Source: खुशवंत सिंह |
सबसे पहले मैंने चावल के बारे में सोचा। लेकिन चूंकि चावल को अकेले नहीं खाया जा सकता, उसके साथ खाने के लिए किसी और चीज की भी दरकार होती है, लिहाजा मैंने उसके ख्याल को अलविदा कह दिया। रोटी का ख्याल भी मुझे इसी वजह से छोड़ना पड़ा, क्योंकि उसे भी अकेले नहीं खाया जा सकता। फिर मैं दालों के बारे में सोचने लगा।
मेरे सामने कई तरह की दालें थीं और वे सभी मुझे भाती थीं, लेकिन मैं इसे लेकर निश्चित नहीं था कि मैं उन्हें दिन में दो दफे खा सकूंगा। फिर मुझे आलू और मटर का ख्याल आया। ये दोनों भी मेरी पसंदीदा चीजों में से हैं। लेकिन अगर मैं आलुओं पर ही अपना गुजारा करने लगा, तो यकीनन मैं अपना वजन खूब बढ़ा लूंगा, जबकि मटर के साथ यह दिक्कत है कि वह पेट में खूब गैस पैदा कर सकती है। तब मैंने आलू-मटर के विचार को भी तिलांजलि दे दी और गाजर, टमाटर, सेम, करेला, सागभाजी इत्यादि सब्जी-तरकारियों के बारे में सोचने लगा।
लेकिन मुझे लगा मैं इन सबसे बहुत जल्द उकता जाऊंगा। जहां तक सेब, अंगूर, नाशपाती, केले जैसे फलों का सवाल है तो इसमें शक नहीं कि फल खाने से सेहत बनती है, लेकिन महज फल खाकर गुजारा भी नहीं किया जा सकता। आखिरकार मैंने उस चीज के बारे में सोचा, जिससे मैं कभी भी उकता नहीं सकता था। आइस्क्रीम।
मैं आइस्क्रीमों का मुरीद तभी से हूं, जब मैंने पहली दफे पलास की सूखी पत्तलों पर परोसी जाने वाली पेटीवालों की कुल्फियां चखी थीं। इन्हें पेटीवाले इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वे फलालेन से लिपटी काठ की पेटियों में कुल्फियां बेचते थे। जब पेटीवालों के दिन लद गए तो उनकी जगह कुल्फीवालों ने ले ली। वे बर्फ से भरे मटके में छोटे-छोटे डिब्बों में कुल्फियां जमाते थे। इनमें से कुछ कुल्फीवाले तो अपनी कुल्फियों के खास जायके के लिए मशहूर थे। मैंने उनकी कुल्फियों के लिए दूर-दूर तक की खाक छानी है। इसके बाद हम घर पर ही अलग-अलग फ्लैवर वाली आइस्क्रीम बनाने लगे। कई साल पहले मेरे पिता ने भोपाल में आइस्क्रीम फैक्टरी खरीदी थी।
उस दौरान मैं अपना पहला उपन्यास लिख रहा था और झील के किनारे अकेले रहा करता था। मैं हर दोपहर बिलानागा फैक्टरी चला जाता और उस बड़े से कमरे में थोड़ा वक्त बिताता, जहां बड़े से कंटेनर में आइस्क्रीम में धीमे-धीमे तरह-तरह के फ्लैवर मिलाए जाते थे। मुझे आइस्क्रीम की खुशबू से स्वर्गिक अनुभव होता था और मेरा जी करता कि मैं उस कंटेनर में गोता लगा जाऊं। मैं खूब सारी आइस्क्रीम मुफ्त में भकोस लिया करता था। मेरी ताजा पसंद है मदर डेरी की कुल्फी। मैं डिनर के बाद मीठे में कुल्फी लेता हूं। मैं इसके सहारे अपनी बची-खुची जिंदगी बड़े आराम से गुजार सकता हूं।
एक दफे फिर भोपाल त्रासदी
भोपाल की हवाओं में जहर घोल देने
और हजारों लोगों की जान लेने के जुर्म में
पुलिस ने वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार किया
जो कि एक नृशंस कार्रवाई थी
और अब भोपाल का जिन्न फिर से बोतल के बाहर आ गया है
हम अकारण सता रहे हैं उस बूढ़े भलेमानुष को।
हे ईश्वर, भोपाल के पूर्व कलेक्टर और
दूसरे लोगों को माफ करना
क्योंकि वे नहीं जानते थे
यूनियन कार्बाइड के कारण कितनी समृद्धि आई
और कितनी गफलत पैदा हुई है हालिया खुलासों से
जिसने बदनुमा दाग लगा दिया उजले अमेरिकी दामन पर।
कितनी ज्यादती है यह उन भले लोगों के साथ
जिन्होंने भाग जाने दिया होगा एंडरसन को तुरत-फुरत
और शायद कुछ लाख या अरब रुपए कमा लिए होंगे
महज कुछ हजार हिंदुस्तानियों की जान के एवज में।
यकीनन, हमें नहीं सताना चाहिए यूनियन कार्बाइड
और मिस्टर एंडरसन को
आखिर उन्होंने हमें आबादी की समस्या से निजात पाने का
एक तरीका ही तो सुझाया था।
(सौजन्य: कुलदीप सलिल, दिल्ली)
शादी की कामयाबी का राज
एक जोड़े ने शादी की 25वीं सालगिरह मनाई। इतने लंबे समय में उनका एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ था। सालगिरह के मौके पर उनके घर पर पत्रकारों का जत्था पहुंच गया। वे सभी जानना चाहते थे कि उनकी शादी की कामयाबी का राज क्या है। पत्रकारों ने पूछा-ऐसा कैसे मुमकिन हो सका कि पच्चीस सालों में आपके बीच एक बार भी मनमुटाव या झगड़ा-फसाद की नौबत नहीं आई हो? पति ने पुराने खुशनुमा दिनों को याद करते हुए कहा: ‘हम हनीमून मनाने शिमला गए थे।
वहां हमने घुड़सवारी करने की सोची। हम दोनों के घोड़े अगल-बगल चल रहे थे। मेरा घोड़ा तो ठीकठाक था, लेकिन मेरी बीवी का घोड़ा कुछ खब्ती मालूम हो रहा था। यकायक वह उछला और मेरी बीवी को नीचे गिरा दिया। वह उठी और उसने घोड़े की पीठ पर थपथपी जमाते हुए कहा ‘यह पहली बार है’। वह फिर घोड़े पर चढ़ी और घुड़सवारी करने लगी। थोड़ी देर बाद वैसा ही वाकया फिर हुआ। मेरी बीवी ने धर्य नहीं खोया। उसने शांति से कहा ‘यह दूसरी बार है’ और घुड़सवारी जारी रखी। जब घोड़े ने तीसरी दफे भी उसे अपनी पीठ से गिरा दिया तो उसने पर्स से रिवॉल्वर निकाला और धांय-धांय करके घोड़े को गोली से उड़ा दिया।
मैं अपनी बीवी पर जोर से चिल्लाया: ‘पागल हो गई हो? ये तुमने क्या कर डाला? तुमने बेचारे निर्दोष जानवर की जान ले ली।’
मेरी बीवी ने खामोशी से मेरी तरफ देखा और कहा: ‘यह पहली बार है!!!’
उसके बाद हम दोनों के बीच कभी झगड़े की नौबत नहीं आई।’
एक बेहतरीन कहावत : दुख हमारा भरोसेमंद साथी है। सुख तो आता-जाता रहता है। संता इस कहावत से पूरी तरह सहमत है। वह कहता है: ‘मेरी बीवी हमेशा मेरे साथ है। जबकि मेरी साली आती-जाती रहती है।’
(सौजन्य: विपिन बख्शी, नई दिल्ली
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--- संजय सेन सागर