रोया हूँ बहुत तब जरा करार मिला है
इस जहाँ से किसे सच्चा प्यार मिला है?
गुज़र रही है जिंदगानी इम्तेहान के दौर से,
एक ख़तम हुआ तो दूसरा तैयार मिला है
मेरे दामन को खुशियों का नही है मलाल,
गम का खजाना इसे बेसुमार मिला है
वो कमनसीब हें जिन्हें महबूब मिल गया,
मैं खुशनसीब हूँ मुझको इंतज़ार मिला है
गम नही है मुझको दुश्मन हुआ ज़माना,
जब दोस्त लिए हाथों में तलवार मिला है
सब कुछ खुदा ने तुमको कैसे दे दिया?
मुझे तो उसके दर से इंतजार मिला है
आपकी नज्म दिल को छु गयी..बहुत ही प्यारा लिखा है आपने !!
ReplyDeleteआपके सहयोग के लिए हम आपके बहुत बहुत आभारी है !!
वाकई बहुत खुबसूरत नज़्म है सोनिया जी आपकी. बहुत बहुत मुबारकबाद
ReplyDeleteबेहद सुंदर रचना सोनिया जी...
ReplyDeleteक्या खूब लिखती हो आप !!
faraz ji kaha hai aajkal aap kuch pata hi nahi chal raha hai !!
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