गान्धीजी का मोर्डन आर्ट खादी ओर तीन बन्दर
सरकारी कार्यालयो मे रिश्वत लेने
गाधीजी ने १९४५ मे ख्याल आया कि मेरे मरने के बाद मेरे पुतले बनेगे। और मेरे नाम पर सडको के नाम तो जरुर होगे। उन्होने सोचा कि यह भी वेल डिजाइन्ड होना चाहिये तो उन्होने पुतला बनाने कि पैक्ट्रिस शुरु कि और अपनी हेड राइटिग कि तरह ही मुर्तियॉ और पुतले बनाये। बनाने चले थे कुछ ओर ही लेकिन बन गऐ बन्दर। वह भी एक नही, दो नही, पुरे के पुरे तीन बन्दर । एक बहरा, दुसरा गुगा, तीसरा अन्धा। मन्त्रियो कि गीता उन्होने यही पर पैदा कर दी।जिस तरह मोर्डन आर्ट मे देखकर विचार करते व फैसला करते ठीक उसी तरह यह गॉन्धीजी कि 'मोर्डन-आर्ट थी।
इसका मतलब मन्त्रियो को अपनी अक्ल के हिसाब से इसके भावो को लेना था। इसीलिये उन्होने मन ही मन फैसला किया
"कुछ ना सुनो", कुछ ना देखो", कुछ ना बोलो",
खादी गाधीजी ने बेचने के लिये बनाई यानि ग्रामिण उधोग के हिसाब से बनाई थी न कि पहनने के लिये । मन्त्रिगण इस मे मार खा गये। अच्छे से अच्छा वस्त्र के होते हुऐ भी खुद खादी या खादी जैसे दिखने वाले वस्त्र पहनकर घुम रहे है। यह तो ऐसी मिशाल हुयी जैसे किसी के घर मे लडकी की शादी हो और और बरात आने मे लेट हो जाये तो सारा खाना खाकर खुद ही सो जाये । दुल्हे का बाप भले ही रात भर दरवाजा ठोकता रहे । तीन का आकडा गान्धीजी का बडा फेवरेट है। गान्धीजी का स्थान बाद मे ईन्दराजी ने लिया। पर अपोजीशन की त्रिनेत्र सदा परेशान करती रही । हमारी सरकार मे मुख्यत दो पार्टीयॉ>>>>काग्रेस जितनी है उनकी सबकी वेशभुषा तकरीबन एक जैसी है, फाइव स्टार के स्टाफ की तरह। जबकी अपोजिशन मे सबकी वेशभुषा अलग-अलग है, इरानी हॉटल मे सभी वेटर की तरह।
हम भी रोड अपने नाम करवायेगे चने खाकर
इसका मतलब मन्त्रियो को अपनी अक्ल के हिसाब से इसके भावो को लेना था। इसीलिये उन्होने मन ही मन फैसला किया
"कुछ ना सुनो", कुछ ना देखो", कुछ ना बोलो",
खादी गाधीजी ने बेचने के लिये बनाई यानि ग्रामिण उधोग के हिसाब से बनाई थी न कि पहनने के लिये । मन्त्रिगण इस मे मार खा गये। अच्छे से अच्छा वस्त्र के होते हुऐ भी खुद खादी या खादी जैसे दिखने वाले वस्त्र पहनकर घुम रहे है। यह तो ऐसी मिशाल हुयी जैसे किसी के घर मे लडकी की शादी हो और और बरात आने मे लेट हो जाये तो सारा खाना खाकर खुद ही सो जाये । दुल्हे का बाप भले ही रात भर दरवाजा ठोकता रहे । तीन का आकडा गान्धीजी का बडा फेवरेट है। गान्धीजी का स्थान बाद मे ईन्दराजी ने लिया। पर अपोजीशन की त्रिनेत्र सदा परेशान करती रही । हमारी सरकार मे मुख्यत दो पार्टीयॉ>>>>काग्रेस जितनी है उनकी सबकी वेशभुषा तकरीबन एक जैसी है, फाइव स्टार के स्टाफ की तरह। जबकी अपोजिशन मे सबकी वेशभुषा अलग-अलग है, इरानी हॉटल मे सभी वेटर की तरह।
हम भी रोड अपने नाम करवायेगे चने खाकर
जैसे एक बार एक आदमी ने दुसरे महाशय से पुछा-"जनाब,आप बडे शान्ति व सुखी दिखाई पड रहे है।" आप किस मार्ग पर चलते है?" तो उसने अपने दोनो दॉतो के छुपानेका सफल प्रयास करते हुये ह्सते हुये कहा-" भाईजी! महात्मा गान्धी मार्ग पर, वह भी इतना जितना महात्मा गान्धी खुद नही चले थे। कारण मेरे दफ्तर से घर का जहॉ से रोज पद-यात्रा करता हु उसका नाम है, श्रीमान>>>>>>> "महात्मा गान्घी मार्ग" इसलिये अपोजीशन की आवाज और भाषणबाजी सदा बा-आवाजे बुलन्द रहती है;एक किरायेदार कि तरह । रुलर पार्टी हमेशा शान्ति रखती है, एक लैन्डलार्ड कि तरह।
एक राजनेता ने तो यह भी किया कि - जनता को रोज भीगे चने खिलाने चाहिये, क्यो कि घोडो कि प्रिय खुराक है। इसी तरह सभी घोडो कि तरह फुर्तीले हो जायेगे। पर जरा चने उल्टे पड गये, कुछ चने नेता जी खुद खा गये ।इसलिये वह बडे ही फुर्ती से आये और चले भी गये। क्या करे? दुनियॉ मे कुछ करना भी तो है । इसी कारण अपनी सुरक्षा मे सरकारी खजाने कि चॉबी अपने पीठ के निचे रखकर सोते है। बेफोर्स कि तोप कि तरह । क्यो कि हमारे नेता जानते है कि आज कि नगी भुखी, प्यासी, आतकवाद से त्रस्त, आर्थिक मन्दी से परेशान, शेयर बजार एवम मेटल मार्कट मे अपने तपड साफ कराने के बावजुद आज कि जनता ब-अदब होसियार है। चले थे रोड अपने नाम करवाने, पर खुद ही रोड पर चले गये। वह अब सोचते है कि रोड पर चलना और रोड अपने नाम करवाना दोनो अलग अलग बाते है। देखो! अब वो मोर्च मे घुम रहे है। (विनोद राजपुरोहित)
लाल पिले गान्घीजी की घुम दफ्तरो मे,
नीले गान्घीजी पान कि दुकान पर
एक राजनेता ने तो यह भी किया कि - जनता को रोज भीगे चने खिलाने चाहिये, क्यो कि घोडो कि प्रिय खुराक है। इसी तरह सभी घोडो कि तरह फुर्तीले हो जायेगे। पर जरा चने उल्टे पड गये, कुछ चने नेता जी खुद खा गये ।इसलिये वह बडे ही फुर्ती से आये और चले भी गये। क्या करे? दुनियॉ मे कुछ करना भी तो है । इसी कारण अपनी सुरक्षा मे सरकारी खजाने कि चॉबी अपने पीठ के निचे रखकर सोते है। बेफोर्स कि तोप कि तरह । क्यो कि हमारे नेता जानते है कि आज कि नगी भुखी, प्यासी, आतकवाद से त्रस्त, आर्थिक मन्दी से परेशान, शेयर बजार एवम मेटल मार्कट मे अपने तपड साफ कराने के बावजुद आज कि जनता ब-अदब होसियार है। चले थे रोड अपने नाम करवाने, पर खुद ही रोड पर चले गये। वह अब सोचते है कि रोड पर चलना और रोड अपने नाम करवाना दोनो अलग अलग बाते है। देखो! अब वो मोर्च मे घुम रहे है। (विनोद राजपुरोहित)
लाल पिले गान्घीजी की घुम दफ्तरो मे,
नीले गान्घीजी पान कि दुकान पर
एक सामायिक चिन्तन से युक्त कुछ उदेश्य पुर्ण विचार मन मे आये तो घिसट डाला। विकृतियो से दम घुटता है। मन कभी छटपटाने लगता है। स्वस्थ-व्यग्यात्मक-भावपुर्ण- शैली मे राष्ट्र प्रेम को जगाने का तुच्छ प्रयास है। इसमे अपना दर्द छुपा है। और दर्द से लेखाकारो का गहरा नाता होता है। अफसोस है कि हम स्वतन्त्रा के ६० वर्षो के बाद भी आजादी कि मुल खुशबु को नही महसुस कर पाये। देश के राजनितिज्ञो कि कार्य सिद्धि देख तो अपने आप से डर लगने लगा है । लम्बे नाक वाले सफेद बुगले भगत; जो एक टॉग पर खडे होकर सदैव छोटी मच्छलियो का शिकार करने कि ताक मे रहते , अफसोस तो इस बात का है यह कुर्सी के गुलाम तो मर्यादाओ-नैतिकता को ताक मे रखकर हर छोटे बडे , अपने लोगो को फासने का कार्य करते है। विघमान है,हर क्षेत्र मे शोषण की बू आती है। किसी भी सरकारी दफ्तर मे चले जाये वहा भी गान्धीजी के सिवा कुछ नही चलता। वो भी सिर्फ ओर सिर्फ
"लाल गान्घी" और पीले कलर के गान्घीजी ही चलते है (लाल- १००० का नोट, पीला ५००, निला १०० का नोट)। नीले गान्घी जी कि वैल्यु सरकारी दफ्तोरो मे नही है, यह पान कि दुकाने मे पान खाते समय ही उपयोग मे आते है
सरकारी कार्यालयो मे रिश्वत लेने
वाले ये राजनेताओ
कि लावारिस सन्ताने लगती है
या उनके ऐजेन्ट ?
बहुत ही खूबसूरत लिखा है !आप इसी तरह लिखते रहे और और हमारा सहयोग करने के लिए सुक्रिया और आशा है की आगे भी आप इसी तरह का सहयोग बनाये रखेंगे !
ReplyDeleteआपका लेखन बहुत ही अच्छा है आप इसी तरह लिखते रहिये
ReplyDeleteऔर आगे बढ़ते रहिये
आपका लेखन बहुत ही अच्छा है आप इसी तरह लिखते रहिये
ReplyDeleteऔर आगे बढ़ते रहिये
आपका लेखन बहुत ही अच्छा है आप इसी तरह लिखते रहिये
ReplyDeleteऔर आगे बढ़ते रहिये
आपका लेखन बहुत ही अच्छा है आप इसी तरह लिखते रहिये
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साहिल की रेत पर एक तेरा नाम क्या लिखा उम्र भर के लिए हवाओं से दुश्मनी हो गयी
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