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Showing posts from March 26, 2009

और यह रहा 600वा पोस्ट

४०० वा पोस्ट करने का रिकॉर्ड सलीम खान के नाम था तो मैंने सोचा की क्यों न ६०० का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया जाये !तो हिन्दुस्तान का दर्द का ६०० नंबर का पोस्ट मेरे नाम हो गया है अब आप लोग बधाई दे सकतें है ! आगे पढ़ें के आगे यहाँ

ऐसा भी होता है जमानें में .....

बात उस समय की है जब मै हाई स्कूल में पढ़ रहा था । रेडियो पर सुना की आज नामीबिया दिवस है । समझ नही पाया । स्कूल में जब मैंने अपने भूगोल के टीचर से पूछा तो उन्होंने थोडी देर सोचा .... फ़िर बताया की नामीबिया का मतलब खुशी होता है ...यह दिवस विदेशों में खुशी को हासिल करने के निमित मनाया जाता है । मै संतुष्ट हो गया । करीब एक साल बाद मुझे पता चला की नामीबिया अफ्रीका का एक देश है और वह अपने स्थापना दिवस को नामीबिया दिवस के रूप में मनाता है । यह जानकर काफी हैरानी हुई..... अब सोचता हूँ ... एक न एक दिन तो पोल खुल ही जाती है सो बरगलाना छोड़ देना ही समझदारी है ... इज्जत का कबाडा तो अलग ही होता है । हम अपनी नजरों में ही गिर जाते है ।

मुसलमान अज़ान में सम्राट अकबर का नाम क्यूँ लेते हैं?

गैर मुस्लिम यह समझते हैं कि मुसलमान नमाज़ के लिए बुलाने वास्ते दी जाने वाली पाँचों अज़ान में सम्राट अकबर का नाम लेते हैं! "एक बार एक गैर मुस्लिम मंत्री भाषण दे रहे थे, वह भारत की उपलब्धियों और सफलताओं में भारतीय मुसलमानों के योगदान के बारे  में रौशनी डाल रहे थे | वह बता रहे थे भारतीय सम्राटों में महान सम्राट अकबर का स्थान सबसे ऊँचा है | यही वजह है कि मुस्लिम अज़ान में सम्राट अकबर का नाम लेते हैं|"   हलाँकि वह गैर मुस्लिम  मंत्री जी बिलकुल भी सही नहीं कर रहे थे | मैं गैर मुस्लिम में फैली इस ग़लतफ़हमी को दूर कर देता हूँ कि मुसलमान नमाज़ के लिए बुलाने वास्ते दी जाने वाली पाँचों अज़ान में सम्राट अकबर का नाम नहीं लेते हैं|   अज़ान में लिया जाने वाला शब्द 'अकबर' का भारत के सम्राट अकबर से कोई वास्ता नहीं रखता है|   अज़ान में लिया जाने वाला शब्द 'अकबर' तो भारत के सम्राट अकबर के जन्म से शताब्दियों पहले से प्रयोग किया जा रहा है| 'अकबर' का अर्थ होता है 'महान'   अरबी के शब्द 'अकबर' का मतलब होता है 'महान'|  जब हम अज़ान में कहते है ‘अल

कृपया आप लोग भी अपने अनुभव लिखें- आपको कब महसूस हुआ था कि ईश्वर है

विनय बिहारी सिंह कृपया आप लोग भी यह लिखने का कष्ट करें कि सबसे पहले आपको कब लगा था कि ईश्वर है। आपने कब किसी संकट के क्षण में उन्हें याद किया और आपको आशा की किरण दिखाई पड़ी। या कब आपने किसी फूल से बच्चे को हंसते हुए देखा और आपको ईश्वर की याद आई। कृपया इस चर्चा को आगे बढ़ाएं। अपने ईश्वरीय अनुभवों को बांटें और महसूस किए हुए ईश्वरीय प्रकाश को दूसरों तक पहुंचाएं। निश्चय ही आपके जीवन में ऐसे क्षण आए होंगे, जब आपको लगा होगा कि हां, ईश्वर जरूर है और वह हमारी मदद करता है। हो सकता है हर बार आपको ऐसा महसूस न हो। लेकिन कभी कभी तो महसूस होता ही होगा। एक बार फिर आग्रह है कि आप इस विषय पर लिखें।

विचारधारा की जिद और बीजेपी की मुश्किल

आशुतोष मैनेजिंग एडिटर ibn7 अभी सोच ही रहा था कि खबर आ गयी कि वरुण गांधी पीलीभीत से ही लड़ेंगे। खुद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ऐलान कर दिया। कुछ समझा और कुछ नहीं समझा। समझ और नासमझ के बीच धड़ाम होते-होते ये भी सोचा कि क्या ये कहना जरूरी था। बिना कहे भी तो कई बातें हो जाती हैं। समझ में नहीं आया कि क्यों एक पार्टी जो छह साल तक सरकार में रही है और जिसकी आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में सरकार हो वो भला कैसे किसी संवैधानिक संस्था की खुलेआम अवहेलना कर सकती है। सवाल ये है कि जब वो मानते हैं कि ऐसी बातों से पार्टी की छवि को धक्का लगता है और इससे नयी युवा पीढ़ी में बीजेपी के खिलाफ एक माहौल बनता है तो फिर बीजेपी और संघ परिवार का बेताल वहीं से उड़ कर वहीं क्यों आ बैठता है? क्या ये महज इत्तफाक है या फिर कुछ दूसरी चीजें हैं जो संघ परिवार और बीजेपी को मथती रहती हैं और वो इससे बाहर नहीं निकल पाती। दरअसल विचारधारा की एक अजीब जिद होती है। ये सभी विचारधाराओं के लिये सच है। विचारधारा की उपज और विकास के बीज में होता है एक गहरा विश्वास जिसके ऐतिहासिक कारण होते हैं। जब 1925 में आरएसएस का जन्म हुआ तो वो स

जीवन है ये एक कटी पतंग.......

जीवन है ये एक कटी पतंग यह मै मानती हू दिन को तो ढलना है शाम होने पर सब जानते है फिर भी ...सूरज सुबह होते ही आता है डरता नहीं डूबने के डर से , वो ऊबता नहीं ,अपनी ही दिनचर्या से रोज़ नयी हिम्मत जुटा .. बिखेरता अपनी रोशनी इस सारे जहां में फिर मै क्यों घबराऊ आने वाले कल से ... क्यों डर जाऊ अपने अंतिम समय से उड़ती पतंग की डोर को किसी की डोर तो काटेगी पर काटने से पहले ,क्यों ना मै अपनी ऊँची से ऊँची उड़न उड़ जाऊ जीवन है ये एक कटी पतंग (.....कृति ....अनु......)

नव विक्रम संवत २०६६ की शुभकामनाये

सभी मित्रों को नव विक्रम संवत २०६६ की हार्दिक शुभ-कामनायें नव विक्रम संवत शुभमय मधुमय मंगलमय हो,निज हृदय कामना करता हूँ। नव-विक्रम संवत का पल-पल,मैं तुम्हें समर्पित करता हूँ। निज ज्योति से दीप जलाते रहो,कुरुचि में सुरुचि जगाते रहो। इस संवत की भी पुकार यही,तुम ज्ञान की गंगा बहाते रहो। कुरुचि मिटे हर मन की,सुरुचि जगे जन-जन की। पूरी हो अभिलाश हमारी, आत्म-तृप्ति हो तन-मन की। मधु, स्नेह, दया, उदारता,हृदय बस जाये समरसता। नव सौभाग्य आदित्य उदित हो,नव संवत सबको मित्र मुदित हो। नव संवत हो मंगलमय नव संवत मंगलमय, हर दिन खुशहाली लाए। तन-मन रहे प्रफुल्लित ,समृद्धि परिवार में आए। उर हो शुभ -भावों से पूरित,मन-मयूर तुम्हारा नाँचे, हरे-भरे आँगन में तुमरे, सौन-चिरैय्या गीत सुनाए। नव संवत शुभ हो 2066 से हमें आस, आतंक का प्रसार रूके। विवके हो जाग्रत सभी का, नहीं आनन्द प्रचार रूके। संकीर्णताएँ मिटें सभी, बन्धुत्व न झुके कभी, चहुँ ओर हो विजय, सत्य न कभी झुके। शुभ हो आपको परिवार, राष्ट्र , विश्व को। नव-संवत का हर पल, शुभ हो गुरू शिष्य को। कथनी-करनी एक हो, मार्ग हमारा नेक हो, उर-बुद्धि हों सन्तुलित, पायें

कविता माँ

कविता माँ 'सलिल' माँ भूलती नहीं, याद रखती है हर टूटा सपना। नहीं चाहती कि उसकी बेटी को भी पड़े उसी की तरह आग में तपना। माँ जानती है जिन्दगी kee बगिया में फूल कम - शूल अधिक हैं, उसे यह भी ज्ञात है कि समय सदा साथ नहीं देता। वह अपनी राजदुलारी को रखना चाहती है महफूज़ नहीं चाहती कि उस जान से ज्यादा अज़ीज़ बेटी पर कभी भी उठे उँगली। इसलिए वह भीतर से नर्म hote hue भी ऊपर से दिखती है कठोर। जैसे raat की सियाही छिपाए रहती है अपने दामन में उजली भोर। *****************************

अचानक यूँ मुलाकातें ......--प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध

सारांश यहाँ जो सबको बाँधे रखते हैं, मधुर संबँध बंधन में वे होते प्रेम के रिश्ते, सरल इंसान के रिश्ते !! आगे पढ़ें के आगे यहाँ कई रंग में रंगे दिखते हैं , निश्छल प्राण के रिश्ते कई हैं खून के रिश्ते, कई सम्मान के रिश्ते !! जो सबको बाँधे रखते हैं, मधुर संबँध बंधन में वे होते प्रेम के रिश्ते, सरल इंसान के रिश्ते !! भरा है एक रस मीठा, प्रकृति ने मधुर वाणी में जिन्हें सुन मन हुलस उठता, हैं मेहमान के रिश्ते !! जो हुलसाते हैं मन को , हर्ष की शुभ भावनाओ से वे होते यकायक उद्भूत, नये अरमान के रिश्ते !! कभी होती भी देखी हैं, अचानक यूँ मुलाकातें बना जाती जो जीवन में, मधुर वरदान के रिश्ते !! मगर इस नये जमाने में, चला है एक चलन बेढ़ब जहाँ आतंक ने फैलाये, बिन पहचान के रिश्ते !! सभी भयभीत हैं जिनसे, न मिलती कोई खबर जिनकी जो हैं आतंकवादी दुश्मनों से, जान के रिश्ते !! --प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव "विदग्ध"
कुण्डली प्यारी बिटिया! यही है दुनिया का दस्तूर। हर दीपक के तले है, अँधियारा भरपूर। अँधियारा भरपूर मगर उजियारे की जय। बाद अमावस के फिर सूरज ऊगे निर्भय। हार न मानो, लडो, कहे चाचा की चिठिया। जय पा अत्याचार मिटाओ, प्यारी बिटिया। ************************************ लोकतंत्र में लोक ही, होता जिम्मेवार। वही बनाता देश की भली-बुरी सरकार। छोटे-छोटे स्वार्थ हित, जब तोडे कानून। तभी समझ लो कर रहा, आजादी का खून। भारत माँ को पूजकर, हुआ न पूरा फ़र्ज़। प्रकृति माँ को स्वच्छ रख, तब उतरे कुछ क़र्ज़। 'सलिल' न दूषित कर प्रकृति, मत कर आत्म-विनाश। अमी-विमल नर्मदा सम, सबको बाँट प्रकाश। *********************************** ग़ज़ल तू न होकर भी यहीं है मुझको सच समझा गई । ओ मेरी माँ! बनके बेटी, फिर से जीने आ गई ।। रात भर तम् से लड़ा, जब टूटने को दम हुई। दिए के बुझने से पहले, धूप आकर छा गई ।। नींव के पत्थर का जब, उपहास कलशों ने किया। ज़मीं काँपी असलियत सबको समझ में आ गई ।। सिंह-कुल-कुलवंत कवि कविता करे तो जग कहे। दिल पे बीती आ जुबां पर ज़माने पर छा गई ।।। बनाती कंकर को शंकर नित निनादित नर्मदा। ज्यों की त्यों

क्‍या यही लोक त्ंत्र है

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ चुनाव लोकतंत्र का महापर्व माना जाता है ,जिसमे जनता अपने मे निहित शक्तियो का प्रयोग करके अपने लिए शासक चुनती है ,लेकिन जब ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न हो जाय कि तंत्र केवल लोक से वोट लेने तक ही अपना सम्‍बन्‍ध रखे तो शासक के चुनाव का कोई औचित्‍य नही रह जाता है,आज हमारे देश मे कुछ ऐसी ही स्थ्‍िति है बिजली पानी स्‍वास्‍थ्‍य शिक्षा रोजगार आदिके नाम पर केवल मनोबैज्ञानिक उपलब्‍धता समझाई जाती है वास्‍तविक धरातल पर इसमे से कुछ भी हमारे भाग्‍य मे नही है , चुनावो मे सारे ही राजनैतिक दल मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर वोटर से वोट लेना चाह रहै है ,खरीद कर वोट लेना चाह रहे है ,जनता को उनकी समस्‍याओ से दुर लेजाकर वोट लेना चाह रहे है ,चुनाव बाद वो अपनी कुसी पायेगे हम अपनी समस्‍याये फिर चुनाव आयेगा फिर यही चलेगा , ,किसी की कोई कसौटी नही है ,किसी की कोई अग्नि परीक्षा नही है किसी से कोई उम्‍मीद नही है न हमसे न उनसे क्‍या यही लोक त्ंत्र है