चार पैग चढ़ाकर राम मंदिर पर फैसला
मशहूर साहित्यकार खुशवंत सिंह ने अपने कालम में मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी पर टिप्पणी की है. उम्र के जिस पडाव पर खुशवंत सिंह हैं, वहां उनसे निष्पक्ष सोच की उम्मीद की जाती है, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने मनमोहन सिंह की तरफदारी करते हुए लालकृष्ण आडवाणी को घेरने की कोशिश की है, उससे यही लगता है सरदारों पर जो चुटकुले बने हैं, वो सब खुशवंत सिंह के मिजाज को देखते हुए ही बनाये गए हैं.
मनमोहन सिंह बेशक इमानदार हो सकते हैं. कांग्रेस वालों का बैकग्राउंड देखते हुए उन्हें निश्चय ही अपवाद कहा जा सकता है, लेकिन एक अर्थशास्त्री के रूप में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए आज की महंगाई के लिए उन्हें बरी कैसे किया जा सकता है. लालकृष्ण आडवाणी से नाइत्तफाक रखने वाले उनसे लाख विषयों पर बैर कर सकते हैं, लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि आडवाणी एक सुलझे हुए नेता हैं, किसी भी विषय पर अपनी सोच रखते हैं, इतिहास का अध्ययन उनने मनमोहन सिंह से ज्यादा किया है. जो कांग्रेस पार्टी आज देशी अध्यक्ष नही जुटा सकती, जो पार्टी सोनिया गाँधी के इशारे पर नरसिम्हा राव कि उपलब्धियों को जमींदोज कर सकती है, जिसका प्रधानमंत्री सुपर पॉवर सोनिया गाँधी के कहे पर चलने को मजबूर हो, वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक मुल्क के लिए सम्मान का हक़दार तो नही है.
भारत में पहली बार ऐसा हुआ कि सोनिया गाँधी ने अपनी ताकत मजबूत बनाये रखने के लिए देश को कमजोर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति परोस दिया. कमसे कम जिस पार्टी से अडवाणी का नाता है, उसने देश को ऐसा राष्ट्रपति दिया, जिन्होंने देश का मान दुनिया भर में बढाया . डॉक्टर अब्दुल कलाम भूतपूर्व राष्ट्रपति होने के बावजूद देश और दुनिया में जाते हैं, और लोग उन्हें सुनने और उनसे सीखने के लिए लालायित रहते हैं. जैसी सोनिया गाँधी, वैसी प्रतिभा पाटील . हालांकि इंदिरा गाँधी ने ज्ञानी जैल सिंह के रूप में देश को सबसे कमजोर और रबर स्टांप राष्ट्रपति देने में कोई कोर कसार नही छोड़ी पर उनकी विदेशी बहु सोनिया गाँधी तो एक डेग आगे निकल गई. पाटिल से कमजोर राष्ट्रपति तो ज्ञानीजी भी नही थे. आलम ये कि भारत की राष्ट्रपति महामहीम प्रतिभा पाटील विदेश गयीं तो कुर्सियां खाली पड़ी रहीं, कमजोर उपस्तिथि देखते हुए उनके २-३ कार्यक्रम रद्द तक करने पड़े. जबकि उसी दौर में अब्दुल कलाम भी अन्य देशों कि यात्रा पर थे, और एक एक दिन में कई-कई हाउस फुल सभाएं कर रहे थे. किस कांग्रेस का गुण गा रहे हैं खुशवंत जी.
आडवाणी को सांप्रदायिक कहने वाले खुशवंत सिंह को भूलना नही चाहिए कि उनकी पार्टी के शासनकाल में देश का राष्ट्रपति मुसलमान था और रक्षा मंत्री इसाई. जिस भाजपा पर कांग्रेस साम्प्रादायिकता का आरोप लगा कर राजनैतिक रोटियां खाती रही है, उसे भी कभी भारत के हिंदू नागरिकों के हित के लिए कोई कदम उठा कर अपनी धर्मनिरपेक्षता साबित करनी चाहिए. कांग्रेस ने मुसलमानों कि मिजाजपुर्सी के लिए न सिर्फ़ हिन्दुओं के हितों के साथ अन्याय किया बल्कि सिखों के सम्मान को भी ठेस पहुंचाई है.
खुशवंत साहब का मिजाज हमेशा महिलाओं में खोया रहता है, इसीलिए शायद वे इतिहास भूलने लगे हैं. आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे या नही, यह वक्त बताएगा, पर इस कड़वे सच को कोई झुठला नहीं सकता कि सोनिया गाँधी के परचम बरदार मनमोहन सिंह जी बंधुवा प्रधानमंत्री हैं. दुनिया के सबसे बड़े अर्थ शास्त्रियों में जिनका नाम शुमार बताया जता है, और जो भारत में आर्थिक उदारीकरण का पुरोधा माना जाता है, उसके शासन काल में भारत कि अर्थ व्यवस्था का सत्य नाश हो चुका है. मुल्क को बंधुआ प्रधानमंत्री कांग्रेस ही दे सकती है.
खुशवंत सिंह जी अपने कालम में ख़ुद कबूल करते हैं कि नेहरूजी ने अपने दौर में भाई भतीजावाद को खुलकर बढाया. यही काम सोनिया गाँधी कर रही हैं. अडवाणी जी पर यह इल्जाम कोई कैसे लगा सकता है. कांग्रेस में तो इंदिरा -नेहरू खानदान के बावर्ची और दरवान तक टिकटों कि दावेदारी करते रहते हैं. सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वढेरा को एअरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से ऊपर रखा जाता है. कौन हैं वो? लेकिन जब खानदानी राजशाही के आगे कोई नही बोल सकता तब तक सब जायज है.
खुशवंत सिंह शायद जानते हुए भी कह नही पा रहे हैं कि जब तक भारत में हिंदू संवेदनशील है तभी तक सौहार्द बना हुआ है. वरना यह और कहीं मुमकिन नही कि बहुमत वाली कौम के हितों को नजर अंदाज किया जाए, और अल्पमत वालों को वोट के दुकानदार दामाद कि तरह तरजीह देते रहें. आडवाणी पर जिन्ना प्रकरण को लेकर कोई लाख कीचड उछल सकता है, लेकिन तभी आडवाणी के कुनबे की मुखिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनको दरकिनार कर के राष्ट्रीय इमानदारी का परिचय दिखाया था. कांग्रेस ऐसा कोई उदाहरण दे सकती है क्या. एक मसले पर कोर्ट से चार्ज शीट दाखिल होने पर आडवाणी ने ही कहा था, फैसला आने तक चुनाव नही लडूंगा, खुशवंत सिंह जी जिस पार्टी के पैरोकार बनकर बात कर रहे हैं, उसके दो-दो प्रधानमंत्री रिश्वतखोरी के इल्जाम में घिरे रहे. आडवाणी पर ऐसा कोई इल्जाम तो नही है.
कांग्रेस में सरदार पटेल सरीखा कोई नेता आज दीखता हो तो जरुर बताएं. अडवानी के सियासी सफर को देखते हुए लोग उन्हें सरदार पटेल के समकक्ष मान ने लगे हैं. देश पर किसको राज करना चाहिए खुशवंत जी? चार पैग चढा कर कलम चलाने वाले बुजुर्ग लेखक को राम मन्दिर मसले पर तो कुछ कहने से पहले सोचना चाहिए था.
(प्रकाश चंडालिया कोलकाता से प्रकाशित राष्ट्रीय महानगर के संपादक हैं.)
मनमोहन सिंह बेशक इमानदार हो सकते हैं. कांग्रेस वालों का बैकग्राउंड देखते हुए उन्हें निश्चय ही अपवाद कहा जा सकता है, लेकिन एक अर्थशास्त्री के रूप में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए आज की महंगाई के लिए उन्हें बरी कैसे किया जा सकता है. लालकृष्ण आडवाणी से नाइत्तफाक रखने वाले उनसे लाख विषयों पर बैर कर सकते हैं, लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि आडवाणी एक सुलझे हुए नेता हैं, किसी भी विषय पर अपनी सोच रखते हैं, इतिहास का अध्ययन उनने मनमोहन सिंह से ज्यादा किया है. जो कांग्रेस पार्टी आज देशी अध्यक्ष नही जुटा सकती, जो पार्टी सोनिया गाँधी के इशारे पर नरसिम्हा राव कि उपलब्धियों को जमींदोज कर सकती है, जिसका प्रधानमंत्री सुपर पॉवर सोनिया गाँधी के कहे पर चलने को मजबूर हो, वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक मुल्क के लिए सम्मान का हक़दार तो नही है.
भारत में पहली बार ऐसा हुआ कि सोनिया गाँधी ने अपनी ताकत मजबूत बनाये रखने के लिए देश को कमजोर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति परोस दिया. कमसे कम जिस पार्टी से अडवाणी का नाता है, उसने देश को ऐसा राष्ट्रपति दिया, जिन्होंने देश का मान दुनिया भर में बढाया . डॉक्टर अब्दुल कलाम भूतपूर्व राष्ट्रपति होने के बावजूद देश और दुनिया में जाते हैं, और लोग उन्हें सुनने और उनसे सीखने के लिए लालायित रहते हैं. जैसी सोनिया गाँधी, वैसी प्रतिभा पाटील . हालांकि इंदिरा गाँधी ने ज्ञानी जैल सिंह के रूप में देश को सबसे कमजोर और रबर स्टांप राष्ट्रपति देने में कोई कोर कसार नही छोड़ी पर उनकी विदेशी बहु सोनिया गाँधी तो एक डेग आगे निकल गई. पाटिल से कमजोर राष्ट्रपति तो ज्ञानीजी भी नही थे. आलम ये कि भारत की राष्ट्रपति महामहीम प्रतिभा पाटील विदेश गयीं तो कुर्सियां खाली पड़ी रहीं, कमजोर उपस्तिथि देखते हुए उनके २-३ कार्यक्रम रद्द तक करने पड़े. जबकि उसी दौर में अब्दुल कलाम भी अन्य देशों कि यात्रा पर थे, और एक एक दिन में कई-कई हाउस फुल सभाएं कर रहे थे. किस कांग्रेस का गुण गा रहे हैं खुशवंत जी.
आडवाणी को सांप्रदायिक कहने वाले खुशवंत सिंह को भूलना नही चाहिए कि उनकी पार्टी के शासनकाल में देश का राष्ट्रपति मुसलमान था और रक्षा मंत्री इसाई. जिस भाजपा पर कांग्रेस साम्प्रादायिकता का आरोप लगा कर राजनैतिक रोटियां खाती रही है, उसे भी कभी भारत के हिंदू नागरिकों के हित के लिए कोई कदम उठा कर अपनी धर्मनिरपेक्षता साबित करनी चाहिए. कांग्रेस ने मुसलमानों कि मिजाजपुर्सी के लिए न सिर्फ़ हिन्दुओं के हितों के साथ अन्याय किया बल्कि सिखों के सम्मान को भी ठेस पहुंचाई है.
खुशवंत साहब का मिजाज हमेशा महिलाओं में खोया रहता है, इसीलिए शायद वे इतिहास भूलने लगे हैं. आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे या नही, यह वक्त बताएगा, पर इस कड़वे सच को कोई झुठला नहीं सकता कि सोनिया गाँधी के परचम बरदार मनमोहन सिंह जी बंधुवा प्रधानमंत्री हैं. दुनिया के सबसे बड़े अर्थ शास्त्रियों में जिनका नाम शुमार बताया जता है, और जो भारत में आर्थिक उदारीकरण का पुरोधा माना जाता है, उसके शासन काल में भारत कि अर्थ व्यवस्था का सत्य नाश हो चुका है. मुल्क को बंधुआ प्रधानमंत्री कांग्रेस ही दे सकती है.
खुशवंत सिंह जी अपने कालम में ख़ुद कबूल करते हैं कि नेहरूजी ने अपने दौर में भाई भतीजावाद को खुलकर बढाया. यही काम सोनिया गाँधी कर रही हैं. अडवाणी जी पर यह इल्जाम कोई कैसे लगा सकता है. कांग्रेस में तो इंदिरा -नेहरू खानदान के बावर्ची और दरवान तक टिकटों कि दावेदारी करते रहते हैं. सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वढेरा को एअरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से ऊपर रखा जाता है. कौन हैं वो? लेकिन जब खानदानी राजशाही के आगे कोई नही बोल सकता तब तक सब जायज है.
खुशवंत सिंह शायद जानते हुए भी कह नही पा रहे हैं कि जब तक भारत में हिंदू संवेदनशील है तभी तक सौहार्द बना हुआ है. वरना यह और कहीं मुमकिन नही कि बहुमत वाली कौम के हितों को नजर अंदाज किया जाए, और अल्पमत वालों को वोट के दुकानदार दामाद कि तरह तरजीह देते रहें. आडवाणी पर जिन्ना प्रकरण को लेकर कोई लाख कीचड उछल सकता है, लेकिन तभी आडवाणी के कुनबे की मुखिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनको दरकिनार कर के राष्ट्रीय इमानदारी का परिचय दिखाया था. कांग्रेस ऐसा कोई उदाहरण दे सकती है क्या. एक मसले पर कोर्ट से चार्ज शीट दाखिल होने पर आडवाणी ने ही कहा था, फैसला आने तक चुनाव नही लडूंगा, खुशवंत सिंह जी जिस पार्टी के पैरोकार बनकर बात कर रहे हैं, उसके दो-दो प्रधानमंत्री रिश्वतखोरी के इल्जाम में घिरे रहे. आडवाणी पर ऐसा कोई इल्जाम तो नही है.
कांग्रेस में सरदार पटेल सरीखा कोई नेता आज दीखता हो तो जरुर बताएं. अडवानी के सियासी सफर को देखते हुए लोग उन्हें सरदार पटेल के समकक्ष मान ने लगे हैं. देश पर किसको राज करना चाहिए खुशवंत जी? चार पैग चढा कर कलम चलाने वाले बुजुर्ग लेखक को राम मन्दिर मसले पर तो कुछ कहने से पहले सोचना चाहिए था.
(प्रकाश चंडालिया कोलकाता से प्रकाशित राष्ट्रीय महानगर के संपादक हैं.)
pata nahi khushwant ko log chhapte kyo hai, nami dukandar ka baal bikata kai
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