प्यारे दोस्तों.................
नीचे की तीनों पोस्टें आज की मेरी व्यथा हैं....सिर्फ़ मेरी कलम से निकलीं भर हैं....वरना हैं तो हम सब की ही.....जी करता है खूब रोएँ.....मगर जी चाहता है....सब कुछ को....इस जकड़न को तोड़ ही देन.....मगर जी तो जी है....इसका क्या...........दिल चाहता है.....................!!
यः आदमी इतना बदहाल क्यूँ है....??
गर खे रहा है नाव तू ऐ आदमी
गैर के हाथ यह पतवार क्यूँ है...?
तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर
तीरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है...??
हर कोई सभ्य है और बुद्धिमान भी
हर कोई प्यार का तलबगार क्यूँ है....??
इतनी ही शेखी है आदमियत की तो
इस कदर ज़मीर का व्यापार क्यूँ है....??
बाप रे कि खून इस कदर बिखरा हुआ...
ये आदमी इतना भी खूंखार क्यूँ है...??
हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"
आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है ??
ज़हर पी के नीले हो गए....!!
लो हमको रुलाई आ गई.....क्या तुम भी गीले हो गए.....??
जिस रस्ते हम चल रहे थे....आज वो पथरीले हो गए....!!
शाम से ही है दिल बुझा....पेडों के पत्ते पीले हो गए....!!
इस थकान का मैं क्या करूँ....जिस्म सिले-सिले हो गए!!
जख्म जो दिल पे लगे....रेत के वो टीले-टीले हो गए....!!
"गाफिल" जिनका नाम है...ज़हर पी के नीले हो गए....!!
आवन लागी है याद तिरी.......!!
आवन लागी याद तिरी.....दिल देखे है ये बाट तेरी.....!!
कौन इधर से गुज़रा है.....अटकी जाती है साँस मिरी....!!
फूल को डाल पे खिलने दो...देखत है इन्हे आँख मिरी...!!
कितना गुमसुम बैठा है...बस दिल में इक है याद तिरी!!
बस इत उत ही तकती है.....आँख बनी हैं जोगन मिरी...!!
किस किस्से को याद करूँ....याद जो आए जाए ना तिरी..!!
"गाफिल"मरना मुश्किल है...उसको देखे ना जान जाए मिरी!!
नीचे की तीनों पोस्टें आज की मेरी व्यथा हैं....सिर्फ़ मेरी कलम से निकलीं भर हैं....वरना हैं तो हम सब की ही.....जी करता है खूब रोएँ.....मगर जी चाहता है....सब कुछ को....इस जकड़न को तोड़ ही देन.....मगर जी तो जी है....इसका क्या...........दिल चाहता है.....................!!
यः आदमी इतना बदहाल क्यूँ है....??
गर खे रहा है नाव तू ऐ आदमी
गैर के हाथ यह पतवार क्यूँ है...?
तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर
तीरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है...??
हर कोई सभ्य है और बुद्धिमान भी
हर कोई प्यार का तलबगार क्यूँ है....??
इतनी ही शेखी है आदमियत की तो
इस कदर ज़मीर का व्यापार क्यूँ है....??
बाप रे कि खून इस कदर बिखरा हुआ...
ये आदमी इतना भी खूंखार क्यूँ है...??
हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"
आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है ??
ज़हर पी के नीले हो गए....!!
लो हमको रुलाई आ गई.....क्या तुम भी गीले हो गए.....??
जिस रस्ते हम चल रहे थे....आज वो पथरीले हो गए....!!
शाम से ही है दिल बुझा....पेडों के पत्ते पीले हो गए....!!
इस थकान का मैं क्या करूँ....जिस्म सिले-सिले हो गए!!
जख्म जो दिल पे लगे....रेत के वो टीले-टीले हो गए....!!
"गाफिल" जिनका नाम है...ज़हर पी के नीले हो गए....!!
आवन लागी है याद तिरी.......!!
आवन लागी याद तिरी.....दिल देखे है ये बाट तेरी.....!!
कौन इधर से गुज़रा है.....अटकी जाती है साँस मिरी....!!
फूल को डाल पे खिलने दो...देखत है इन्हे आँख मिरी...!!
कितना गुमसुम बैठा है...बस दिल में इक है याद तिरी!!
बस इत उत ही तकती है.....आँख बनी हैं जोगन मिरी...!!
किस किस्से को याद करूँ....याद जो आए जाए ना तिरी..!!
"गाफिल"मरना मुश्किल है...उसको देखे ना जान जाए मिरी!!
प्ने ब्लोग पर आपका स्वागत है.इतनी शेखी आदमियत की तो इस कदर जमीर का व्यापार क्यों है क्या खूब कहा बधाई
ReplyDeleteआपकी ग़ज़लों को पड़कर एक अदभुत अनुभव हुआ !!आपके लेखन में एक अजब सा जादू है यह मैं आपको पहेले भी बता चुका हूँ!!
ReplyDeleteआपके इस सहयोग के लिए शुक्रिया..और आगे भी इसी प्रकार के सहयोग की आशा !!!
भाई संजय.............इतना प्रेम ना दें........मुझ पर बकाया हो जायेगा.....जिसे चुकाने मुझे फिर से धरती पर आना पडेगा....!!
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