Skip to main content

टीम इंडिया को नकली ट्रॉफी मिलने की खबर पर भड़के गौतम गंभीर



 

मुंबई. शनिवार को श्रीलंका के खिलाफ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में छह विकेट से जीत दर्ज करने के बाद महेंद्र सिंह धोनी एंड कंपनी ने जो विश्व कप ट्रॉफी हाथों में उठाई थी, वह नकली थी। ऐसा एक अंग्रेजी अखबार का दावा है। लेकिन आईसीसी ने भारतीय टीम को नकली विश्व कप ट्रॉफी दिए जाने के दावे को गलत करार दिया है। बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने ट्रॉफी के नकली होने की बात को खारिज करते हुए कहा है कि भारतीय टीम को दी गई ट्रॉफी असली है। साथ ही, शुक्‍ला ने कस्‍टम विभाग को भी आड़े हाथों लिया है और कहा है कि राष्‍ट्रीय सम्‍मान की चीज पर टैक्‍स वसूला जाना ठीक नहीं है।

दूसरी ओर, ट्रॉफी की विश्वसनीयता पर उठे सवाल ने भारतीय क्रिकेट टीम के सितारों को भी परेशान करना शुरू कर दिया है। टीम इंडिया के स्टार बल्लेबाज गौतम गंभीर ने विश्व कप ट्रॉफी की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों के बाद पूरे मामले पर नाराजगी जाहिर की है। फाइनल में भारत की जीत की नींव रखने वाले गंभीर ने सोमवार को मीडिया से कहा, 'भारतीय टीम ने जबर्दस्त मेहनत की है और टीम को असली ट्रॉफी ही मिलनी चाहिए।' उन्होंने कहा कि विश्व कप जीतना मेरे और टीम के लिए बहुत ही गौरव का क्षण है। 

अखबार 'मेल टुडे' का दावा है, '28 साल के सूखे के बाद धोनी सहित टीम इंडिया ने जिस ट्रॉफी को चूमा, उठाया और करोड़ों प्रशंसकों ने जिसके लिए तालियां बजाईं वह महज असली ट्रॉफी की प्रतिकृति थी। विश्व कप के 36 सालों के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।'

अखबार का दावा है कि तब असली ट्रॉफी सरकारी गोदाम में रखी हुई थी, जिसे मुंबई कस्टम विभाग ने उस समय सीज़ कर लिया था जब इसे श्रीलंका-न्यूजीलैंड के बीच हुए सेमीफाइनल के बाद कोलंबो से मुंबई लाया गया। कस्टम विभाग ने कानूनों का हवाला देकर ट्रॉफी सीज़ कर ली। कस्टम अधिकारियों का मानना है कि ट्रॉफी पर कस्टम शुल्क लगना चाहिए और इस पर किसी तरह की रियायत नहीं दी जा सकती है। अखबार ने आईसीसी और बीसीसीआई के अधिकारियों के हवाले से सोमवार को ट्रॉफी आईसीसी के दुबई स्थित हेडक्वॉर्टर भेजे जाने की भी बात बताई है। वर्ल्ड कप टूर्नामेंट निदेशक सुरु नायक के मुताबिक असली ट्रॉफी अब दुबई वापस भेजने का इंतजाम किया जा रहा है।

लेकिन आईसीसी का कहना है कि असली ट्रॉफी बीसीसीआई के हेडक्वॉर्टर में विश्व कप शुरू होने से पहले ही रखी हुई थी और कस्टम विभाग के पास मौजूद ट्रॉफी असली ट्रॉफी की प्रतिकृति है, जो सिर्फ प्रमोशन वगैरह के लिए इस्तेमाल की जाती है। लेकिन छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर तैनात एक कस्टम अधिकारी के मुताबिक, 'जब वह असली ट्रॉफी नहीं है तो फिर आईसीसी उसे छुड़वाने के लिए इतनी कोशिश क्यों कर रहा है?  इसे शहर के अंदर ले जा करके वे क्या करते?'

आईसीसी का कहना है कि कस्टम के कब्जे में मौजूद ट्रॉफी का कोई भी मूल्य नहीं है और इसे सिर्फ प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन जब जानकारों ने इसे परखा तो इसकी कीमत करीब 60 लाख रुपये आंकी। यह सोने और चांदी से बना हुआ है। इस ट्रॉफी पर करीब 15 लाख रुपये की कस्टम ड्यूटी बनती है। कस्टम अधिकारी के मुताबिक अगर यह प्रतिकृति है तो इसका असली ट्रॉफी जितना मूल्य कैसे हो सकता है? 

एक अन्य अख़बार 'मिड डे' भी कस्टम अधिकारियों के हवाले से दावा कर रहा है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई महिला के पास से जो ट्रॉफी बरामद की थी, वह असली ट्रॉफी थी। कस्टम अधिकारियों ने एक ऑस्ट्रेलियाई महिला एमिले फेलीसिटी वेट को ग्रीन चैनल पार करते समय पकड़ा। उसके पास लकड़ी का बॉक्स था, जिसमें ट्रॉफी रखी गई थी। गौरतलब है कि एयरपोर्ट पर ग्रीन चैनल उन अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए होता है जो ऐसी कोई चीज लेकर यात्रा नहीं कर रहे होते हैं, जिसपर कस्टम ड्यूटी देनी पड़े। 

मेल टुडे  के मुताबिक, 'ऑस्ट्रेलियाई महिला के पास आईसीसी द्वारा जारी एक चिट्ठी भी मिली जिसमें कहा गया है कि यह विश्व कप ट्रॉफी है।' चिट्ठी में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि यह मूल विश्व कप की प्रतिकृति है और इसे कस्टम ड्यूटी से मुक्त रखा जाए।

बीसीसीआई और आईसीसी अधिकारी इस मुद्दे को दबाना चाहते हैं। लेकिन इस मामले से जुड़े अफसर बीसीसीआई को पूरे मामले से उपजे भ्रम के लिए जिम्मेदार मानते हैं। उनका मानना है कस्टम से छूट की मांग करते समय उन्हें वर्ल्ड कप ट्रॉफी लिखना चाहिए था। वहीं यह सवाल भी उठ रहा है कि आईसीसी और बीसीसीआई बेहद अमीर संस्थाएं हैं, ऐसे में वे कस्टम ड्यूटी क्यों नहीं चुकाती हैं? इस तरह की ड्यूटी उनके लिए कुछ भी मायने नहीं रखती है। 

उलझा आईसीसी
आईसीसी लगातार गलतबयानी करके खुद को इस मामले में पूरी तरह से उलझा चुका है। आईसीसी के प्रवक्ता ने कहा है कि विजेता टीम को कभी भी असली ट्रॉफी नहीं दी जाती है, उन्हें सिर्फ प्रतिकृति दी जाती है। लेकिन 1999 के विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी करने वाले स्टीव वॉ,  साल 2003 और 2007 के विश्व कप में रिकी पॉन्टिंग की विश्व कप लेते हुए खींची गई तस्वीरें आईसीसी के दावे को गलत साबित करती हैं। मूल ट्रॉफी पर 1975 और उसके बाद के सभी विजेताओं के नाम उकेरे गए हैं। जबकि 'मेल टुडे' के मुताबिक धोनी को मिली ट्रॉफी पर ऐसा कुछ भी नहीं है। असली ट्रॉफी की बाज़ार में कीमत करीब 60 लाख रुपये के करीब है।
आईसीसी का रुख
आईसीसी के मीडिया और कम्युनिकेशन हेड कॉलिन गिब्सन ने एक ईमेल में इस बाबत कहा, इस ट्रॉफी (कस्टम के कब्जे में) का हमेशा मार्केटिंग जैसी चीजों में इस्तेमाल किया जाता है। बीसीसीआई से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी रत्नाकर शेट्टी ने इस बारे में मीडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया है। 

अरबों कमाए, 45 करोड़ की छूट भी पाई फिर भी किरकिरी कराई
भारत सरकार के राजस्व सचिव सुनील मित्रा के मुताबिक आईसीसी को विश्व कप के आयोजन से 1,476 करोड़ रुपये की कुल आमदनी हुई। प्रसारण अधिकार ही बेचने से आईसीसी को करीब 1,062 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है। मित्रा के मुताबिक आयोजन में करीब 571  करोड़ रुपये खर्च हुए। इस तरह आईसीसी को करीब साढ़े छह सौ करोड़ रुपये का सीधा फायदा हुआ है। आयोजन में करीब साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये खर्च हुए। लेकिन महज 15 लाख रुपये की कस्टम ड्यूटी न चुकाने के चलते क्रिकेट की इस अंतरराष्ट्रीय संस्था की किरकिरी हो रही है।

कप का इतिहास 

1975 से 1983 तक विश्व कप के तीन संस्करणों में ट्रॉफी को प्रूडेंशियल कप कहा गया। 1987 में इसे रिलायंस कप कहा गया। जबकि 1992 पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान को क्रिस्टल ट्रॉफी भेंट की गई थी। 1996 में विल्स ट्रॉफी के नाम से कप दिया गया। आईसीसी ने 1999 में स्थायी ट्रॉफी बनाई। 

आपकी राय
क्या जिस देश ने टैक्स में 45 करोड़ रुपये की छूट दे दी हो, उसके सूरमाओं को असली विश्व कप ट्रॉफी को एक बार हवा में उठाने का हक नहीं है? क्या आईसीसी को आगे आकर पूरे मामले को साफ करना चाहिए? क्या इस पूरे मामले में आईसीसी का रवैया गैरजिम्मेदाराना और गैर-पेशेवर रहा है? क्या सरकार को इस मामले में कोई कदम उठाना चाहिए? 

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा