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यह जेहाद अमेरिका की देन है


यह जेहाद अमेरिका की देन है

बार-बार हो रहे आतंकी हमलों ने जिन जुमलों को जनता की जुबान पर चढ़ा दिया है उनमें से एक है जेहाद. कुरआन में यह शब्द कहीं नहीं है। इसे गढ़ने का श्रेय अमरीकी प्रशासन को है। डब्ल्यूटीसी टावर्स पर हमले, जिसमें तीन हजार से ज्यादा बेकसूरों ने अपनी जान गंवाई थी, के बाद इस शब्द का मीडिया में जमकर इस्तेमाल शुरू हो गया। जिहाद और काफिर शब्दों को मीडिया ने नए अर्थ दे दिए।
धीरे-धीरे ये शब्द पहले आतंकवादियों से और बाद में सभी मुसलमानों से जुड़ गए। सच यह है कि कोई जन्म से आतंकवादी नहीं होता। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक कारण उसे आतंकवादी बनाते हैं। अल् कायदा का गठन आईएसआई ने सीआईए के इशारे पर करवाया था। अल् कायदा ने बडी़ संख्या में मदरसों की स्थापना की। इनमें पढ़ने वाले मुस्लिम युवकों के दिमाग में यह भर दिया गया कि (काफिरों) को मारना (जिहाद) है। इस सबका उद्देश्य था अल् कायदा के नेतृत्व में मुस्लिम लडा़कों की ऐसी फौज तैयार करना जो अफगानिस्तान से रूसी सेनाओं को खदेड़ सके।

मदरसों का पाठयक्रम वांशिंगटन में तैयार किया गया था और उसे पाकिस्तान के जरिए मदरसों में लागू किया गया। इस पाठयक्रम का सार इस प्रकार था: हमारा धर्म दुनिया का सबसे अच्छा धर्म है, हमारे मुस्लिम अफगानिस्तान पर रूसी कम्युनिस्टों ने कब्जा कर लिया है, ये कम्युनिस्ट अल्लाह में विस्वास नहीं करते, इसलिए वे काफिर हैं. इन काफिरों को मारना जिहाद कहा जाता है। इस जिहाद में कुर्बानी देने वाला सीधे जन्नत जाएगा जहां 72 कुंवारी हूरें उसका इंतजार कर रही होंगी। इस प्रकार एक राजनैतिक लड़ाई पर धर्म का मुल्लमा चढ़ा दिया गया। अल कायदा के लड़ाके अफगानिस्तान की लड़ाई खत्म होने के बाद दक्षिण एशिया में आतंक फैलाने में जुट गए। इस तरह अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अमरीका ने एक ऐसे भस्मासुर का निर्माण कर लिया जिसकी चपेट में बहुत कुछ भस्महोनेवाला था. कुरान में (जिहाद) का अर्थ होता है बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्ष करना, अन्याय के खिलाफ लड़ना लेकिन जिहाद के नाम पर अमरीका ने विश्व को आतंकवाद का उपहार दिया है।

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर दुनिया को आरएसएस के चश्मे से देखती रही हैं - उस संगठन के चश्मे से जिसका अंतिम लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र का निर्माण है। आरएसएस का समर्पित कार्यकर्ता तैयार करने का अपना तरीका है, जिसमें शाखाओं और बौिध्दकों के जरिए युवकों को राष्ट्रवादी बनाया जाता है। उन्हें यह सिखाया जाता है कि हिन्दू और केवल हिन्दू ही भारतीय राष्ट्र के भाग हैं, हिन्दू धर्म श्रेष्ठतम धर्म है और हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे सहिष्णु धर्म है। इसी सहिष्णुता को मुस्लिम और ईसाई विदेशी हमलावरों ने कमजोरी समझ लिया। इन विदेशी आक्रांताओं को सबक सिखाने के लिए हिन्दुओं को लामबंद होना जरूरी है। भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, ईसाई और मुसलमान विदेशी हैं और हिन्दू राष्ट्र के लिए खतरा हैं। धर्मनिरेपक्षतावादियों ने यह भ्रम फैलाया है कि यह देश सबका है।

ये तो हुईं कुछ मूल बातें जो स्वयंसेवकों के दिमागों में भरी जाती हैं। इनमें हाल के कुछ सालों में नई बातें जोड़ दी गई हैं। जैसे, हिन्दू समाज को जिहादी आतंकवादियों और ईसाई मिशनरियों से खतरा है। जिहादी जहां हिन्दुओं को मार रहे हैं, वहीं ईसाई मिशनरियां दबाव, धोखाधड़ी और लालच के जरिए हिन्दुओं को ईसाई बना रही हैं। हिन्दू जागरण समिति नामक एक संगठन महाराष्ट्र में काम करता है। इस संगठन के प्रेरणापुरूष हैं आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार और हिन्दुत्व विचारक सावरकर। इस संगठन के अनुसार वर्तमान में चल रहे कलयुग में हिन्दुओं को मुख्य खतरा "दानवों" से है जो ईसाईयों और मुसलमानों के रूप में जन्म ले रहे हैं। इन दानवों को नष्ट किए बिना हिन्दू समुदाय का उद्धार संभव नहीं है। आप ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि हिन्दू कट्टरपंथियों और इस्लामिक अतिवादियों की विचारधारा में बहुत समानताएं हैं, बल्कि यदि हम कहें कि दोनों लगभग एक ही हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानना, अपने समाज का खतरे में होना बताना, खतरे के स्रोत के रूप में दूसरे समुदाय को प्रस्तुत करना और अपने समाज की रक्षा के लिए दूसरे समुदाय के सदस्यों को मारने की बात कहना - ये सब दोनों ही विचारधाराओं के अंग हैं। जिहादी और साध्वी की विचारधाराओं में कोई मूल अंतर नहीं है। फर्क सिर्फ लेबल का है।

यहां हम लिट्टे, उल्फा या नक्सलियों जैसे आतंकवादी संगठनों की बात नहीं कर रहे हैं जो अन्याय की कोख से जन्म लेते हैं। मजे की बात यह है कि जिहादियों - सािध्वयों की आमजनों का एक हिस्सा पूजा करता है। उन्हें धार्मिक मानता है और यह मानता है कि उन्होंने धर्म की खातिर बड़ा बलिदान दिया है। सन् 2005 में अमेरिका के "टेरोरिस्ट रिसर्च सेंटर" ने आरएसएस को "आतंकवादी संगठन" घोषित किया था। गुजरात के कत्लेआम और ईसाई विरोधी हिंसा के परिपेक्ष्य मे ऐसा किया गया था। पास्टर ग्राहम स्टेन्स का हत्यारा दारा सिंह भी बजरंग दल से जुड़ा हुआ था। उसे आजीवन कारावास दिया गया है परंतु आज भी संघ परिवार उसे "हिन्दू धर्म रक्षक" बताता है। संघ परिवार ने दारा सिंह की कानूनी लड़ाई के लिए संसाधन जुटाए थे। अब संघ, साध्वी की रक्षा करने के लिए कमर कस रहा है। ऐसा इसलिए कि अब संघ के लिए साध्वी प्रज्ञा और मालेगांव धमाकों में शामिल सेना अधिकारी भी धर्म रक्षक हैं।

राम पुनियानी

http://www.visfot.com/bat_karamat/498.html

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