मनोरंजन का वैश्विक परिवेश
मनोरंजन का वैश्विक परिवेश इतना व्यापक हो चुका है कि इसकी व्यापकता को सरहद या संस्कृति की भिन्नता की बजह से दवाया नही जा सकता, मनोरंजन का प्रसार खुले आसमा की विशालता को भी खुद में समेटता जा रहा है, मनोरंजन की महक और आकर्षित करने वाली तीव्र तरंगे आज सीधे हदृय से जुड़ चुकी है, नतीजन मनोरंजन के बढ़ते प्रकार, बढ़ती महत्वता एवं वेगशील प्रगति प्रतिबिम्बित हो रही है। मनोरंजन आज जिन्दगी का प्रमुख भाग बन गया है। रोजमर्रा की व्यस्त एवं गतिशील जिंदगी में भी मनोरंजन का एक स्थान स्थित एवं नियत है।
मनोरंजन की महत्वता का ग्राफ वर्तमान स्थितियों में लगातार बढ़ रहा है, लेकिन मनोरंजन को लेकर जिस तरह से प्राचीन सभ्यता में जो ललक एवं नवीनीकरण का आभास होता था उसी की बदोलत आज मनोरंजन को इस हद तक स्वीकार किया जा रहा है। आज मनोरंजन का संपूर्ण परिवेश बदल चुका है लेकिन कही न कही इसका जुड़ाव एवं आधार शिला प्राचीन सभ्यता के निशां का अहसास कराती है, यह कहना गलत ना होगा की प्राचीन सभ्यता ने ही आधुनिक मनोरंजन को जन्म दिया है और प्राचीन मनोरंजक साधनों ने ही आधुनिक साधनों का जामा पहन लिया है। मनोरंजन क्षेत्र में लगातार विकास हो रहे है और साधनों की बाढ आ रही है। आज हम ऐच्छिक मनोरंजन के साधनों को आसानी से प्राप्त कर सकते है जिस तरह से लोगों का जायका बदला है उसी तरह से मनोरंजन का रंग और भी रंगीला होता जा रहा है। लेकिन जैसा की हम सब जानते है कि हर सिक्के के दो पहलू होते है, उसी तरह मनोरंजन का बुरा पहलू भी है जो समाज एवं नयी पीढ़ी को गलत और बुराई के पथ पर अग्रसर कर रहा है, जिसका खामियाजा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से देश व समाज को भुगतना पड़ रहा है।
मनोरंजन की महत्वता और प्रकार:- मनोरंजन की महत्वता पर ही विकास एवं समृद्धि टिकी है आज मनोरंजन का मतलब महज दिल की तसल्ली और सुकून ना होकर उज्जबल एवं सफल भविष्य का पथ प्रदर्शक बन गया है। देश और दुनिया की खवरें, ज्ञान विज्ञान की बाते, कला साहित्य के पन्ने और समाज और राजनीति की महत्वपूर्ण तथ्यों एवं बातों को मनोरंजन के लिवास में इस तरह से पेश किया जा रहा है कि वह सीधे मस्तिष्क तक पहुँचती है। आज मनोरंजन संसार में मनोरंजन के साधनों की भरमान है, ऐच्छिक मनोरंजन की उपलब्धता मनोरंजन की दुनिया को और अधिक विस्तृत बनाती है। मनोरंजन का सबसे सशक्त माध्यम है सिनेमा।
वर्तमान में भारत देश में संपूर्ण दुनिया के मुकाबले सर्वाधिक फिल्मों का निर्माण होता है और है हैरत अंग्रेज वात यह है कि लगभग सभी फिल्में अपनी लागत वसूल लेती है चूँकि मनोरंजन साधनों में अब महज फिल्मों को प्रधानता नहीं दी जाती बल्कि आज फिल्मों और मोबाइल का एक अटूट रिश्ता है।
फिल्मों के रिलीज से पूर्व ही मोबाइल कंपनिया कालरट्यून्स और बालपेपर के माध्यम से फिल्मों की लागत राशि का एक बहुत बड़ा हिस्सा बसूल कर लेती है, जो हमे मनोरंजन आवश्यकता को प्रदर्शित करता है। विश्व के तीन ऐसे क्षेत्र है जो कभी समाप्त नहीं हो सकते 1 चिकित्सा 2. मनोरंजन 3. शिक्षा व्यक्ति के लिए जिस तरह से चिकित्सा और शिक्षा प्रमुख है। उसी प्रकार मनोरंजन आम जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है। मनोरंजन उन विकासशील क्षेत्रों में शुमार है जिनका विकास संभव है लेकिन विनाश नही।
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हाईटेक मनोरंजन और ब्लॉग :-
मनोरंजन का सबसे तीव्र गति से चर्चा में आने वाला साधन है ब्लॉग, ब्लॉग ना केवल मनोरंजन की पूरकता को पूर्णतः में बदलता है वल्कि ज्ञान और प्रत्येक बिन्दु विषय से संबंधित विषय वस्तु को आम जनों के दिमागों से निकालकर हम तक पहुँचाता है।
‘‘ कलम से होते हुए इसांनी हाथ जव की-बोर्ड तक पहुँचे, तो अभिव्यक्ति की एक नई परिभाषा वनी ब्लॉग। ब्लॉगने मनोरंजन को एक नई दिशा तो दी ही साथ ही साथ मनोरंजन को हाईटेक बनाने का भी कार्य किया है। बचपन की किलकारियों से लेकर बचपन का दर्द बयाॅ करता यह ब्लॉग हर किसी के दिल का गुवार निकालने का जरिया बना।
जिसे कोई मंच नही मिलता, वह इसी माध्यम से सरपंच बनने की कोशिश करता है। यही वजह है कि आजकल हर कोई इसके माध्यम से विकल्प, तो कोई कायाकल्प की तलाश करता नजर आता है। अलमारियों की बंद किताबों से अलग इसे आप दुनिया के किसी भी कौने में बैठकर किसी भी समय पढ़ सकते है। जागरूकता से लेकर काममुक्ता तक पहुँचाता बला का है यह ब्लॉग।
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मनोरंजन की अहमियत जिस तरह से बढ़ रही है उसकी मुख्य वजह उसके साधनों का हाईटेक होना- आज हम हाईटेक साधनों की बात करें तो कम्प्यूटर, इन्टरनेट , मोबाइल, टी,बी, बाकमैंन जैसे हजारो इलेक्ट्रिक आटोमोबाइल्स है जो मनोरंजन की महत्वता को और अधिक महत्वपूर्ण व सुलभ बना देते है।
मनोरंजन और छोटा पर्दा:-
मनोरंजन का सवसे विकसित विकल्प है छोटा पर्दा यानि टी,बी, अगर हम थोड़े पीछे जाकर देखे तो टी.वी. चैनलों की कतार में महज एक चैनल होता था ‘‘दूरदर्शन’’ जो एक नियत समय सीमा के अंतर्गत चलता था।
समय थोड़ा सा आगे बढ़ा और छोटा पर्दा आंतरिक तौर पर बेहद बढ़ा हो गया आज टेलिबिजन के नाम पर हमारे पास सैकड़ों चैनलो की दौलत है, जिसे हम अपनी इच्छा अनुसार आगे-पीछे बढाकर देख सकते है यहाॅ कोई ऐसी स्थिति नहीं होती की आप पर किसी भी प्रकार का दबाव हो। आप खेल, साहित्य,समाज, सिनेमा जैसे विभिन्न मनोरंजक क्षेत्रों में से खुद के लिए सर्वश्रेष्ट मनोरंजन का चुनाव कर सकते है। प्राचीन भारत में मनोरंजन महज पुरूषों की बापौती मानी जाती थी लेकिन वर्तमान की बात पर गौर करें तो नजरिया और हालात दोनों बदल चुके है, आज छोटे पर्दे की तरक्की और विकास का रास्ता खोलने का श्रेय जाता है तो महज महिलाओं को आज सर्वाधिक प्रशंसनीय तथ्य यह है कि महिलाओं को भी मनोरंजन करने का भरपूर मौका एवं अधिकार उपलब्ध हो रहा है, जो शायद पहले साधनों की कम उपलब्धता या अभाव के कारण संभव नही हो पाता था।
छोटे पर्दे का स्तर मनोरंजन के अलावा ज्ञान-विज्ञान गौर समाज पर भी केन्द्रित हो चुका है। आज छोटे पर्दे का कुल सालाना व्यवसाय दस हजार करोड़ का है जो कही ना कही देश को सक्षम एवं सुचारू ढंग से चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
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समय थोड़ा सा आगे बढ़ा और छोटा पर्दा आंतरिक तौर पर बेहद बढ़ा हो गया आज टेलिबिजन के नाम पर हमारे पास सैकड़ों चैनलो की दौलत है, जिसे हम अपनी इच्छा अनुसार आगे-पीछे बढाकर देख सकते है यहाॅ कोई ऐसी स्थिति नहीं होती की आप पर किसी भी प्रकार का दबाव हो। आप खेल, साहित्य,समाज, सिनेमा जैसे विभिन्न मनोरंजक क्षेत्रों में से खुद के लिए सर्वश्रेष्ट मनोरंजन का चुनाव कर सकते है। प्राचीन भारत में मनोरंजन महज पुरूषों की बापौती मानी जाती थी लेकिन वर्तमान की बात पर गौर करें तो नजरिया और हालात दोनों बदल चुके है, आज छोटे पर्दे की तरक्की और विकास का रास्ता खोलने का श्रेय जाता है तो महज महिलाओं को आज सर्वाधिक प्रशंसनीय तथ्य यह है कि महिलाओं को भी मनोरंजन करने का भरपूर मौका एवं अधिकार उपलब्ध हो रहा है, जो शायद पहले साधनों की कम उपलब्धता या अभाव के कारण संभव नही हो पाता था।
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मनोरंजन की बिसात पर हुनर:-
मनोरंजन की अहमियत बढ़ने के प्रमुख कारणों में से एक कारण है कि आज मनोरंजन के साथ-साथ हुनर दिखाने का अवसर भी उपलब्ध कराया जा रहा है। जहाँ टी.बी.देखना, मनोरंजन माना जाता था आज वही टी.बी. पर आना भी मनोरंजन के बलबूते पर ही संभव हो पाया है। मनोरंजक रिएलिटी शो की बात करें तो सिंगिंग , डांसिग जैसे कार्यक्रमों ने बहुत से ऐसे लोगों की जिंदगी बदल दी जिनका छोटे- पर्दे तक पहँुच पाना एक सपना था यू कहें तो असंभव था। लिटिल चैंप्स के विजेता हैमंत वृजवासी जिनकी इस शो से पहले ना कोई पहचान हुआ करती थी ना ही बैंक अकाउंट आज यह अपने नाम से जाने जाते है और पैसे की तंगी भी दूर हो चुकी है। इसी कार्यक्रम के द्वारा और भी कई बच्चों ने पहचान बनाई जिनमें यथार्थ और श्रेयसी प्रमुख थी मनोरंजन के बिना इतना कुछ संभव नही था। इसी पथ पर आगे बढकर सुनिधि चैहान, श्रेया घोषाल और अदिति कक्कड़ जैसी नामी गियनी गायिकाएं हम तक पहुंची है।
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मनोरंजन और समाज:-
मनोरंजन के नाम पर हमारे दिलों में एक तरह की तरंगों का आवागमन होता है वही मनोरंजन के द्वारा समाज की समस्याओं को भी उकेरा जा रहा है। मनोरंजन के द्वारा किसी भी समस्या को उकेरा जाना इसलिए सार्थक एवं सुलभ होता है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य हमारे दिलो दिमाग तक बढी संजीदगी के साथ पहुँच जाता है। मनोरंजन के लिवास में लपेटकर आज हमारे सामने बेहद गंभीर विषयों एवं मुद्दों को हवा दी जा रही है जो सामाजिक एवं व्यक्तिगत रूप से लाभप्रद है। ‘‘ प्रोजेरिया ’’ जैसी घातक बीमारी पर बनी फिल्म पा को जहा काफी सराहना मिली तो वही कोई मिल गया जैसी फिल्म ने अपार सफलता प्राप्त की जवकि यह फिल्म डेवलेपमेंट डिसआर्डर बीमारी को ध्यान में रखकर रची गयी थी। मनोरंजन के नाम पर घातक बीमारियों के बारे में हमें जताने का यह सिलसिला तो काफी पहले ही शुरू हो गया था जब कैंसर जैसी घातक एवं जानलेवा बीमारी को दिल एक मंदिर जैसी फिल्म के द्वारा हम तक पहुँचाया गया था। सफर फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ ब्लड कैंसर के बारे में बताती है। कैंसर को लेकर आनंद और मिली फिल्मों ने भी मनोरंजन क्षेत्र में कदम रखा और जनता का भरपूर प्यार मिला। अल्माइजर्स और पारापलेजिया जैसी बीमारियों को क्रमशः यू मी और हम, ब्लैक और गुजारिश के द्वारा हम तक पहुँचाया गया है, जिससे यह ज्ञात हुआ कि सच मनोरंजन केवल मनोरंजन नहीं उससे ज्यादा भी कुछ है। ऐसी ही बीमारी डिस्लेसिया पर बनी तारें जमीन पर ने समाज पर एक ऐसी गहरी और अमित छाप छोड़ी जो शायद कभी हल्की ना पड़ेगी। आॅटिज्म जैसी बीमारी के बारे में जानकारी और मनोरंजन के उद्देश्य से हमारे सामने प्रस्तुत की जा रही फिल्म माइ नेम इज खान भी एक अच्छा और सार्थक प्रयास है। लोगों को बताने का कि कोई भी बीमारी जिंदगी या सफलता का अंत नही होता।
मनोरंजन की तरक्की एवं गति को कोई भी नही रोक सकता जब तक कि मनोरंजन का उद्देश्य मनोरंजन से उठकर नागरिकों को लाभ पहुँचाता हो। आज मनोरंजन के रास्ते ज्ञान-विज्ञान और समाज के उन अनछुए पहलुओं को हम छूँ पा रहे है जो हमेशा से नामुमकिन ही थे।
जिस तरह से इन फिल्मों की प्रस्तुति के बाद हम इन बीमारियों के बारे में जानने लगे है, परंतु इससे पहले ये बीमारियाॅ हमारे लिए जबान को मरोड़ देने वाले नाम ही थे, तो मनोरंजन सराहनीय है, पूजनीय है।
मनोरंजन के नाम पर हमारे दिलों में एक तरह की तरंगों का आवागमन होता है वही मनोरंजन के द्वारा समाज की समस्याओं को भी उकेरा जा रहा है। मनोरंजन के द्वारा किसी भी समस्या को उकेरा जाना इसलिए सार्थक एवं सुलभ होता है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य हमारे दिलो दिमाग तक बढी संजीदगी के साथ पहुँच जाता है। मनोरंजन के लिवास में लपेटकर आज हमारे सामने बेहद गंभीर विषयों एवं मुद्दों को हवा दी जा रही है जो सामाजिक एवं व्यक्तिगत रूप से लाभप्रद है। ‘‘ प्रोजेरिया ’’ जैसी घातक बीमारी पर बनी फिल्म पा को जहा काफी सराहना मिली तो वही कोई मिल गया जैसी फिल्म ने अपार सफलता प्राप्त की जवकि यह फिल्म डेवलेपमेंट डिसआर्डर बीमारी को ध्यान में रखकर रची गयी थी। मनोरंजन के नाम पर घातक बीमारियों के बारे में हमें जताने का यह सिलसिला तो काफी पहले ही शुरू हो गया था जब कैंसर जैसी घातक एवं जानलेवा बीमारी को दिल एक मंदिर जैसी फिल्म के द्वारा हम तक पहुँचाया गया था। सफर फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ ब्लड कैंसर के बारे में बताती है। कैंसर को लेकर आनंद और मिली फिल्मों ने भी मनोरंजन क्षेत्र में कदम रखा और जनता का भरपूर प्यार मिला। अल्माइजर्स और पारापलेजिया जैसी बीमारियों को क्रमशः यू मी और हम, ब्लैक और गुजारिश के द्वारा हम तक पहुँचाया गया है, जिससे यह ज्ञात हुआ कि सच मनोरंजन केवल मनोरंजन नहीं उससे ज्यादा भी कुछ है। ऐसी ही बीमारी डिस्लेसिया पर बनी तारें जमीन पर ने समाज पर एक ऐसी गहरी और अमित छाप छोड़ी जो शायद कभी हल्की ना पड़ेगी। आॅटिज्म जैसी बीमारी के बारे में जानकारी और मनोरंजन के उद्देश्य से हमारे सामने प्रस्तुत की जा रही फिल्म माइ नेम इज खान भी एक अच्छा और सार्थक प्रयास है। लोगों को बताने का कि कोई भी बीमारी जिंदगी या सफलता का अंत नही होता।
मनोरंजन की तरक्की एवं गति को कोई भी नही रोक सकता जब तक कि मनोरंजन का उद्देश्य मनोरंजन से उठकर नागरिकों को लाभ पहुँचाता हो। आज मनोरंजन के रास्ते ज्ञान-विज्ञान और समाज के उन अनछुए पहलुओं को हम छूँ पा रहे है जो हमेशा से नामुमकिन ही थे।
जिस तरह से इन फिल्मों की प्रस्तुति के बाद हम इन बीमारियों के बारे में जानने लगे है, परंतु इससे पहले ये बीमारियाॅ हमारे लिए जबान को मरोड़ देने वाले नाम ही थे, तो मनोरंजन सराहनीय है, पूजनीय है।
मनोरंजन का व्यवसायीकरण:-
मनोरंजन का असीमित संसार, यूँ तो दावा करता है कि वह संपूर्ण मानवजाति के हित के लिए है लेकिन मगर इसके दूसरे पहलू पर नजर डाली जाए तो ज्ञात होता है कि आज मनोरंजन का व्यवसायीकरण हो रहा है। मनोरंजन के लिए भले ही हजारों प्रकार के साधन उपलब्ध हो लेकिन एक गरीब तबके और आधुनिक मनोरंजन के बीच एक फर्क साफ तौर पर देखा जाँ सकता है। जो हमें यह अहसास कराता है कि मनोरंजन सर्वेत्र तो हो सकता है लेकिन हर एक वर्ग तक इसका पहुँच पाना संभव नजर नहीं आता है। मनोरंजन के लिए ईजाद किए गए टी.बी. कार्यक्रमों में व्यावसायीकरण साफ तौर पर नजर आता है, मनोरंजन के नाम पर गैर जिम्मेदाना तरीके से बसूली की जाती है। जो निशानी है कि आज मनोरंजन पूर्ण रूप से व्यावसाय का अड्डा बन गया है जो आत्मिक संतुष्टि के नाम पर लोगों की जेबों में सेध लगाने का कार्य कर रहा है।
मनोरंजन जगत ने हमें कई हुनरमंद शब्द दिए है जो छोटे पर्दे से होते हुए हम तक पहुँचे है लेकिन आज हुनरमंदी और मनोरंजन के नाम पर बिजनेस किया जा रहा है जो हमें आत्मिक संतुष्टि तो प्रदान नहीं करता बल्कि शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना के लिए कुछ ठोस वजह जरूर छोड़ जाता है।
मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन सिनेमा आज शत् प्रतिशत बिकाऊ है। करोड़ों रूपये की लागत सें घटिया फिल्मों का निर्माण हो रहा है और मनोरंजन के नाम पर करोड़ों की लागत को दर्शकों पर थोपा जा रहा है। मनोरंजन का व्यावासायीकरण इसकी प्रबल तीव्रता से हजार गुना तीव्र गति से भाग रहा है। जिससे प्रत्येक क्षण हमें ज्ञात होता है कि मनोरंजन महज एक उच्च तबके की जागीर बन गया है, इसके पास नीचे तबके की जनजाति के लिए कुछ भी नही है, क्योंकि मनोरंजन की प्रथम नीव से लेकर संपूर्ण इमारत ही व्यावसायीकरण की विसात बन गयी है, जो कही ना कही चिंतनीय एवं गंभीर मुद्दा है।
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मनोरंजन जगत ने हमें कई हुनरमंद शब्द दिए है जो छोटे पर्दे से होते हुए हम तक पहुँचे है लेकिन आज हुनरमंदी और मनोरंजन के नाम पर बिजनेस किया जा रहा है जो हमें आत्मिक संतुष्टि तो प्रदान नहीं करता बल्कि शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना के लिए कुछ ठोस वजह जरूर छोड़ जाता है।
मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन सिनेमा आज शत् प्रतिशत बिकाऊ है। करोड़ों रूपये की लागत सें घटिया फिल्मों का निर्माण हो रहा है और मनोरंजन के नाम पर करोड़ों की लागत को दर्शकों पर थोपा जा रहा है। मनोरंजन का व्यावासायीकरण इसकी प्रबल तीव्रता से हजार गुना तीव्र गति से भाग रहा है। जिससे प्रत्येक क्षण हमें ज्ञात होता है कि मनोरंजन महज एक उच्च तबके की जागीर बन गया है, इसके पास नीचे तबके की जनजाति के लिए कुछ भी नही है, क्योंकि मनोरंजन की प्रथम नीव से लेकर संपूर्ण इमारत ही व्यावसायीकरण की विसात बन गयी है, जो कही ना कही चिंतनीय एवं गंभीर मुद्दा है।
मनोरंजन बनाम संस्कृति:-
मनोरंजन का संबंध प्रत्यक्ष एवं अप्रत्याक्ष रूप से संस्कृति से होता है। मनोरंजन के लिए उपलब्ध साधन प्रत्यक्ष रूप से संस्कृति को ठोस पहुँचाने में उसकी अवहेलना करने में जुटे है। मनोरंजन के लिए ब्लाॅग भी एक श्रेष्ट जरिया हुआ करते थे लेकिन आज इनका उपयोग ज्ञान और मनोरंजन के लिए ना होकर गाली गलौच एवं अपशब्दों के लिए हो रहा है, इस प्रकार यह कहना ही मुनासिव होगा की मनोरंजन संस्कृति को विकृति की ओर ले जा रहा है। मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन कहलाया जाने वाला संगीत आज फुहडपन और अश्लीलता की भेट चढ गया है जिसमें मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और सेक्स को तवज्जों दी जा रही है जो कही ना कही यह अहसास कराता है कि सिनेमा मनोरंजन का नही खतरे का सबब बनता जा रहा हौ जो भारतीय संस्कृति पर जबरन पश्चिमी सभ्यता के छोटे-छोटे लिवासों को लपेटने की कोशिश कर रहा है। आज फैशन शो की बात हो या स्टेज शो के हालात स्थिति संस्कृति को शर्मसार करने से पीछे नहीं हटती आज मनोरंजन के नाम पर ऐच्छिक अश्लील वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। यह सब किसी भी व्यक्ति के लिए प्रसिद्ध होने का आसान तरीका तो हो सकता है लेकिन भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही। मीडिया मनोरंजन के पथ को अग्रसर करने का जरिया हुआ करता था लेकिन आज मीडिया राई से पहाड़ बनाने वाली मशीन के तौर पर पहचानी जाती है। यहाॅ भरोसेमद और संविधान का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीड़िया के कुछ व्यवसायी किस्म के बाशिन्दे ही मनोरंजन और मीड़िया का अश्लीलता से मेल मिलाप कराने में जुटे है। जो मीडिया और मनोरंजन के प्रति नकारात्मक छवि उत्पन्न कर रहे हैं।
मनोरंजन का संबंध प्रत्यक्ष एवं अप्रत्याक्ष रूप से संस्कृति से होता है। मनोरंजन के लिए उपलब्ध साधन प्रत्यक्ष रूप से संस्कृति को ठोस पहुँचाने में उसकी अवहेलना करने में जुटे है। मनोरंजन के लिए ब्लाॅग भी एक श्रेष्ट जरिया हुआ करते थे लेकिन आज इनका उपयोग ज्ञान और मनोरंजन के लिए ना होकर गाली गलौच एवं अपशब्दों के लिए हो रहा है, इस प्रकार यह कहना ही मुनासिव होगा की मनोरंजन संस्कृति को विकृति की ओर ले जा रहा है। मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन कहलाया जाने वाला संगीत आज फुहडपन और अश्लीलता की भेट चढ गया है जिसमें मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और सेक्स को तवज्जों दी जा रही है जो कही ना कही यह अहसास कराता है कि सिनेमा मनोरंजन का नही खतरे का सबब बनता जा रहा हौ जो भारतीय संस्कृति पर जबरन पश्चिमी सभ्यता के छोटे-छोटे लिवासों को लपेटने की कोशिश कर रहा है। आज फैशन शो की बात हो या स्टेज शो के हालात स्थिति संस्कृति को शर्मसार करने से पीछे नहीं हटती आज मनोरंजन के नाम पर ऐच्छिक अश्लील वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। यह सब किसी भी व्यक्ति के लिए प्रसिद्ध होने का आसान तरीका तो हो सकता है लेकिन भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही। मीडिया मनोरंजन के पथ को अग्रसर करने का जरिया हुआ करता था लेकिन आज मीडिया राई से पहाड़ बनाने वाली मशीन के तौर पर पहचानी जाती है। यहाॅ भरोसेमद और संविधान का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीड़िया के कुछ व्यवसायी किस्म के बाशिन्दे ही मनोरंजन और मीड़िया का अश्लीलता से मेल मिलाप कराने में जुटे है। जो मीडिया और मनोरंजन के प्रति नकारात्मक छवि उत्पन्न कर रहे हैं।
स्वच्छ एवं संस्कृतिनिष्ठ मनोरंजन के लिए क्या हो ?
स्वच्छ एवं संस्कृतिनिष्ठ मनोरंजन के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि तेजी से बढ रहे मनोरंजन के व्यवसायीकरण को रोका जाये जिससे मनोरंजन किसी वर्ग विशेष की अमानत बनने से बचा रहे।
स्वच्छ एवं संस्कृतिनिष्ठ मनोरंजन के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि तेजी से बढ रहे मनोरंजन के व्यवसायीकरण को रोका जाये जिससे मनोरंजन किसी वर्ग विशेष की अमानत बनने से बचा रहे।
मनोरंजन के नाम पर पश्चिमी सभ्यता को इतनी तबज्जो न मिले की इससे हिन्दुस्तानी संस्कृति का अपमान हो और सारी मर्यादाओं को खुलेपन की आड़ में निर्वस्त्र कर दिया जाये
मनोरंजन के लिये उपलब्ध साधनों का उपयोग औरों के हित के लिये भी होना चाहिए न कि शारीरिक एवं मानसिक गंदगी को उगलने के लिये जैसा की आज ब्लाॅगिग में हो रहा है। मुफ्त के ब्लाॅगों पर लिखना और जी भरजाने पर उसी के माध्यम से गंदगी फैलाना यह सामाजिक कदम नहीं है।
आगे पढ़ें के आगे यहाँ
मनोरंजन का सम्पूर्ण विवरण पसंद आया..बहुत खूब संजय जी...
ReplyDeleteमजा आ गया आपका विस्तृत लेख पढ़कर
ReplyDeleteसही कहा आपने मनोरंजन में कुछ बदलाब आवश्यक है जो सांस्कृतिक रूप से आवश्यक है
Write more, thats all I have to say. Literally, it seems as
ReplyDeletethough you relied on the video to make your point.
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ReplyDeleteof information.
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