Skip to main content

आहा नया साल.......२००९.........!!??


आहा नया साल.......२००९.........!!??


मुझे नहीं पता ...................धरती के बहुत ही प्यारे-प्यारे दोस्तों ...............मुझे ये कतई नहीं पता कि आने वाला नया वर्ष किसके लिए कैसा है.....मगर जैसा कि हम सबकी तहेदिल से यही इच्छा होती है कि सब खुश रहे........आनंदित रहें.......सुकून से रहें.......और इसी के वास्ते हम सबको शुभकामना देते हैं...........और सबके आगामी दिवसों के प्रति मंगलदायक विचार प्रेषित करते हैं....और बदले में हमें भी वही सब तो मिलता है....जो हम दूसरों के लिए सोचते हैं........और जैसा कि हम सब जानते हैं कि दूसरों के गड्ढा खोदने वाले ख़ुद उसमे जा गिरते हैं.........तो फिर ऐसा करते ही क्यूँ हैं.........जब हमारे विचार दूसरों के प्रति अच्छे की भावना से प्रेरित होते हैं तब प्रैक्टिकली हम दूसरों के प्रति इतने गैर-संवेदनशील कैसे बन जाते हैं........कोई हमारी ही नज़रों के सामने किसी सामान्य सी पीड़ा से मर जाता है..........और हम चैन से अपने घर में बंशी बजाते सोये रहते हैं.........ये यही पाखण्ड मानवीयता है........क्या इक क्रूर.....धूर्त.......कमीने.....किस्म का दोगलापन ही आदमी को पशु से अलग करता है....वफादारी में आदमी नाम का ये जीव कुत्ते के पासंग भी नहीं माना जाता.....और भी कई मायनों में आदमी कई तरह के पशुओं के समकक्ष नहीं ठहरता.........और फिर भी को पशु से श्रेष्ठ कहे जाता है....पृथ्वी को मनमाफिक नष्ट करता है.....अपने पेट की भूख के लिए लाखों पशुओं का रोज़-ब-रोज़ संहार करता है......अपने सौन्दर्य और स्वास्थ्य के लिए समूचे जीव व् वनस्पति जगत का भयावह दोहन करता है........और फिर भी मंगल कामना के गीत गाता है.....किसका मंगल..........????किसका शुभ............??क्या इस ब्रहमांड में महज़ एक आदमी नामक जीव ही इतना महत्वपूर्ण है....कि जिसके आमोद-प्रमोद के लिए सब कुछ को नष्ट करना इक छोटा-सा खेल है.........और समूची सृष्टि महज़ आदमी का एक हथियार......???? अगर ऐसा ही है....तो हर नव-वर्ष आदमी-मात्र को ही मुबारक है.....तो बाकी की धरती का क्या हो...........????क्या वो आदमी द्वारा महज़ "पेले" जाने के लिए है.....??............ऐसे में मैं समझ ही पा रहा कि नए वर्ष का स्वागत मैं किस रूप में करूँ............????अगर पृथ्वी नष्ट होती है....तो आदमी भी तो.... और आदमी तो नित-प्रति यही तो किए जाता है............तो मैं किसको मुबारकबाद दूँ.......!!??फिर भी ओ प्यारे-प्यारे दोस्तों यदि मेरी बात तुम सबको समझ आती हो तो पृथ्वी पर के हर जीव...वनस्पति....चराचर जगत के जीवन को बचाते हुए चलो तो तुम्हे ये वर्ष तो क्या पृथ्वी का जीवन ही मुबारक हो.....हैप्पी-न्यू-इयर.......................!!!!देखो आ ही गया.............तुम्हारे द्वार............स्वागत करो इसका अपनी समस्त सच्चाईयों के साथ.................!!!!!!
रिश्ते किताबों की तरह होते हैं ...जिन्हें जलाने के लिए कुछ ही सेकंड काफी होते हैं ...लेकिन उन्हें लिखना उतना ही कठिन होता है। तो आइए नए साल में हम मानवता के बीच ऐसे ही मजबूत मानवीय रिश्तों का संकल्प लें।............(मीत)

Comments

  1. नया साल आए बन के उजाला
    खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
    चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
    हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||

    नूतन वर्ष मंगलमय हो |

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा