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यहाँ सेक्स टैबू है स्त्री के लिए

सेक्स को हमारे यहां हमेशा से ही टैबू माना गया है। सेक्स पर बात करना। उसे जग-ज़ाहिर करना या आपस में शेयर करना। हर कहीं सेक्स प्रतिबंधित है। सेक्स का जिक्र आते ही क्षणभर में हमारी सभ्यता-संस्कृति ख़तरे में पड़ जाती है। मुंह पर हाथ रखकर सेक्स की बात पर शर्म और गंदगी व्यक्त की जाती है। सेक्स को इस कदर घृणा की दृष्टि से देखा जाता है, मानो वो दुनिया की सबसे तुच्छ चीज हो।
खुलकर सेक्स का विरोध करते हुए मैंने उन सभ्यता-संस्कृति रक्षकों को भी देखा है जिन्हें सड़क चलती हर लड़की में 'गज़ब का माल' दिखाई देता है। जिन्हें देखकर उनके हाथ और दिमाग न जाने कहां-कहां स्वतः ही विचरण करने लगते हैं। जिन्हें रात के अंधेरे में नीली-फिल्में देखने में कतई शर्म नहीं आती और नीली-फिल्मों के साथ रंगीन-माल भी हर वक्त जिनकी प्राथमिकता में बना रहता है। परंतु रात से सुबह होते-होते उनका सेक्स-मोह 'सेक्स-टैबू' में बदल जाता है। हमारे पुराणों तक में लिखा है कि यौन-सुख स्त्री के लिए वर्जित, पुरुष के लिए हर वक्त खुला है। पुरुष आजाद है हर कहीं 'मुंह मारने' के लिए। यही कारण है स्त्री को अपना सेक्स चुनने की आजादी हमारे यहां नहीं है।
यह सही है कि हम परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। हर दिन, हर पल हमारे आस-पास कुछ न कुछ बदल रहा है। हम आधुनिक हो रहे हैं। यहां तक कि टीवी पर दिखाए जाने वाले कंडोम, केयरफ्री, ब्रा-पेंटी के विज्ञापनों को भी हम खुलकर देख रहे हैं। एक-दूसरे को बता भी रहे हैं। मगर सेक्स को स्वीकारने और इस पर अधिकार जताने को अभी-भी हमने अपनी सभ्यता-संस्कृति के ताबूतों में कैद कर रखा है। हमें हर पल डर सताता रहता है कि सेक्स का प्रेत अगर कहीं बाहर आ गया तो हमारी तमाम पौराणिक मान्यताएं-स्थापनाएं पलभर में ध्वस्त हो जाएंगीं। हम पश्चिमी भोगवाद के शिकार हो जाएंगें। इसलिए जितना हो सके कोशिश करो अपनी मां-बहनों, पत्नियों को सेक्स से दूर रखने और उन्हें अपनी इच्छाओं से अपाहिज बनाने की।
हमारे पुराणों तक में लिखा है कि यौन-सुख स्त्री के लिए वर्जित, पुरुष के लिए हर वक्त खुला है। पुरुष आजाद है हर कहीं 'मुंह मारने' के लिए। यही कारण है स्त्री को अपना सेक्स चुनने की आजादी हमारे यहां नहीं है।
गज़ब की बात यह है स्त्री-सेक्स पर प्रायः वे लोग भी अपना मुंह सींये रहते हैं जो स्त्री-विमर्श के बहाने 'स्त्री-देह' के सबसे बड़े समर्थक बने फिरते हैं। स्त्री जब अपने सुख के लिए सेक्स की मांग करने लगती है तो परंपरावादियों की तरह उनके तन-बदन में भी आग-सी लग जाती है। इन स्त्री-विमर्शवादियों को सेक्स के मामले में वही दबी-सिमटी स्त्री ही चाहिए जो मांग या प्रतिकार न कर सके।
पता नहीं लोग यह कैसे मान बैठे हैं कि हम और हमारा समाज निरंतर बदल या विकसित हो रहा है। आज भी जब मैं किसी स्त्री को दहेज या यौन शोषण के मामलों में मरते हुए देखती हूं तो मुझे लगता है हम अभी भी सदियों पुरानी दुनिया में जी रहे हैं।
मुझे एक बात का जवाब आप सभी से चाहिए आखिर जब पुरुष अपने बल पर अंदरूनी और बाहरी सारे सुख भोगने को स्वतंत्र है तो यह आजादी स्त्रियों को क्यों और किसलिए नहीं दी जाती?
क्या इच्छाएं सिर्फ पुरुषों की ही गुलाम होती हैं, स्त्रियों की नहीं?


अनुजा रस्तोगी
बरेली की रहने वालीं, तहलका की पाठक, अनुजा, एक शिक्षिका हैं। उन्हीं के शब्दों में-"मैंने पत्र-पत्रिकाओं में कभी नहीं लिखा। अभी तक जो भी लिखा अपने ब्लॉग पर ही लिखा। बिंदास लिखना ही मुझे पसंद है। समझौते के बगैर।"

Comments

  1. बिलकुल सच कहा लेखिका ने की जो लोग रात के अँधेरे में बेसर्म बन जाते है लेकिन सूरज की पहली किरण के साथ ही भोगी से योगी बन जाते है !!
    मैं आपकी बात से सहमत हूँ!!आपको पड़कर अच्छा लगा

    ReplyDelete
  2. Aap ko kaisi aazaadi chahiye?? Jahan tak main aapki is "post" ko relate kar paaya to maine yahi paaya ki aap kuch waisi hi aazaadi ki baat kar rahi hain jaisi "purushon" ke paas hai.
    Rahi baat "gazab Ka Maal" waali baat, wo purnatayah satya hai, par aisa mere saath ke B.Tech holder bhi kehte hain, jarurat hai to Education system ko change karne ki
    Jai Hind Jai Bharat

    ReplyDelete
  3. aap kya chahti hai ..
    females ke liye bhi samaj me aajadi honi chaiye ..
    ..
    aapko lagta hai ,,unko asi aajadi nhi hai ,,lekin ye sahi nhi hai,, females bhi gajab khiladi hoti hai ,,bus baat intni si hai ki ,,wo dabe chupke kaam karti hai ..
    ..
    hamare samaj me ye aajadi honi chaiye ..??..

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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