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Showing posts from April 27, 2009

एक ख़त था , अदा निराली थी ....

मैंने शाम के टेश किनारों पे कितने हर्फे--दिलशाद लिखे उजड़े बिखरे इस जीवन के पुरजोर वफ़ा के साद लिखे एक ख़त था अदा निराली थी हर बार नए फरमान दिए फिर जीने के अरमान दिए पुर्जे-पुर्जे में टूटे हम हर चाहत को फरियाद लिखे मेरी राखों के नीलामी की तुमने जो किमत लगायी थी वो किमत दुनिया पूछेगी हम तो किमत की दाद लिखे उस शाम के टेश किनारे पे.......

पढ़े "जूता रीलोडेड" भारत के पहले जूता-फेंक द्वारा

बहुत दिनों के बाद जूते का महत्व सामने आया। "हम आपके हैं कौन" की माधुरी दीक्षित का गाना 'जूते लो पैसे दो " वाला गाना बहुत हीं भाया था । जूते को देखना अच्छा लगा था । सल्लू मियां की जूतों को लेकर बेचैनी गुदगुदी पैदा कर रही थी । इससे पहले जूता मेरी ज़िन्दगी का बहुत हीं बदनाम वस्तु था। खेलने के नाम पर भइया अक्सर अपना जूता मुझपर साफ़ किया करते थे । कुछ पश्चीम के विद्वानों ने भी जूते का महिमागान बड़ी हीं तन्मयता से किया है। किसी ने कहा था की व्यक्ति की पहचान उसके जूते से होती है । यह मोची टाइप दृष्टिकोण मुझे बड़ा अच्छा लगा था , और मैंने हरसंभव इसको अपनाया था । पर लोगो ने इसका अर्थ ये भी निकला की मैं बड़ा शर्मीला हूँ , नज़रे जो झुक जाती थी बात करते वक्त ! दोस्तों ने इसका अपना अलग अर्थ लगाया , कहा की भाई बड़ी बुरी निगाह है तेरी ...एक्चुअली मैंने ये फंडा कन्याओं पे भी लगाया था । कालांतर में भी वाजिब मांगो पर भी घर के हुक्मरान जूते की बात कर दिया करते थे । गाँव के ज़मींदार द्वारा अक्सर गरीबों को जूते से पिटते देखा करता था, कभी लगान के नाम पर तो कभी ऊँची आवाज़ में बात करने के कारण।

Loksangharsha: बेटियाँ...

देवताओ को घर में बसा लीजिये । भारती मान को भी बचा लीजिये । ऐ पुरूष चाहते हो कि कल्याण हो - बेटियाँ देवियाँ है , दुवा लीजिये । । माँ , बहन , संगिनी , मीत है बेटियाँ दिव्यती , धारती , प्रीत है बेटियाँ । देव अराध्य की वंदनाएं है ये - है ऋचा , मन्त्र है , गीत है बेटियाँ ॥ जग की आशक्ति का द्वार है बेटियाँ । मानवी गति का विस्तार है बेटियाँ । जग कलुष नासती , मुक्ति का सार है - शक्ति है शान्ति है , प्यार है बेटियाँ ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

Loksangharsha: राजनितिक भँवर में अपने वजूद को ढूंढता मुसलमान-5

राजनितिक भँवर में अपने वजूद को ढूंढता मुसलमान-5 उधर मुलायम सिंह ने राज्य मे मुख्यमंत्री के तौर पर और केन्द्र में रक्षामंत्री के तौर पर सत्तासीन होने के बाद अपनी सौगातों का पिटारा केवल यादवो के लिए ही खोला । इस बात का लाभ उठाकर सपा विरोधी पार्टियों ने मुसलमानों को मुलायम विरुद्ध शनेः शनेः बरगलाना शुरू किय नतीजे में मुसलमानों कर भीतर मुलायम के विरुद्ध नाराजगी में इजाफा होता चला गया और मुसलमान एक बार फिर वही गलती दोहराने लगे,अर्थात मुलायम में भी उसी प्रकार कीडा नजर आने लगे जैसे की कांग्रेस में उन्हें मिलते थे। वास्तव में सांप्रदायिक शक्तियों का पहला लक्ष्य मुसलमानों की वोट पॉवर को छिन्न भिन्न करना था वह नही चाहती थी की मुस्लिम एक राजनितिक छतरी के नीचे रहे । उनके इस कार्य में उन्हें भरपूर सहायता उन्ही के सोच से उपजा साम्राज्यवाद का पौधा अमर सिंह नाम के एक राजनेता ने दी। अमर सिंह ने मुलायम सिंह के समाजवादी चरित्र को एकदम धोकर रख दिया और मुलायम के ऊपर अमर प्रेम का ऐसा नशा चढा की समाजवाद व मुस्लिम प्रेम अमर सिंह के ग्लामौर की चकाचौंध में फीका पड़ता चला गया । के उत्तर प्रदेश k uttar prades

पत्रकारों की मदद चाहिए !

मेरे एक मित्र ''धीरेन्द्र जी'' मुंबई पर हुए हमले को शब्दों में सजा रहे अर्थात बह मुंबई हमले पर एक उपन्यास लिखने जा रहे है! इसके लिए उन्हें ऐसे पत्रकार या अन्य लोगों की आवश्यकता है जिन्होंने इस हमले को अपनी आँखों से देखा हो और बह इस विषय को जीवंत कर सकता हो यदि ऐसे पत्रकार या जागरूक नागरिक हमारे सामने आते है तो हमें ख़ुशी होगी !आप धीरेन्द्र जी से इस 9993724479 नंबर पर संपर्क कर सकते है आगे पढ़ें के आगे यहाँ

एक रात के संबंध में बच्ची बनी मां

दिया भागवत लंदन . जिस उम्र उसे बच्चों के साथ खेलना चाहिए था, वह आज खुद एक बच्चे की मां बन गई है। ब्रिटेन में बारह साल की एक लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया है। इस लड़की ने दो माह पहले ही बारह वर्ष पूरे किए हैं। प्राइमरी स्कूल की इस छात्रा ने अपनी उम्र से काफी बड़े लड़के के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। इस लड़की और बच्चे की देखभाल कर रहे लोगों का कहना है कि लड़की ने यह गलती सिर्फ एक ही बार की है। और इसी दौरान उसे गर्भ ठहर गया। पेट में हुआ दर्द तो पता चला लड़की और उसके परिवार को शुरू में घटना की कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन जब उसे पेट दर्द की जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया तो पूरा मामला सामने आया। लड़की को काफी उल्टियांभी हुई। जांच के बाद पता चला कि लड़की के पेट में गर्भ पल रहा है। उसे इस बात की बिलकुल आशा नहीं थी। जांच के बाद उसने एक बेटे को जन्म दिया। काफी गरीब है लड़की यह लड़की काफी गरीबी है। ब्रिटेन के दक्षिण-पश्चिम के एक इलाके में रहने वाली लड़की का घर जगह-जगह से टूटा हुआ है। सामाजिक संस्था के लोग उसकी मदद के लिए आगे आएं हैं। लेकिन फिर भी पैसे की कमी बनी हुई है। बढ़ रहे हैं ब्रिटेन में

दीपक .....

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया । यह एक चोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए । सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहान

एक पद

पद -तुकांत कविता का एक छंद होता है -गीत जैसा -- हे घन बरसो बन कर प्यार। प्रेम सुधा बन सरसे तन-मन जीवन हो रस सार। नैन नैन मैं रस रंग बरसे सप्तम सुर झंकार। मन मन हरषे जन जन झूमे , झूम उठे संसार। प्रीति की वंशी बजे बसे जग राधा-कान्ह सा प्यार। प्रीति बसे मब सब जग अपना ,प्रीति के रंग हज़ार। प्रीति के दीप जलाए चलो नर सब जग हो उजियार। प्रीति किए से प्रीति मिले जग ,मिले सकल सुख सार। श्याम जो प्रभु की प्रीति बसे मन ,मिले ब्रह्म ,जग सार।। हे घन बरसों बन कर प्यार।

हमें शिकायत करने का हक़ नही है...!!! भाग - २

आप लोगो ने पिछली पोस्ट पढ़ी थी अब मैं आपको शिकायत न करने की कुछ और वजह बताता हूँ..... रिश्वत देने मे और सिफारिश करने मे हम सबसे आगे होते हैं लेकिन जब अपना काम नही होता है तो कहते हैं की बहुत भर्ष्टाचार बढ़ गया है जिसको देखो रिश्वत मांग रहा है....बच्चे के पैदा होने से पहले उसका लिंग पता करने के लिए रिश्वत कुछ कहो तो कहते हैं की आगे तैयारी करने मे आसानी होती है, उसकी पैदा होने के बाद उसके जन्म प्रमाण - पत्र मे उसकी उम्र बदलवाने के लिए हम रिश्वत देते हैं, जब स्कूल में उसका दाखिला कराना होता है तो किसी अच्छे स्कूल में दाखिला कराने के लिए हम रिश्वत देते हैं चाहे हमारा बच्चा उस स्कूल की पढाई झेलने के लायक हो या नहीं हमें उससे कोई मतलब नहीं हैं, किसी खेल की टीम उसको खिलाने के लिए हम रिश्वत और सिफारिश सब कर लेते हैं, और हमारा बेटा खेल लेता हैं वो भी उस लड़के वो निकाल कर जो हमारे बच्चे से बहुत बेहतर खिलाडी है, चाहे जो करना पड़े खेलेगा हमारा बेटा, बच्चे ने साल बार पढाई नहीं में अब इम्तिहान में कैसे पास होगा लेकिन कोई बात नहीं तेअचेर को रिश्वत देकर किसी और से पेपर दिलवा देंगे, अगर यह नहीं हुआ तो क्ला

बॉलिवुड ऐक्टर फिरोज खान का निधन

बेंगलुरु ।। बॉलिवुड ऐक्टर फिरोज खान का रविवार देर रात बेंगलुरु में निधन हो गया । 70 वर्षीय फिरोज काफी दिनों से बीमार चल रहे थे । वह कैंसर से पीड़ित थे। साठ के दशक में बॉलिवुड में काम करने वाले फिरोज खान की यादगार फिल्मों में कुर्बानी, जांबाज़, धर्मात्मा प्रमुख हैं। फिरोज ने दूसरी पारी में जानसीं और वेलकम जैसी फिल्मों में भी यादगार भूमिका निभाई थी। फिरोज खान ने अपने बेटे फरदीन खान को भी बॉलिवुड में लॉन्च किया था। फिरोज खान फिल्म इंडस्ट्री में एक जिंदादिल इंसान के तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने 1960 में फिल्म दीदी से बॉलिवुड में एंट्री की थी।

वामपंथ की टोकरी सर पर लादे बैंगन- ब्रिंदा और करेला-करात

आज वामपंथ अगर कही अपने संपूर्ण कलाओं के साथ छटा बिखेर रहा है तो वो है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का कैम्पस... जिसे देखो वही वामपंथ की टोकरी सर पर लादे बैंगन- ब्रिंदा और करेला-करात को लेकर अपनी ज्ञान की दुकान को ढो रहा है . वहां वास्तव में मार्क्सवाद को बोलने वाले लोग ज्यादा और जीने वाले लोग नगण्य हैं। वो क्या खाक पूंजीवाद के विरोध को मुखारीत कर सकता है जिस की बुनियाद की एक-एक ईंट भारत के पूंजीपतिओं के देन है। जिस जे० एन० यू० की स्थापना टाटा और बिडला के रहमो-करम से हुई , वो आज अपने को उसके विरोध में खड़ा करता है तो यह एक मात्र छलावा है और कुछ नही ! वास्तव में यह सब एक बड़ा सोचा समझा छद्मावरण है, जिसकी समझ हमारे सम्पादकीय ज्ञान की सीमा से परे है। ज्ञान और "सम्पादकीय ज्ञान " में बड़ा फर्क है। ज्ञान शब्द स्वयं में इतना विशाल और संपूर्ण है कि कोई भी विशेषण इस शब्द कि गरिमा को ठेस हिन् पहंचता है । इसे परिभाषित करना , इसकी सीमा को बाँधने जैसा है। हाँ तो जिस जे० एन० यू० से हमने समाजवाद की नब्ज़ को पहचानने कि अपेक्षा थी , क्या वो वास्तव में इस लायक है ? सच कुछ और है । और वह है ---