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जन्माष्टमी पर विशेष --नटवर नागर --

सखि ! नटवर नागर मिले राह में जाते ।
मोर-मुकुट की जगह ,
शान से पोनी टेल बनाए।
पीताम्बर की जगह ,
सूट पर टाई रहे सजाये।
मोबाइल गलबहियां डाले ,
कंठहार लज्जित होजाए ।
माउथ आर्गन दबा अधर में ,
वंशी की भी सौतन लाये।
थिरक-थिरक नौभंगी -मुद्रा
पल-पल मिले बनाते ।
सखि------

ललिता संग फिरें डिस्को में,
नेहा संग डांडिया खेलें।
कुसुमा संग लन्च पर जाएँ,
आइसक्रीम लीना संग खाएं।
राधाजी को धीर बंधाएं ,
डिनर चलेंगे साथ तुम्हारे ।
वाटर पार्क में मन-मोहिनी संग ,
सखि,वो मिले नहाते ।
सखि -----

द्वापर में इक ही नन्द लाला,
गोपिन के संग होरी खेलें।
कैसी माया रची कन्हैया ,
इस कलयुग में आते-आते।
गली-गली में नटवर डोलें,
सखी-सखी संग रास रचाते।
कितने नट-नागर मिलते हैं ,
इन राहों में आते-जाते।

सखि! गोपी-नागर मिले राह में जाते ।
सखि,नटवर नागर मिले राह में जाते।
सखि, गिरधर नागर मिले राह में जाते।
सखि! नट-नागर जी मिले राह में जाते॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...