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मुझे अब भी तेरी याद आती है।

मुझे अब भी तेरी याद आती है।
कभी हंसाती तो कभी रुलाती है।
तन्हाई में चुपके से आकर
अक्सर सताती है।

मुझे अब भी तेरी याद आती है
वो तेरा मुस्कुराना अपनी पलकों से बताना,
तेरी हर एक अदा मूझको कितना लुभाती है।
पर क्या

मुझे अब भी तेरी याद आती है।
तुम्हे तो वो याद ही होगा, तुम्हारी
पलके भीग जाती थी। मुझे लगता था
शायद तुमको मेरी याद आती थी।

अब पता चला है, मुझको
तुझे न मेरी याद आती थी,
न ही अब मेरी याद आती है
पर मैं सच बताऊँ तुमको
मुझे अब भी तेरी याद आती है।
आगे यहाँ
माना हमने की आप भुला चुके हो हमें
तो फिर अब क्यों रुलाते हों
नहीं रह सकते हो आप पास हमारे,
तो अपनी यादें क्यों छोड़ जाते हो।
तेरी ये यादें दिलबर हमको, हर बक्त रुलाती है।

कभी हवा का झोखा बनकर, कभी
बारिश की की बूंदे बनकर, दिल में समाती है।

माना कि ये आखिरी सांस है हमारी पर
क्या क्या करुँ
मुझे अब भी तेरी याद आती है।

Comments

  1. बहुत बढ़िया कशिश जी की आपने मेरी रचना को यहाँ पर प्रकाशित करने लायक समझा !

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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