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देशी बाप विलायती लड़का...

शहरी बेटा जब बूढ़े बाप से मिला ,तो एक बार तो ममता कौंध गयी॥ लेकिन उस बुड्ढ़े बाप स्थिति देख कर शहरी बेटा॥ वापस शहर में जाके बस जाता है .और वापस न आने की कसम खाता है। वह सिर्फ अपनी बीबी और बच्चो की परवरिस करना ही अपना महान कर्त्तव्य समझता है॥ क्यों की शहर में उसकी सोशायती हाई फाई हो गयी थी॥ पुरानी गरीबी की कहानी भूल गया था की माँ बाप कैसे कैसे उसे पाले थे॥ बाप तो गरीब था ही लेकिन किसी तरह १२ वी बढ़ा दिया था उसके बार वह शहर आ गया था। और छोटी मोती नौकरी करने लगा था। साथ में पढाई पर भी ध्यान दिया था। और पढ़ करके के कुछ हद तक कामयाब हो गया था। और मिया बीबी खुशहाल थे। कुछ दिनों के बाद उनके यहाँ एक बेटे का जन्म हुया॥ लेकिन यह दुर्भाग्य ही था की लड़का जन्म-जात अंधा था। इधर शहरी बाबू और उनकी बीबी बहुत परेशान॥ धीरे धीरे ये बात बुड्ढ़े बाप को पता चली तो वह शहर आ गया और बहू को देख कर बेटे से कहता की यार तूने तो किसी पारी से शादी कर रखा है। मेरी बहू तो बड़ी खूब सुरुआत है॥ उसके बात पालने पर पड़े पोते को देखता है। तो ख़ुशी से पालने की तरफ दौड़ कर पोते को बुड्ढा गोदी में उठा लेता है॥ लेकिन पोते की आँखे देख कर ख़ुशी गम में बदल जाती है॥ एक रात बुड्ढा अपने बेटे के घर पर ही सो रहा था की उसे सपना दिखाई दिया। की तुम अपने बेटे बहू पोते के साथ घर चलो वहा पर अपने कुलदेव की पूजा करो हवन करवाओ । तो तुम्हारे पोते को आँख वापस आ सकती है॥ बुड्ढा सब को लेकर्के गाँव चला जाता है। विधि विधान से पूजा संपन्न होने के कगार पर थी की एक ज्योति बच्चे पर पड़ती है ॥ तो उसकी आँखे खुल जाती है॥ महाल ख़ुशी में बदल जाता। फिर शहरी बाबू को एहसास होतिया है॥ की बाप तो बाप है॥ वह तो बेटे का दुःख देख नहीं सकता॥ फिर शहरी बाबू शहर में आके नौकरी करते है। लेकिन सब का विशेष दयां देते है॥

जहा पे भी जाओ ,दुआ लेके आओ॥
मुकद्दर का टाला कभी तो खुलेगा॥
सही आचरण से जब पथ पर चलोगे॥
तेरी मंजिल पर चाँद आके रूकेगा॥
मानव का जीवन तो जी करके देखो॥
तेरे दर पे मनाई का मेला लगेगा॥
मुह पे हंसी लेके बोलो तो बोली॥
तेरा तन पापो से वर्जित रहेगा॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...