सखि ! नटवर नागर मिले राह में जाते ।
मोर-मुकुट की जगह ,
शान से पोनी टेल बनाए।
पीताम्बर की जगह ,
सूट पर टाई रहे सजाये।
मोबाइल गलबहियां डाले ,
कंठहार लज्जित होजाए ।
माउथ आर्गन दबा अधर में ,
वंशी की भी सौतन लाये।
थिरक-थिरक नौभंगी -मुद्रा
पल-पल मिले बनाते ।
सखि------
ललिता संग फिरें डिस्को में,
नेहा संग डांडिया खेलें।
कुसुमा संग लन्च पर जाएँ,
आइसक्रीम लीना संग खाएं।
राधाजी को धीर बंधाएं ,
डिनर चलेंगे साथ तुम्हारे ।
वाटर पार्क में मन-मोहिनी संग ,
सखि,वो मिले नहाते ।
सखि -----
द्वापर में इक ही नन्द लाला,
गोपिन के संग होरी खेलें।
कैसी माया रची कन्हैया ,
इस कलयुग में आते-आते।
गली-गली में नटवर डोलें,
सखी-सखी संग रास रचाते।
कितने नट-नागर मिलते हैं ,
इन राहों में आते-जाते।
सखि! गोपी-नागर मिले राह में जाते ।
सखि,नटवर नागर मिले राह में जाते।
सखि, गिरधर नागर मिले राह में जाते।
सखि! नट-नागर जी मिले राह में जाते॥
मोर-मुकुट की जगह ,
शान से पोनी टेल बनाए।
पीताम्बर की जगह ,
सूट पर टाई रहे सजाये।
मोबाइल गलबहियां डाले ,
कंठहार लज्जित होजाए ।
माउथ आर्गन दबा अधर में ,
वंशी की भी सौतन लाये।
थिरक-थिरक नौभंगी -मुद्रा
पल-पल मिले बनाते ।
सखि------
ललिता संग फिरें डिस्को में,
नेहा संग डांडिया खेलें।
कुसुमा संग लन्च पर जाएँ,
आइसक्रीम लीना संग खाएं।
राधाजी को धीर बंधाएं ,
डिनर चलेंगे साथ तुम्हारे ।
वाटर पार्क में मन-मोहिनी संग ,
सखि,वो मिले नहाते ।
सखि -----
द्वापर में इक ही नन्द लाला,
गोपिन के संग होरी खेलें।
कैसी माया रची कन्हैया ,
इस कलयुग में आते-आते।
गली-गली में नटवर डोलें,
सखी-सखी संग रास रचाते।
कितने नट-नागर मिलते हैं ,
इन राहों में आते-जाते।
सखि! गोपी-नागर मिले राह में जाते ।
सखि,नटवर नागर मिले राह में जाते।
सखि, गिरधर नागर मिले राह में जाते।
सखि! नट-नागर जी मिले राह में जाते॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर