हिन्दुस्तान का दर्द की नियमित पाठिका रचना दीक्षित जी का 'हिन्दुस्तान का दर्द' के लिए यह पहला लेख है आशा है आपको पसंद आएगा,उनका यह लेख यातायात व्यवस्था पर है..आप उनके इस लेख पर अपनी राय जरुर रखें...
बस का कहर नाम से रोज़ ही खबर छपती है.हर रोज़ न जानें कितनी ही जानें जाती हैं. पर क्या कभी हमने ये सोचने की कोशिश की है की इसकी असली वजह क्या है? ये हादसे क्यों होते हैं ? इसका असली जिम्मेदार कौन? मैं यहाँ किसी का पक्ष नहीं ले रही हूँ.बस अपने विचार रख रही हूँ . सड़क हादसों में मरने वालों में ९५-९८ % तो हमारे रणबाँकुरे हैं.जो सर पर हेलमेट रूपी कफ़न बांधे रोज़ मोटर साईकिल पर निकल पड़ते हैं.( मोटर साईकिल चलाने वाले माफ़ करें) इतनी बड़ी तादात मैं ये हादसे यही संकेत देते हैं कि बस चालक के साथ-साथ ये भी जिम्मेदार हैं.मेरा ये मानना है कि मोटर साईकिल वाले खुद इन हादसों के सीधे जिम्मेदार हैं.मुझे ये कहते हुए जरा भी अतिशयोक्ति नहीं लग रही है कि ये बसों का कहर जनता पर है या मोटर साइकल सवारों का बसों और जनता पर ?
मैंने बचपन में सुना था कि बिल्ली को यदि उसके मूंछ के बाल निकलने भर कि जगह मिल जाए तो पूरी कि पूरी बिल्ली वहाँ से निकल सकती है.सच का तो पता नहीं है.पर यही बात इन मोटर साइकल सवारों के लिए चरितार्थ है.अगर उनकी मोटर साइकल का अगला पहिया किसी संकरी जगह से निकल जाए तो वो भी पूरी मोटर साइकल निकलने का गुर जानते हैं.चौराहे पर लाल बत्ती पर बड़ी मुस्तैदी से जासूस कि तरह नज़र दौड़ाते,आँखों से सड़क का चप्पा-चप्पा नापते अपनी मोटर साइकल को आगे निकालने की जुगत करते तो आपने भी इन्हें देखा होगा.जब कुछ नहीं हो पाता तो हारे हुए सेनानी की तरह अपमानित महसूस करते हुए वहीं खड़े अपनी बारी का नहीं,हरी बत्ती का इंतजार करते हैं.हरी बत्ती होते ही जैसे मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने पर वे घबरा कर बदहवास दिशा हीन भागती हैं ठीक वैसे ही ये भी शुरू हो जाते हैं.
मेरी मानो मोटर साइकल सवार को मोटर साइकल सवार न कहो. ये तो राणा प्रताप के घोड़े चेतक हैं. ये वो चेतक हैं जो कभी भी,कहीं भी,कैसे भी रुकने को तैयार नहीं है. क्योंकि हमारी पुतली फिरी नहीं औ ये मोटर साइकल सवार उड़ जाते है. कभी अपने गंतव्य की ओर तो कभी किसी बस की चपेट में किसी और लोक में.
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बस का कहर नाम से रोज़ ही खबर छपती है.हर रोज़ न जानें कितनी ही जानें जाती हैं. पर क्या कभी हमने ये सोचने की कोशिश की है की इसकी असली वजह क्या है? ये हादसे क्यों होते हैं ? इसका असली जिम्मेदार कौन? मैं यहाँ किसी का पक्ष नहीं ले रही हूँ.बस अपने विचार रख रही हूँ . सड़क हादसों में मरने वालों में ९५-९८ % तो हमारे रणबाँकुरे हैं.जो सर पर हेलमेट रूपी कफ़न बांधे रोज़ मोटर साईकिल पर निकल पड़ते हैं.( मोटर साईकिल चलाने वाले माफ़ करें) इतनी बड़ी तादात मैं ये हादसे यही संकेत देते हैं कि बस चालक के साथ-साथ ये भी जिम्मेदार हैं.मेरा ये मानना है कि मोटर साईकिल वाले खुद इन हादसों के सीधे जिम्मेदार हैं.मुझे ये कहते हुए जरा भी अतिशयोक्ति नहीं लग रही है कि ये बसों का कहर जनता पर है या मोटर साइकल सवारों का बसों और जनता पर ?
मैंने बचपन में सुना था कि बिल्ली को यदि उसके मूंछ के बाल निकलने भर कि जगह मिल जाए तो पूरी कि पूरी बिल्ली वहाँ से निकल सकती है.सच का तो पता नहीं है.पर यही बात इन मोटर साइकल सवारों के लिए चरितार्थ है.अगर उनकी मोटर साइकल का अगला पहिया किसी संकरी जगह से निकल जाए तो वो भी पूरी मोटर साइकल निकलने का गुर जानते हैं.चौराहे पर लाल बत्ती पर बड़ी मुस्तैदी से जासूस कि तरह नज़र दौड़ाते,आँखों से सड़क का चप्पा-चप्पा नापते अपनी मोटर साइकल को आगे निकालने की जुगत करते तो आपने भी इन्हें देखा होगा.जब कुछ नहीं हो पाता तो हारे हुए सेनानी की तरह अपमानित महसूस करते हुए वहीं खड़े अपनी बारी का नहीं,हरी बत्ती का इंतजार करते हैं.हरी बत्ती होते ही जैसे मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने पर वे घबरा कर बदहवास दिशा हीन भागती हैं ठीक वैसे ही ये भी शुरू हो जाते हैं.
मेरी मानो मोटर साइकल सवार को मोटर साइकल सवार न कहो. ये तो राणा प्रताप के घोड़े चेतक हैं. ये वो चेतक हैं जो कभी भी,कहीं भी,कैसे भी रुकने को तैयार नहीं है. क्योंकि हमारी पुतली फिरी नहीं औ ये मोटर साइकल सवार उड़ जाते है. कभी अपने गंतव्य की ओर तो कभी किसी बस की चपेट में किसी और लोक में.
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सही कहा!
ReplyDeleteआपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.
ReplyDelete---
Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!