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Showing posts from May 2, 2009

यू. पी. की लस्सी!!!

ग र्मी आ चुकी है और काफी जोर से आई है, इस तरह की गर्मी दिल और दिमाग को ठंडक देने के लिए लोग तरह - तरह के शीतल पेय इस्तेमाल करते है...आजकल तो सॉफ्ट ड्रिंक फैशन में हैं हर कोई गर्मी लगने पर इन्ही सॉफ्ट ड्रिंक्स का इस्तेमाल करता है जो किसी भी लिहाज़ से सही नहीं है, सेहत को फायदा होने के बजाये नुक्सान ही होता है. लेकिन हमारे हिन्दुस्तान में बहुत सारे ऐसे कुदरती शीतल पेय इस्तेमाल होते है जो बहुत फायदेमंद, बहुत स्वादिष्ट और बहुत ही ताकतवर होते हैं इन्ही शीतल पेय में से एक मशहूर पेय है "लस्सी". अब आप लोगो को यह बताने की ज़रुरत नहीं है की "लस्सी" कैसे बनती है और इसमें क्या - क्या चीजे इस्तेमाल होती है. "लस्सी" पंजाब की बहुत ही मशहूर है वहां की लस्सी का कोई मुकाबला नहीं हैं वहां तो तांम्बे का नौ इंच से लेकर बारह इंच तक का गिलास होता है, एक गिलास पीने के बाद और पीने का दिल करता है लेकिन पेट इजाज़त नहीं देता... अब मैं आपको यू.पी. की लस्सी के बारे में बताता हूँ, यू.पी. में हर शहर में लस्सी अलग ही तरह से बनती है तो हम सबसे पहले शुरुआत करते है राजधानी से.... ल

Loksangharsha: बाजार बहुत है ..

भाषा न भाव छंद तो फ़नकार बहुत है । तुलसी - कबीर - सूर के आधार बहुत है । तेरी खुदी को तेरा खुदा मिल ही जाएगा - इन्सान बिकना चाहे तो बाजार बहुत है । आंसू की न होती न मुस्कान की भाषा । आँखों की दिलो की नेह पहचान की भाषा । हिन्दी नही उर्दू नही वरन इंतना समझिये - घर दिल में बना ले वह इन्सान की भाषा । चाह होगी तो कोशिशे होंगी । प्यार होगा तो रंजिशें होगी । स्वार्थ होगा दोस्ती होगी - प्राण होंगे तो बंदिशे होंगी । पुण्य है , पाप है , कर्म फल है यही जन्म है , मृत्यु है , गम विजय है यही आदमी का बुढापा बताता हमे - स्वर्ग भी है यही नर्क भी है यहीं ।। - डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

ये हक़ इसे किसने दिया है ?

ये बेलगाम..बोलते नेता..

सभी कहते है की ये चुनाव कुछ अलग है..!जी हाँ मैं भी कहता हूँ की ये अलग है,कई मायनो में अलग है..!एक दूसरे पर कीचड उछलने वाले नेता वही है..पर इस बार उनकी भाषा अलग है..!हो सकता है तेज़ गर्मी इसकी वजह हो पर बात कुछ अलग है..!इस तरह की बेकार भाष,शब्दावली मैंने पहले कभी नहीं सुनी,ये चीज़ अलग है..!सभी परशन के नेता जिस प्रकार की छिछोली भाषा पर उतर आए है वो हैरान करता है..!सुबह कुछ कह कर शाम को मुकर जन आम सी बात हो गई है..!लालू ,राबडी के बोलने पर इसे गाँव की भाषा कह कर नजरंदाज़ किया जाता था...पर अब अनुभवी और शिक्षित नेताओं के क्या हो गया?वे क्यों इस तरह से बोलने लगे..?और बोले तो भी जनता क्यूँ सुने ये ?आज भी हमारे देश में व्यक्ति पूजा हावी है..हम बहुत जल्दी ही किसी को अपना आदर्श मानने लग .जाते है..!जब ये आदर्श ही .असभ्यता पर...उतर आए तो फ़िर आम जनता क्या करे?.चाहे नेता हो या अभिनेता या खिलाड़ी हम उनका अनुशरन्न क्यूँ करें?हमारे बच्चे क्या सीखेंगे उनसे?यदि .हम उनकी बकवास नहीं सुनेंगे तो वो भी संभल कर बोलेंगे...इस तरह से वे अभद्रता नहीं कर पाएंगे...!अश्लील श्रेंणी की पिक्चर को "अ'सर्टिफिकेट द

Loksangharsha: प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै...

प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै , सत्ता बंटाधार ; देश का कोई न जिम्मेदार । भूखन मरैं करैं हड़तालै , कोई न सुनै पुकार ; डंडा - लाठी - गोली , बरसे परै करारी मार ; अत्याचार अनाचारों का , होइगा गरम बाजार ; रोज बने कानून कायदा , नेतन कै भरमार ; चोरी , डाका , कतल, राहजनी , कोई न रोकनहार ; दारु - पैसा बांटिक जीते , गुण्डे चला रहे सरकार ; चोर - ड़कैतन की रक्षा मा खड़े हैं , थानेदार ; वकील - डॉक्टर - शिक्षक , बालक जेल मा करें विहार ; देश का कोई न जिम्मेदार । बृजेश भट्ट बृजेश

ये बेलगाम बोलते नेता...

सारांश यहाँ....... सभी कहते है की ये चुनाव कुछ अलग है..!जी हाँ मैं भी कहता हूँ की ये अलग है,कई मायनो में अलग है..!एक दूसरे पर कीचड उछलने वाले नेता वही है..पर इस बार उनकी भाषा अलग है..!हो सकता है तेज़ गर्मी इसकी वजह हो पर बात कुछ अलग है..!इस तरह की बेकार भाष,शब्दावली मैंने पहले कभी नहीं सुनी,ये चीज़ अलग है..!सभी परशन के नेता जिस प्रकार की छिछोली भाषा पर उतर आए है वो हैरान करता है..!सुबह कुछ कह कर शाम को मुकर जन आम सी बात हो गई है..!लालू ,राबडी के बोलने पर इसे गाँव की भाषा कह कर नजरंदाज़ किया जाता था...पर अब अनुभवी और शिक्षित नेताओं के क्या हो गया?वे क्यों इस तरह से बोलने लगे..?और बोले तो भी जनता क्यूँ सुने ये ?आज भी हमारे देश में व्यक्ति पूजा हावी है..हम बहुत जल्दी ही किसी को अपना आदर्श मानने लग .जाते है..!जब ये आदर्श ही .असभ्यता पर...उतर आए तो फ़िर आम जनता क्या करे?.चाहे नेता हो या अभिनेता या खिलाड़ी हम उनका अनुशरन्न क्यूँ करें?हमारे बच्चे क्या सीखेंगे उनसे?यदि .हम उनकी बकवास नहीं सुनेंगे तो वो भी संभल कर बोलेंगे...इस तरह से वे अभद्रता नहीं कर पाएंगे...!अश्लील श्रेंणी की पिक्चर को "

"जूता रीलोडेड "---२ , जूता मारने की नैतिकता

अब तक आपने पढ़ा....... मुझे कोई ग्लानी नही है .अरुंधती राय पर जूता फेंकने का ..... जूता मरने का नैतिक आधार क्या है ? जूता महिमा से प्रभावित सारे व्यक्ति अवश्य पढ़ें .... आगे ....गाँधी , सुभाष ,अम्बेदकर, लोहिया, भगत सिंह के साथ कभी एसी हरकत नही हुई। विदेशों में कुठेर और लिंकन के साथ भी ऐसी घटना नही घटी। यधपि सुकरात, ईशा, कबीर और गाँधी को यातनाएं मिलीं पर यातना देने वाले कसाई थे कर्णधार नही ! जनता को जनार्दन चाहिए , जो उनके समस्याओं का समाधान हो , दुखों को हर सके । वह कटाई जूतों का इस्तेमाल नही करना चाहती । वह महज़ एक वोटर लिस्ट नही है। आज़ादी के बाद नेताओं की बेलगाम अय्याशी जारी है। आख़िर जनता कब तक अपने वोट और नोट का निरादर होते चुप-चाप देखती रहेगी। चुनाव एक भ्रम है , एक धोखा है। जनता को सिर्फ़ एहसास दिलाना है कि इस जम्हुरि़त का असली मालिक वही है। चुनाव के बाद क्या होता है , जग ज़ाहिर है । चुनाव के दौरान मालिक का ताज पहन कर इठलाने वाली जनता को चुनाव के पड़ उसी ताज का भिक्षापात्र बनाना पड़ता है । वह भिखारी कि तरह भटकती रहती है। वह बुनियादी सवालों पर रखे भारी पत्थर हटा नही पाती और निराश ह