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देखती आँखे बिकता कानून ..

इसे सौभाग्य ही कहिये की एक रईसजादे दोस्त के साथ घुमाने का मौका मिला ओउर हम दोनों सुबह ही सुबह निकल लिए .कुछ दूर जाने के बाद एक लाल बत्ती हुयी और लोग तथा गाडिया रुक गई । तब तक हमारे बगल में एक ट्रक आ के रुक गई, रुकते ही ट्राफिक महोदय का आगमन हुआ। और ट्रक का मोयना करने लगे। उसके बातें दरैवर से बोले की ट्रक बगल में लगा लो, तो द्रैबर ने इशारा किया ओउर ट्रैफिक महोदय उसके पासगए। उसने मुट्ठी बंद करके कुछ रूपये दिया जो मेरा दोस्त कह रहा था की ५०० सौ रूपये थे। इसका मतलब यही हुआ की ट्रक के अंदर क्या था कितने का था क्या हो सकता था। ये भगवान् ही जाने।
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अब हम लोग आगे निकले और एक झुग्गी की दिशा में चलने लगे जहा गरीबो की बस्तिया थी कुछ दूर जाने के बाद मेरा दोस्त बोला तुम यही रुकेओ हम अभी आ रहे है, मई रूक गया। तो देखा की एक झुग्गी में एक बुधिया थी जो एक थैली लिए थे तब दो लोग आए और उसे ५० रूपये दिया तो बुधिया ने दो थैली दिया जिसमे गांजा था। दोनों आदमी चल दिए और अब हम लोग भी वहा से निकल लिए॥


आगे जाते ही एक और नज़ारा दिखा जो एक आदमी एक औरत का बैग लेके भाग रहा था वर्दी धरी देखे तो पकड़ने के दौडे लेकिन वह बहुत ही होशियार खिलाड़ी था। वह १० य १२ नोट दस दस फेक दिया दिया दोनों वर्दी धारी बीनने लगे वह चंपत हो गया । औरत आके पुलिश वाले को बोली जो भी बोलना था उलटा सीधा। तो वर्दी धारी बोले जाओ रिपोर्ट लिखाओ तो देखेगे।


अब हम लोग दिल्ली के मशहूर जगह कनात प्लेश पहुच गए तो दोस्त ने बोला एक मिनट मई बैंक से आ रहा हूँ, मई वही रूकना उचित समझा तो देखा गरीबो लगते थे उसमे सारे जिसमे सब के सब स्मैक पी रहे थे। एक से मैंने पूछा ये कहा मिलाती है तो उसने बोला क्यो क्या सी .आई दी हो, मई देखता रहा दोस्त के आने के बाद हम लोग चल दिए॥



आगे चलने बाद खाना खाने का समय हो गया था। एक होटल में हम लोग रुके और खाना खाने लगे तो देखते है, की उस होटल में सारे बच्चे ही थे जिसकी उम्र १३ -१४ से कम थे बेचारे काम करते बर्तन साफ़ करते ओउर गालिया भी सुनते थे॥ तं लगा की मेरा क़ानून सो गया है, शायद,,

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--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...