मुंबई, लक्षद्वीप, पोरबंदर और कोंकण के तटों पर पिछले दो दशकों से सिर्फ और सिर्फ डी कंपनी का कब्जा है. 1993 में दुनिया में पहली बार श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मुंबई में हुए थे. इन विस्फोटो में दाऊद की क्या भूमिका थी? आरडीएक्स पाकिस्तानी सेना ने दिया था, ट्रेनिंग पाकिस्तानी सेना ने दिया था. डी कंपनी ने लाजिस्टिक का सपोर्ट दिया था. प्रशिक्षण के लिए टिकट और वीजा उपलब्ध कराना तथा आरडीएक्स और एक-56 जैसी राईफलें को मुंबई तक लाने का काम भी डी कंपनी ने किया था.
वे सफल क्यों हुए? क्योंकि जिस दाऊद फड़सें उर्फ टकल्या और टाईगर मेनन का नेटवर्क इस्तेमाल में लाया गया था वह नेटवर्क सालों से इस रूट से स्मगलिंग करता था. हर विभाग को उनका नियमित हफ्ता जाता था. नेवी, कोस्टगार्ड, मरीन प्रिवेन्टिव और कस्टम में से किसी को उनका कंसाइनमेन्ट खोलकर देखने की जरूरत महसूस नहीं हुई. वैसे भी इस तरह के स्मगरलों की पहुंच वित्त मंत्रालय तक होती है और सुरक्षा बलों के पास इस तरह के हथियार और उपकरण नहीं होते हैं कि वे इनसे मुकाबला कर सकें. लड़ेंगे तो या तो मरेंगे या फिर वहां से हटाकर कहीं दूर फेंक दिये जाएंगे. लेकिन यदि वे स्मगलरों से मिलकर काम करेंगे तो कमाई भी होगी और अच्छी पोस्टिंग और प्रमोशन की गारंटी भी.
इसी का परिणाम है कि मोहम्मद अली मुंबई और कोंकण तट के समुद्र का किंगपिन बन गया और पंजू मियां लक्षद्वीप से लेकर पोरबंदर तक अपना साम्राज्य चलाता है. तटीय सुरक्षा को लेकर एक टास्कफोर्स का गठन हुआ था. यह टास्क फोर्स कारगिल युद्ध में हुई इंटेलिजेन्स की विफलता के लिए गठित कुल चार टास्क फोर्स में से एक थी. इस टास्कफोर्स ने तमाम तरह के सुझाव दिये थे. खुद टास्कफोर्स की रिपोर्ट कहती है कि मुंबई, लक्षद्वीप और पोरबंदर समेत पाकिस्तानी समुद्री सीमा से सटे तटों की लापरवाही से इस देश को खबी भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. उदाहरणस्वरूप लक्षद्वीप की स्थिति को देखें. लक्षद्वीप कुल 36 द्वीपों का समूह है. इसमें 10 द्वीप पूरी तरह से निर्जन है. इन दस द्वीपों में ही एक द्वीप का नाम सुहेली है. टास्क फोर्स की रिपोर्ट बताती है कि सुहेली द्वीप पर अक्सर रोटर हेलिकाप्टर उतरते रहते हैं.रोटर हेलिकाप्टर सेना द्वारा इस्तेमाल में लाये जाते हैं. यदि निर्जन द्वीप पर हेलिकाप्टर आता है तो निश्चित जाने कि यह पाकिस्तानी सेना का नहीं होगा. फिर ये हैलिकाप्टर किसके हैं? ये हेलिकाप्टर निश्चित रूप से उनके द्वारा इस्तेमाल किये जाते हैं जो समुद्री मार्ग से डीजल, नार्कोटिक्स या केमिकल की तस्करी कर वहां तैनात सीमा रक्षकों की जेब भारी करते हैं. टास्क फोर्स की रिपोर्ट भी यह मानती है कि इन द्वीपों की पुख्ता सुरक्षा तो दूर सामान्य सुरक्षा भी नहीं है.
हमारी सरकार की ओर से इन 36 द्वीपों के लिए सिर्फ खुफिया सूचनाएं इकट्ठा करने का नेटवर्क है. करवत्ती नामक द्वीप पर एक स्पेशल आफिस है. इस आफिस का प्रभारी एक इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी और उसके मातहत एक सब इंस्पेक्टर, एक हेड कांस्टेबल और तीन कांस्टेबलों का दल है. यानी कुल 6 लोग 36 महत्वपूर्ण द्वीपों की निगरानी के जिम्मेदार है. अब आप खुद तय कर लें कि ये दस्ता खतरनाक स्मगलरों या आतंकियों का मुकाबला करेगा या उनके साथ साठ-गांठ करके अपना पेट भरेगा. टास्क फोर्स की रिपोर्ट के बाद क्या सुधार हुआ? सरकार ने स्पेशल आफिस का प्रभारी पद डेपुटी सेन्ट्रल इंटेलिजेंस आफिसर के रैंक का बना दिया, बाकी सब कुछ पूर्ववत है. इन द्वीपों पर पेट्रोलिंग बढ़ाने, सेन्सर लगाने आदि की सिफारिश की गयी थी. आज दिन तक लक्षद्वीप में खुफिया सूचना उपलब्ध करवानेवाले इस दल के पास आतंकियों की कार्रवाई रोकने का कोई औजार ही नहीं है.
राजस्व खुफिया निदेशालय ने वर्षों पहले एक रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की थी. उस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पोरबंदर और लक्षद्वीप में मच्छीमारी के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले अधिकांश ट्रालर ऐसे लोगों के नाम पर है जिनकी माली हालत साईकिल या मोटरसाईकिल खरीदने की भी नहीं है. ये ट्रालर या तो पंजू मियां गिरोह के हैं या अथवा डी कंपनी के अन्य आपरेटरों के. मुंबई और कोंकण तट पर यही हाल मोहम्मद अली, चांद खान और सदरूद्दीन का भी है. इनकी छोटी नौकाएं कभी कस्टम नोटिफाईड एरिया में नहीं आती. इनका अड्डा है शिवड़ी के दारूखाना अथवा बधवार पार्क मच्छीमार कालोनी या फिर अलीबाग की जेट्टी. 26 नवंबर 2008 को भी जो आतंकवादी आये वे बधवार पार्क के तट पर उतरे थे. अधिकांश मच्छीमार जानते हैं कि इस तरह की छोटी बोट या नौका से अक्सर मोहम्मद अली के आदमी उतरते हैं. डीआरआई की सूचना के अनुसार अधिकांश मछुआरे अपने ट्रालर के लिए डीजल पेट्रोलपंप की बजाय स्मगलर से खरीदते हैं. ये स्मगलर दुबई, ईराक, ईरान और सऊदी अरेबिया से चोरी का डीजल जहाज भर-भर कर भेजते हैं. चोरी का डीजल खुद डी कंपनी भारत में उतारता है. मोहम्मद अली, चांद खान, सदरूद्दीन के ट्रालर मध्य समुद्र में जाते हैं और "वेसल" से डीजल लेकर आते हैं. यही डीजल ट्रालर के माध्यम से दारूखाना या बधवार पार्क उतारा जाता है. मच्छीमारों को राज्य सरकार डीजल में सब्सिडी देती है. मोहम्मद अली का डीजल इतना सस्ता होता है कि मच्छीमार सब्सिडीयुक्त डीजल की बजाय यही चोरी का डीजल खरीदते हैं. बाद में डीजल खरीद की बनावटी रसीद पेश कर सरकार से सब्सिडी की राशि भी प्राप्त कर लेते हैं. क्योंकि मच्छीमार माफिया से सस्ती दर पर डीजल पाता है इसलिए वह माफिया के साथ हर संभव सहयोग करता है.
हमारी सरकार की ओर से इन 36 द्वीपों के लिए सिर्फ खुफिया सूचनाएं इकट्ठा करने का नेटवर्क है. करवत्ती नामक द्वीप पर एक स्पेशल आफिस है. इस आफिस का प्रभारी एक इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी और उसके मातहत एक सब इंस्पेक्टर, एक हेड कांस्टेबल और तीन कांस्टेबलों का दल है. यानी कुल 6 लोग 36 महत्वपूर्ण द्वीपों की निगरानी के जिम्मेदार है. अब आप खुद तय कर लें कि ये दस्ता खतरनाक स्मगलरों या आतंकियों का मुकाबला करेगा या उनके साथ साठ-गांठ करके अपना पेट भरेगा. टास्क फोर्स की रिपोर्ट के बाद क्या सुधार हुआ? सरकार ने स्पेशल आफिस का प्रभारी पद डेपुटी सेन्ट्रल इंटेलिजेंस आफिसर के रैंक का बना दिया, बाकी सब कुछ पूर्ववत है. इन द्वीपों पर पेट्रोलिंग बढ़ाने, सेन्सर लगाने आदि की सिफारिश की गयी थी. आज दिन तक लक्षद्वीप में खुफिया सूचना उपलब्ध करवानेवाले इस दल के पास आतंकियों की कार्रवाई रोकने का कोई औजार ही नहीं है.
राजस्व खुफिया निदेशालय ने वर्षों पहले एक रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की थी. उस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पोरबंदर और लक्षद्वीप में मच्छीमारी के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले अधिकांश ट्रालर ऐसे लोगों के नाम पर है जिनकी माली हालत साईकिल या मोटरसाईकिल खरीदने की भी नहीं है. ये ट्रालर या तो पंजू मियां गिरोह के हैं या अथवा डी कंपनी के अन्य आपरेटरों के. मुंबई और कोंकण तट पर यही हाल मोहम्मद अली, चांद खान और सदरूद्दीन का भी है. इनकी छोटी नौकाएं कभी कस्टम नोटिफाईड एरिया में नहीं आती. इनका अड्डा है शिवड़ी के दारूखाना अथवा बधवार पार्क मच्छीमार कालोनी या फिर अलीबाग की जेट्टी. 26 नवंबर 2008 को भी जो आतंकवादी आये वे बधवार पार्क के तट पर उतरे थे. अधिकांश मच्छीमार जानते हैं कि इस तरह की छोटी बोट या नौका से अक्सर मोहम्मद अली के आदमी उतरते हैं. डीआरआई की सूचना के अनुसार अधिकांश मछुआरे अपने ट्रालर के लिए डीजल पेट्रोलपंप की बजाय स्मगलर से खरीदते हैं. ये स्मगलर दुबई, ईराक, ईरान और सऊदी अरेबिया से चोरी का डीजल जहाज भर-भर कर भेजते हैं. चोरी का डीजल खुद डी कंपनी भारत में उतारता है. मोहम्मद अली, चांद खान, सदरूद्दीन के ट्रालर मध्य समुद्र में जाते हैं और "वेसल" से डीजल लेकर आते हैं. यही डीजल ट्रालर के माध्यम से दारूखाना या बधवार पार्क उतारा जाता है. मच्छीमारों को राज्य सरकार डीजल में सब्सिडी देती है. मोहम्मद अली का डीजल इतना सस्ता होता है कि मच्छीमार सब्सिडीयुक्त डीजल की बजाय यही चोरी का डीजल खरीदते हैं. बाद में डीजल खरीद की बनावटी रसीद पेश कर सरकार से सब्सिडी की राशि भी प्राप्त कर लेते हैं. क्योंकि मच्छीमार माफिया से सस्ती दर पर डीजल पाता है इसलिए वह माफिया के साथ हर संभव सहयोग करता है.
फिर भी इस बार मच्छीमार समिति ने बंदरगाह मंडल में उपायुक्त मधुकर कोहे को सूचना दी थी. पुलिस ने भी लापरवाही बरती. दरअसल पुलिस के पास और कोई रास्ता भी नहीं था. पहले मोहम्मद अली को नरसैया मामा नामक गिरोहबाज चुनौती देता था. बीच के दिनों में छोटा राजन गिरोह ने हथियारों का एक जखीरा भेजा. डीआरआई को उस जखीरे की सूचना मिली. डीआरआई इंतजार कर रही थी कि हथियारों का कंसाईनमेन्ट जो छुड़ाने आयेगा तो उसे धर दबोचेंगे. इसी बीच यह जानकारी मोहम्मद अली को मिल गयी. मोहम्मद अली ने यह सूचना क्राईम ब्रांच को दे दी. उन दिनों मोहम्मद अली छोटा-मोटा कारोबारी था और पुलिस के लिए खबरी का काम करता था. मोहम्मद अली की सूचना पर पुलिस ने छापा मारकर हथियारों का जखीरा बरामद कर लिया. छापा ऐसे स्क्वाड से मरवाया गया जिससे छोटा राजन की खुली दुश्मनी चल रही थी. इसी बीच एक दिन मोहम्मद अली के आदमियों ने नरसैया मामा को मरवा दिया. आरोप लगा कि यह काम छोटा राजन के आदमियों ने किया है. लेकिन सवाल यह था कि अगर शूटर छोटा राजन के थे तो जमानत मोहम्मद अली ने क्यों करवाया? वह अपने आका दाऊद इब्राहिम से दुश्मनी मोल क्यों लेगा? नरसैया मामा की हत्या के बाद डीजल के दो अन्य तस्कर चांद खान और सदरूद्दीन ने भी उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उसके बाद से मोहम्मद अली कोंकण से लेकर मुंबई तक समंदर का बेताज बादशाह बन गया है.
कस्टम, डीआरआई और पुलिस के अधिकारी भी मानते हैं कि बिना मोहम्मद अली के मदद से ट्रालर तटों तक पहुंच ही नहीं सकते. और यह बात भी सबको पता है कि आतंक को अब फण्डिंग नारकोटिक्स से नहीं बल्कि अवैध रूप से तेल के कारोबार से हो रही है और इस कारोबार का सरगना दाऊद इब्राहिम है. अमेरिकी खुफिया एजंसी बार-बार भारत की खुफिया एजंसियों को बता रही थी कि दाऊद इब्राहिम को अलकायदा ने कहा है कि वह लश्कर-ए-तोयबा को जमीनी और आर्थिक मदद करे. इस मदद के बदले में दाऊद को इराक, ईरान, सऊदी अरब और दुबई से तमाम तेल कारोबारियों से कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से तेल सप्लाई कराने का भरोसा दिया. दाऊद ने इधर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में तेल की तस्करी का तगड़ा नेटवर्क स्थापित कर लिया है. यह पूरा नेटवर्क मच्छीमारों के बीच और उन्हीं के सहयोग से चलता है. इतना सब जानकारी होते हुए भी हमारी एजंसियों ने दाऊद के तेल नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया. दाऊद ने लश्कर को साथ क्यों लिया? क्योंकि लश्कर का नेटवर्क अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अरब और दक्षिण एशिया के लगभग सारे देशों में है. लश्कर का मातृसंगठन है सऊदी अरब का अहल-ए-हदीस. अहल-ए-हदीस के मौलवियों का एक टेलीफोन खाड़ी देशों के शासकों का कोई भी फैसला बदलवा सकता है. मसलन दाऊद इब्राहिम का भाई अनीस इब्राहिम कासकर संयुक्त अरब अमीरात में गिरफ्तार हुआ. दाऊद ने उसे बचाने के लिए अपनी थैली खोल दी पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ. फिर दाऊद अहल-ए-हदीस के मौलवियों के पास पहुंचा. इसके बाद अनीस सुरक्षित पाकिस्तान पहुंच गया. दाऊद ने अपनी बेटी की शादी जावेद मियांदाद के बेटे से की है. उसकी वलीमा वह पाकिस्तान में नहीं रख सकता. एक बार फिर उसने अहल-ए-हदीस के मौलवियों का सहारा लिया और अरब प्रशासकों ने उसे आयोजन करने की आज्ञा दे दी. इसके साथ ही इराक में लश्कर का अच्छा नेटवर्क है जो दाऊद को तेल के कारोबार में मदद कर सकता है इसलिए भी दाऊद को लश्कर के साथ मिलने में अपना आर्थिक फायदा नजर आया. मुंबई आपरेशन को दाऊद ने इसीलिए अपना पूरा सहयोग दिया.
सीआए के आतंकवाद विशेषज्ञ मार्क सेजमेन का कहना है कि कश्मीर में आये भूकंप के बाद लश्कर का पूरा ढांचा खत्म हो गया था. उनके आतंकियों की संख्या मुश्किल से १०० के करीब बची थी. उसी समय लश्कर के प्रमुख हाफिज सईद को दाऊद के हवाले कर दिया गया. अपने तेल के कारोबार में भविष्य के फायदों को देखते हुए दाऊद ने लश्कर को अपने साथ मिलाने में कोई हर्जा नहीं समझा. मुंबई में हुए आतंकी हमले में जिस तरह से अमेरिकी और ब्रिटिश नागरिकों को अलग करके मारा गया उससे यह साफ है कि दाऊद अल कायदा की नजर में अपने आप को गाजी साबित करना चाहता है. ताज के हमलावरों को १७ रूसी पासपोर्टधारी नागरिक मिले थे. उन्हें छोड़ दिया गया. रूस में जारी चेचेन विद्रोहियों की लड़ाई के बावजूद रूसी नागरिकों को जेहाद की जद में क्यों शामिल नहीं किया गया? ऐसा इसलिए क्योंकि रूस और उजबेकिस्तान में भी दाऊद ने अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया है. रूस और उजबेकिस्तान में भी तेल का बड़ा भण्डार है. दाऊद तेल को आतंक की फण्डिंग का नया औजार बना रहा है जिसका नेटवर्क पूरे दक्षिण एशिया में लगभग स्थापित हैं और बड़े आराम से काम कर रहा है.
कस्टम, डीआरआई और पुलिस के अधिकारी भी मानते हैं कि बिना मोहम्मद अली के मदद से ट्रालर तटों तक पहुंच ही नहीं सकते. और यह बात भी सबको पता है कि आतंक को अब फण्डिंग नारकोटिक्स से नहीं बल्कि अवैध रूप से तेल के कारोबार से हो रही है और इस कारोबार का सरगना दाऊद इब्राहिम है. अमेरिकी खुफिया एजंसी बार-बार भारत की खुफिया एजंसियों को बता रही थी कि दाऊद इब्राहिम को अलकायदा ने कहा है कि वह लश्कर-ए-तोयबा को जमीनी और आर्थिक मदद करे. इस मदद के बदले में दाऊद को इराक, ईरान, सऊदी अरब और दुबई से तमाम तेल कारोबारियों से कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से तेल सप्लाई कराने का भरोसा दिया. दाऊद ने इधर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में तेल की तस्करी का तगड़ा नेटवर्क स्थापित कर लिया है. यह पूरा नेटवर्क मच्छीमारों के बीच और उन्हीं के सहयोग से चलता है. इतना सब जानकारी होते हुए भी हमारी एजंसियों ने दाऊद के तेल नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया. दाऊद ने लश्कर को साथ क्यों लिया? क्योंकि लश्कर का नेटवर्क अफगानिस्तान, बांग्लादेश, अरब और दक्षिण एशिया के लगभग सारे देशों में है. लश्कर का मातृसंगठन है सऊदी अरब का अहल-ए-हदीस. अहल-ए-हदीस के मौलवियों का एक टेलीफोन खाड़ी देशों के शासकों का कोई भी फैसला बदलवा सकता है. मसलन दाऊद इब्राहिम का भाई अनीस इब्राहिम कासकर संयुक्त अरब अमीरात में गिरफ्तार हुआ. दाऊद ने उसे बचाने के लिए अपनी थैली खोल दी पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ. फिर दाऊद अहल-ए-हदीस के मौलवियों के पास पहुंचा. इसके बाद अनीस सुरक्षित पाकिस्तान पहुंच गया. दाऊद ने अपनी बेटी की शादी जावेद मियांदाद के बेटे से की है. उसकी वलीमा वह पाकिस्तान में नहीं रख सकता. एक बार फिर उसने अहल-ए-हदीस के मौलवियों का सहारा लिया और अरब प्रशासकों ने उसे आयोजन करने की आज्ञा दे दी. इसके साथ ही इराक में लश्कर का अच्छा नेटवर्क है जो दाऊद को तेल के कारोबार में मदद कर सकता है इसलिए भी दाऊद को लश्कर के साथ मिलने में अपना आर्थिक फायदा नजर आया. मुंबई आपरेशन को दाऊद ने इसीलिए अपना पूरा सहयोग दिया.
सीआए के आतंकवाद विशेषज्ञ मार्क सेजमेन का कहना है कि कश्मीर में आये भूकंप के बाद लश्कर का पूरा ढांचा खत्म हो गया था. उनके आतंकियों की संख्या मुश्किल से १०० के करीब बची थी. उसी समय लश्कर के प्रमुख हाफिज सईद को दाऊद के हवाले कर दिया गया. अपने तेल के कारोबार में भविष्य के फायदों को देखते हुए दाऊद ने लश्कर को अपने साथ मिलाने में कोई हर्जा नहीं समझा. मुंबई में हुए आतंकी हमले में जिस तरह से अमेरिकी और ब्रिटिश नागरिकों को अलग करके मारा गया उससे यह साफ है कि दाऊद अल कायदा की नजर में अपने आप को गाजी साबित करना चाहता है. ताज के हमलावरों को १७ रूसी पासपोर्टधारी नागरिक मिले थे. उन्हें छोड़ दिया गया. रूस में जारी चेचेन विद्रोहियों की लड़ाई के बावजूद रूसी नागरिकों को जेहाद की जद में क्यों शामिल नहीं किया गया? ऐसा इसलिए क्योंकि रूस और उजबेकिस्तान में भी दाऊद ने अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया है. रूस और उजबेकिस्तान में भी तेल का बड़ा भण्डार है. दाऊद तेल को आतंक की फण्डिंग का नया औजार बना रहा है जिसका नेटवर्क पूरे दक्षिण एशिया में लगभग स्थापित हैं और बड़े आराम से काम कर रहा है.
कराची से मुंबई मुंबई पर लश्कर-ए-तोयबा आतंकी हमले की योजना बना रहा था इसकी जानकारी हर जिम्मेदार आदमी को थी. बावजूद इसके न केवल लश्कर हमले में कामयाब हुआ बल्कि उसने छह महीने पूर्व इस हमले का सफलतापूर्वक पूर्वाभ्यास भी किया था. गिरगांव चौपाटी से गिरफ्तार फिदायीन अजमल कसाब से जांच एजंसियों को जो जानकारी मिली है वह हमारे सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती है. लेकिन हम इस योजना की तह में जाते हैं और उस घटनाक्रम को जानते हैं जिसमें आज से छह महीना पहले ये आतंकी हमले का पूर्वाभ्यास करके मुंबई से वापस चले गये थे. क्या आपको याद है कि एक बार कुछ टीवी चैनलों ने यह खबर चलायी थी कि भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर भी आतंकी हमलों की जद में है. उन्हीं दिनों की बात है. मुजफ्फराबाद के पास बैतुल मुजाहीदीन से एक फिदायीन दस्ता रावलपिंडी के लिए चलता है. बैतुल मुजाहीदीन लश्कर का मुख्यालय है. रावलपिंडी से यह दस्ता ट्रेन पकड़कर करांची पहुंचा. रावलपिण्डी से कराची के बीच का यह सफर इस दस्ते ने ट्रेन के अलग-अलग डिब्बों में किया क्योंकि मिशन के पहले वे किसी भी हाल में सुरक्षा दस्ते के हाथ लगने से बचना चाहते थे. यहां से मुंबई के लिए वे तब चलते जब मुंबई स्थित डी कंपनी का नेटवर्क इसके लिए हरी झण्डी दिखाता. इसलिए कोई एक सप्ताह तक ये फिदायीन एक कमरे में रूके रहे. हरा सिग्नल पाते ही ३ मार्च २००८ को लश्कर के ८ फिदायीन कराची से रवाना हुए. चार दिन तक ये समंदर में रहे. उनकी यात्रा एक मच्छीमार जहाज से हुई. इसी दौरान कोस्टगार्ड के जवानों ने इस मच्छीमार जहाज को मध्य मुंबई में रोका जिसपर ये आठों आतंकी सवार थे. ऐसी खबर है कि कोस्टगार्ड के अधिकारियों को इन आतंकियों ने मोटी रकम दी जिसके कारण कोस्टगार्ड ने उन्हें जाने दिया. लेकिन रिश्वत खाने के बाद भी यहां कोस्टगार्ड ने एक चालाकी जरूर की. उन्होंने उनके सामान में एक ट्रैकिंग डिवाईस डाल दिया. आगे ये आतंकी जहां-जहां गये उस ट्रैकिंग डिवाईस के कारण इंटेलिजेंस को उनकी यात्राओं की जानकारी मिलती रही. चार दिन बाद रात के वक्त यह फिदायीन दस्ता मुंबई में दाखिल हो गया था. यह फिदायीन दस्ता भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर के पास ही आकर रूका था और मुंबई आये भी थे समुद्री मार्ग से. यहां कुछ दिन रूककर यह दस्ता यहां से जम्मू कश्मीर चला गया. वहां उन्हें 'खबरी' लोगों की सहायता से पकड़ा भी गया. यहां पकड़े गये जमील अहमद अवान और अब्दुल माजिद अरैयन ने आगाह किया था कि लश्कर मुंबई पर चढ़ाई की योजना बना रहा है. ये दोनों आतंकी अभी भी भारतीय जेलों में बंद हैं. इन्हीं आतंकियों से लश्कर के नये ठिकाने का पता मिला जो कि कश्मीर में आये भयानक भूकंप के कारण तबाह हो गया था. लेकिन लश्कर को जब यह सूचना मिली कि उसके द्वारा भेजे गये आठ आतंकियों में से दो पकड़ लिये गये हैं तो उसने नये सिरे से आतंकी टीम गठन करने का काम शुरू किया. क्योंकि शक था कि इन दो लोगों ने बाकी लोगों की भी निशानदेही कर दी होगी. नयी आतंकी टीम में २० आतंकियों को ट्रेनिंग दी गयी. प्रशिक्षण के बाद इन आतंकियों को एक महीने की छुट्टी दी गयी और उसके बाद कराची में मिलने के लिए कहा गया.
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर