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अभी तो नापी है मूट्ठी भर जमी, आगे भी पुरा आसमा बाकी है॥


ब किसी कक्ष की खिडकी बन्द होती है। तो घुटन का अनुभव होता है। प्रकाश कि एक भी किरण वहॉ नही उतर सकती॥ कुछ  बहिनो ने अपने चारो और हल्के पन कि दिवारे खड्डी कर ली है। उन्ह मे दिवारो से परे झॉकने कि क्षमता भी नष्ट हो चुकि है। जैसे अपराध करने वाले कैदि का बहार से सम्बन्ध टुट जाता है वैसे ही कुछ अव्यवारिक, अभद्र्, विचारो वाले मनुष्य ने {नारी कटरपन्थी} चारो और फैले सत्य के प्रकाश से ऑखे मून्द लेते है। अपने खराब चरित्र का स्वय प्रस्तुति दे जाते है। क्या अभद्र भाषा सत्य को झुटला सकती है ?

कोई  भी व्यक्ती अपनी निच प्रवृति से महान बनने कि कोशिश उसे एवम उसके आसपास के समाज को ले डूबती है।  मेरे विचार जो मैने स्कुल मे मेरी मेडम अध्यापक से सिखा,वो हमेशा कहा करती थी कि लडकियो को पुरे कपडे पहनने चाहिये। तो क्या मेरी महिला टिचर भी घटियॉ स्तर कि सोच रखती थी? मैने बहुधा माताओ से यह कहते हुये सुना कि " बेटि कपडे सलिकेदार ही पहनो तो क्या सभी कि मॉ भी घटियॉ स्तर कि सोच कहा जाएगा ? मैने बहुत बडी बडी महिला चिन्तको, लेखको, समाजसेविकाओ को देखा ,पढा, सुना सभी ने यही कहॉ लडकियो को अपनी पहनावे को गहने के रुप मे देखना चाहिये। तो क्या यह सभी भी बेवकुफ थे या खराब मानसिकता के शिकार थे ?

गर नारी जाति का सहयोग ही नही मिलेगा तो सरकार सिर्फ कानुन बना सकती है, घर घर जाकार महिलाओ को सुरक्षा नही दे सकती है। 
से मे महान दार्शनिक अस्तु हमे समाधान देते है-" तुमने अपने को पहचाना नही ,इसलिये तुम दुखी हो।" वस्तुतः यह हमारी मनः दशा का प्रकटीकरण है। जाहिर है अपराध हमारे अपने कृत्यो- पहनावे- दिखावे से भी उतपन्न होता है। 
विकागलता शरीर से हो सकती है, किन्तु आपका मन विकागलता से ग्रसित नही होना चाहिये। हमारी मानसिकता हमारे विचारो को प्रभावित करती है। और इन्ही विचारो कि झलक हमारे विचारो मे भी झलकती है।
मैने आज तक जो भी लिखा है वो सामाजिकता के प्रति मेरा दृड निश्चयता है। मै कुछेक लोगो द्वारा मेरे आलेख के प्रती कि गई घटियॉ शब्दावली का कोई उतर नही देना चाहुगा। क्यो कि ऐसे लोग शायद अपनी बहन बेटियो को भ्रमित करते है। हम लिखते है अच्छे के लिये,किन्तु किसी को नगा घुमने का शोक है तो कोन क्या कर सकता है ? क्यो कि इससे पुर्व भी अन्य ब्लोग पर "गाली" के मुद्दे पर चर्चा का रेड लाईट एरियॉ मे पहुच कर खत्म हुआ । बडे दुख के साथ लिखना पड रहा है कि कुछ लोग भाषा कि तमिज भुलकर हम लेखको कि जुबान बन्द करवाने कि कोशिश करते है। 
मेरे सभी विचार उन्ह भाइयो और बहनो के लिये है जो अच्छी भाषा मे स्वस्थ पुर्ण टीप्पणी दे सके।  
TRP चक्क्रर मे सामाजिक व्यवस्था का बन्टाधार करने को तुली है वो ब्लोगर जिसने आव देखा ना ताव अपनी राजनिति चमकाने आ गई। और कमेन्ट करने के बजाये नई पोस्ट ही लिख दी, क्या लिखा ? अपशब्द अगर ब्लोगरो कि दुनियॉ मे फैशन बन गया है तो फिर रास्ते तो सभी के लिये खुले है ? आप क्या, और मै क्या ?

भी दोस्तो से निवेदन है कि कोई भी इस बहस को जारी ना रखे, ना ही इस पर कमेन्ट करे। हमे महिलाओ के सुरक्षा के लिये ज्यादा चिन्तीत होना है। कोई हालत मे हमे इसे आगे नही बडाना है। क्यो कि हमे देश, समाज, परिवार, धर्म के लिये बहुत काम करना है। 

हादसो से टकराना मेरी फिदरत है

नाकामियो पे ऑसु बहाना मुझे नही आता"

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जिन्दगी की असली उडान है बाकी,

अपने इरादो का इम्तहान है बाकी।  

अभी तो नापी है मूट्ठी भर जमी,

आगे भी पुरा आसमा बाकी है॥

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नोट-( कोई भी पक्ष अपक्ष चर्चा का विषय ना बनाये। इस सम्बन्ध मे मेरी तरफ से कोई सफाई नही मिलेगी। 

मै आप सभी का आभार प्रकट करता हु। और जल्दी ही आप को मेरे नये आलेख को पढ सकोगे।)



Comments

  1. आप लाख मन कर लें की इस पर टिप्पदी न करो!! लेकिन मैं नहीं मानूंगा क्योंकि आपमें जिस तरह का बड़प्पन है बह काबिले तारीफ है क्योंकि गल्ली का जवाब गाली से देना ही सब कुछ नहीं होता और मैं खुद इस ब्लॉग को गाली गलोच का अड्डा बन्ने देना नहीं चाहता सो आपकी मानसिकता और आपके प्रयासों से मैं बहुत खुश हूँ !! अगर आप जैसे लोगों का साथ रहा तो हम बहुत कुछ कर पाएंगे !! आशा है आप अपना सहयोग बनाये रखेंगे !!

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  2. आपकी महानता नजर आई इस मुद्दे पर,आपने बड़े शालीन लहजे में ख़ुद को सयोंजित किया शयद ऐसा मैं नही कर पाता !!

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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