दीये की बाती....
दिल मे पले अरमान भी जल गये ...
अब तो कोई अपना भी ना
रहा साथ में ..इस जीवन की पथरीली राहों में ..
हम तो साथ मिल कर
चार कदम चले भी ना थे .........
कि पड़ गए पेरो में
दुःख के छाले ..
हाथो को थामा था जिसने कभी ,
सदा के लिए ..
वोह मेरा नसीब ..
आन्सुयो मे लिख कर ..
इस दुनिया से विदा लेकर चले गए ......
पर......
चलना तो है ........
देनी है अपने नन्हों को मंजिल यहाँ
नन्ही आँखों मे सपने सजाने तो है ........
क्या कहू... ..........और किस से कहू ...कि मेरी ..............
हाथो की महेंदी अभी
छुटी भी ना थी .....................
(.......कृति......अनु.......)
अनुराधा जी,मन खुश हो गया आपकी यह रचना पड़कर !!
ReplyDeleteसहयोग के लिए शुक्रिया!!!
बहुत सुंदर रचना है !!
ReplyDeleteकाफी प्रभावित किया है,आप इसी तरह लिखते रहिये!!