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एक फुल मोहम्मद जिसके जिस्म के टुकड़े बाद में उठाये

दोस्तों आपको सुन कर जरा अजीब सा लगेगा लेकिन यह सच हे के एक फुल मोहम्मद जो राजस्थान पुलिस में सवाई माधोपुरमान्ताउन थानाधिकारी थे उनको उनके इलाके के ही जालिमों ने ज़िंदा जला दिया जिस सरकार के नमक के लियें उन्होंने कुर्बानी दी उस सरकार ने उन्हें शाहादत का दर्जा तो दिया लेकिन आधा अधूरा ही दफना दिया . 
यह खोफ्नाक सच सरकार की पुलिस की जल्दबाजी और लापरवाही को उजागर करता हे पहले जिंदा जलाया जाना फिर मोत पर राजनीति बचकानी अभियुक्तों  को बरी करनी वाली एफ आई आर शहीद फुल्मोह्म्म्द के जले हुए विक्षिप्त शव को जीप में उनके गाँव केवल दो सिपाहियों के साथ भेजना उनके अंतिम संस्कार में सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं होना यह सब तो आम  लोगों को तो आक्रोशित किये हुए थी लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डोक्टर की रिपोर्ट जिसमें फुल्मोह्म्म्द का एक हाथ और एक पांव गुम होना अंकित किया गया पुलिस अधिकारी मुकदमा दर्ज होने के बाद तीन दिन तक मोके का मुआयना  नहीं  करने गये नक्शा मोका नहीं बनाया दंड प्रक्रिया संहिता के तहत घटना स्थल का सूक्ष्म निरिक्षण नहीं किया गया और तीन दिन बाद पत्थरों के नीचे फुल मोहम्मद का एक हाथ और एक पांव बरामद किया गया उसकी शायद कोई फर्द जब्ती भी नहीं बनी और फिर एक व्यक्ति जिसके शव को दफना दिया गया तीन दिन बाद उसके शव के कुछ टुकड़े सोचो उसके परिजनों पर क्या बीती होगी एक व्यक्ति का टुकड़ों में अंतिम संस्कार अफसोसनाक बात हे लेकिन पुलिस के अधिकारी हें के अब तक इस लापरवाही के लियें किसी को भी दोषी नही ठहरा रहे हें वेसे सरकार ने इस मामले में अब पुरे राजस्थान में एहतियाती कदम उठाये हें यहाँ कोटा में एक पुलिस कर्मी की चोकी पर हत्या और माधोपुर की यह जिंदा जला देने की घटना सरकार की सोच हे के पुलिस के प्रति जनता का आक्रोश भी कहीं ना कहीं हे जिसपर नजर रखने के लियें सरकार ने अब नई निगरानी व्यवस्था की हे सरकार अब अपने  स्त्रोतों के माध्यम से राज्य भर में जनता से बुरा व्यवहार रखने वाले पुलिसकर्मियों को चिन्हित कर रही हे , खेर सरकार थोड़ी देर से ही चेती चेती तो सही लेकिन अगर सरकार पुलिस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अगर राज्य स्तर और जिला सम्भागीय स्तर की समितियों का गठन कर देती या अब भी कर दे तो सरकार का यह सर दर्द कम हो सकता हे और पुलिस और जनता के बीच एक सद्भावना का पुल बन सकता हे . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...